तमाड़ विद्रोह (Tamad Rebellion)
सन् 1771 में अंग्रेजों ने छोटानागपुर पर अपना अधिकार जमा लिया था और यहाँ के राजाओं एवं जमींदारों को कंपनी का संरक्षण मिल चुका था, जिससे इन लोगों को प्रजा के शोषण की छूट मिल गई थी। जमींदारों ने किसानों की जमीनें हड़पनी शुरू कर दी थीं। इस शोषण नीति ने उराँव जनजाति के लोगों में विद्रोह की आग भड़का दी। इस जनजाति ने सन् 1789 में अपने विद्रोही तेवर दिखाने शुरू कर दिए और जमींदारों पर टूट पड़ी। सन् 1794 तक इन विद्रोहियों ने जमींदारों को इतना भयभीत कर दिया कि उन्होंने अंग्रेज सरकार से अपनी रक्षा करने की गुहार लगाई।
अंग्रेजों ने परिस्थिति को भाँपा और पूरी शक्ति से विद्रोह को कुचल दिया। इससे कई व्यवस्थाओं का सूत्रपात हुआ और कुछ समय तक शांति बनी रही। जब दुबारा इनकी जमीन को हड़पा जाने लगा तो यह विद्रोह व्यापक हो गया।
चेरो विद्रोह (Chero Revolt)
यह आंदोलन सन् 1800 में चेरो किसानों ने अपने राजा के विरुद्ध शुरू किया। यह विद्रोह तब अंग्रेजों की पक्षपातपूर्ण नीति के विरोध में हुआ, जब कंपनी ने कूटनीति से जयनाथ सिंह को अपदस्थ कर दिया और उसके स्थान पर गोपाल राय को राजा बना दिया। कुछ समय बाद गोपाल राय कुछ विद्रोही चेरो सरदारों के साथ मिल गया, जिससे अंग्रेज रुष्ट हो गए। अंग्रेजों ने गोपाल राय को बंदी बनाकर पटना जेल में डाल दिया। इसके बाद अंग्रेजों ने चूड़ामन को वहाँ का राजा बना दिया। चूड़ामन राय कोई भी कार्य अंग्रेजों की सलाह से ही करता था और इससे जनजातीय हित प्रभावित होते थे। इससे लोगों में असंतोष व्याप्त हो गया और चेरो सरदार भूषण सिंह के नेतृत्व में खुला विद्रोह शुरू हो गया। चूड़ामन राय ने अंग्रेजों से मदद की गुहार लगाई और इस विद्रोही दल पर टूट पड़ा। कर्नल जोंस ने इस विद्रोह को कुचलने के हरसंभव प्रयास किए, लेकिन उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली। दो वर्षों तक चेरो विद्रोही अंग्रेजों और चूड़ामन राय को छकाते रहे। अंततः भूषण सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। सन् 1802 में इस विद्रोही चेरो नेता को फाँसी दे दी गई और इसके बाद यह विद्रोह भी धीरे-धीरे समाप्त हो गया।
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