A Detailed Analysis of the Resignation of India's Vice-President

भारत के उपराष्ट्रपति के इस्तीफ़े पर विशेष विश्लेषण

July 23, 2025

यह लेख “The Hindu” में प्रकाशित “Agony of exit: On the resignation of Jagdeep Dhankharर आधारित है, इस लेख में बताया गया है की 22 जुलाई 2025 को भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा अचानक दिया गया इस्तीफा न केवल संवैधानिक परंपराओं पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है, बल्कि यह संसद और कार्यपालिका के बीच संबंधों की जटिलता को भी उजागर करता है। यह घटनाक्रम न केवल संवैधानिक दायरे में महत्वपूर्ण है, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी व्यापक रूप से विचारणीय है।

इस्तीफे की पृष्ठभूमि और औपचारिक कारण (Background and Formal Reasons for Resignation)

  • श्री धनखड़ का इस्तीफा एक ऐतिहासिक कदम था क्योंकि भारत के गणराज्य इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी उपराष्ट्रपति ने बिना राष्ट्रपति पद हेतु चुने जाने के इस्तीफा दिया।
  • हालांकि उन्होंने अपने इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य संबंधी बताया, लेकिन वास्तविकता यह दर्शाती है कि निर्णय के पीछे कुछ राजनीतिक एवं संवैधानिक मतभेद थे।
  • इस्तीफे से ठीक पहले उन्होंने मानसून सत्र के पहले दिन सक्रिय रूप से सदन की अध्यक्षता की और सप्ताह के लिए अपने कार्यक्रम भी घोषित किए थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि स्वास्थ्य कारण तत्कालीन कारण नहीं थे।

कार्यपालिका और उपराष्ट्रपति के बीच बढ़ते मतभेद (Rift Between Executive and Vice-President)

  • इस्तीफे से पूर्व उपराष्ट्रपति और केंद्र सरकार के बीच कई मुद्दों पर असहमति बढ़ रही थी।
  • मुख्य बिंदु बना न्यायपालिका की जवाबदेही और संसद, विशेषकर राज्यसभा, की भूमिका को लेकर उपराष्ट्रपति की राय।
  • उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में हटाने की प्रक्रिया को संसदीय नियमों के अनुसार आगे बढ़ाया, जो कि सरकार की रणनीति से मेल नहीं खाती थी।

राज्यसभा अध्यक्ष के रूप में कार्यशैली और विवाद (His Controversial Tenure as Rajya Sabha Chairperson)

  • श्री धनखड़ की अध्यक्षीय भूमिका अनेक विवादों से घिरी रही।
  • विपक्ष ने उनके आचरण को पक्षपाती बताया और उनके खिलाफ हटाने का प्रस्ताव भी लाया – यह भी संसदीय इतिहास में पहली बार हुआ।
  • उन्होंने ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों पर सवाल उठाए, जो भारतीय संविधान की मूल आत्मा से जुड़े हैं, और इसे आरएसएस की बहस से जोड़ दिया गया।
  • न्यायपालिका की आलोचना और ‘संसदीय सर्वोच्चता’ की वकालत ने उनकी भूमिका को और विवादित बना दिया।

न्यायपालिका पर दृष्टिकोण और टकराव का बिंदु (Stance on Judiciary and Point of Conflict)

  • उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका में कथित भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए विपक्ष द्वारा प्रस्तुत दो प्रस्तावों – एक दिल्ली हाई कोर्ट के जज के खिलाफ और दूसरा इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के खिलाफ – को आगे बढ़ाया।
  • नियमों के तहत, 50 से अधिक सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव को स्वीकार करना उनकी संवैधानिक ज़िम्मेदारी थी, लेकिन यह निर्णय कार्यपालिका की मंशा के विरुद्ध गया।
  • यह टकराव इतना बढ़ गया कि अंततः इस्तीफा ही एकमात्र रास्ता बचा।

राष्ट्रीय लोकतंत्र पर प्रभाव (Impact on Parliamentary Democracy)

  • उपराष्ट्रपति का इस्तीफा न केवल एक संवैधानिक संकट की ओर इशारा करता है, बल्कि यह दर्शाता है कि संस्थाओं के बीच संतुलन और स्वतंत्रता पर खतरा मंडरा रहा है।
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाम संसद की सर्वोच्चता की बहस एक बार फिर केंद्र में आ गई है।
  • यह घटना इस बात की चेतावनी देती है कि यदि उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति भी स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकते, तो लोकतंत्र की नींव हिल सकती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

जगदीप धनखड़ का इस्तीफा केवल व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, यह संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता, पारस्परिक सम्मान और संतुलन पर बड़ा सवाल उठाता है। यह घटना आने वाले समय में भारत के लोकतांत्रिक तंत्र और उच्च पदों की भूमिका पर व्यापक बहस को जन्म दे सकती है।

 

परीक्षा दृष्टिकोण से मुख्य बिंदु (Key Points from Exam Point of View)

  • ऐतिहासिक इस्तीफा: – जगदीप धनखड़ पहले उपराष्ट्रपति बने जिन्होंने कार्यकाल पूरा होने से पहले बिना राष्ट्रपति चुनाव में भाग लिए इस्तीफा दिया।
  • अनुच्छेद संबंधित:
    • उपराष्ट्रपति का उल्लेख: अनुच्छेद 63 से 71
    • न्यायाधीश हटाने की प्रक्रिया: अनुच्छेद 124(4) और 124(5)
  •  हटाने का प्रस्ताव: – उपराष्ट्रपति की पक्षपातपूर्ण भूमिका को लेकर विपक्ष ने उनके खिलाफ भी हटाने का प्रस्ताव लाया — पहली बार ऐसा हुआ।

 

 

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