Daily The Hindu Editorial - Northeast Monsoon A Detailed Explanation of India’s Second Monsoon

उत्तर-पूर्वी मानसून: भारत के दूसरे मानसून की विस्तृत व्याख्या

यह लेख “The Hindu” में प्रकाशित “The other monsoon: On the northeast monsoon” पर आधारित है, इस लेख में बताया गया है की भारत में मानसून का महत्व कृषि, अर्थव्यवस्था और जल प्रबंधन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। हाल ही में संपन्न हुए दक्षिण-पश्चिम मानसून ने सकारात्मक परिणाम दिए, जिसकी वर्षा सामान्य से 8% अधिक रही। इस मानसून के समाप्त होते ही ध्यान भारत के “दूसरे मानसून” यानी उत्तर-पूर्वी मानसून की ओर स्थानांतरित हो गया है। यह मुख्यतः तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में वर्षा लाता है और खासकर तमिलनाडु के लिए प्रमुख जलस्रोत माना जाता है। इस लेख में उत्तर-पूर्वी मानसून के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई है।

उत्तर-पूर्वी मानसून की परिभाषा और महत्व

उत्तर-पूर्वी मानसून का नाम उन हवाओं की दिशा से लिया गया है जो भूमि से समुद्र की ओर बहती हैं। दक्षिण-पश्चिम मानसून के लौटने के बाद, अक्टूबर के मध्य में, हवाओं का यह उलटाव होता है जो देश के दक्षिणी हिस्सों में बारिश लाता है। यह मानसून भारत की वार्षिक वर्षा का लगभग 11% ही लाता है, लेकिन इसके बावजूद यह तमिलनाडु जैसे राज्यों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। तमिलनाडु के लिए यह मानसून मुख्य वर्षा स्रोत है, क्योंकि यहाँ की फसलों की उत्पादकता इसी पर निर्भर करती है।

मौसम विभाग की भविष्यवाणी और वर्षा का प्रभाव

इस वर्ष भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने अनुमान लगाया है कि उत्तर-पूर्वी मानसून की वर्षा सामान्य से 12% अधिक होगी। हालांकि इसका विस्तार और मात्रा सीमित होती है, लेकिन इसका प्रभाव गहरा होता है, खासकर तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की कृषि पर। इन क्षेत्रों में चावल और मक्का जैसी फसलें इसी मानसून पर निर्भर होती हैं। इसके अलावा, अगर इस मानसून में कमी होती है तो कृषि उत्पादन में भारी गिरावट दर्ज की जाती है। IMD के अनुसार, इस साल “लानीना” की स्थिति वर्षा को बढ़ाने में सहायक हो सकती है, लेकिन वैश्विक मॉडल इस स्थिति का सटीक समय तय करने में असमर्थ रहे हैं।

उत्तर-पूर्वी मानसून का अस्थिर व्यवहार

दक्षिण-पश्चिम मानसून की तुलना में उत्तर-पूर्वी मानसून में अधिक भिन्नता पाई जाती है। जहां दक्षिण-पश्चिम मानसून में 10% की भिन्नता होती है, वहीं उत्तर-पूर्वी मानसून में यह 25% तक होती है। इसका मतलब यह है कि इस मानसून में भारी वर्षा और सूखे दोनों ही स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, 2015 में चेन्नई में इस मानसून के कारण भीषण बाढ़ आई थी, जिसमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ। इसके विपरीत, 2019 में इसी शहर को पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ा। इससे स्पष्ट है कि इस मानसून का अस्थिर व्यवहार गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।

बेहतर पूर्वानुमान और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

हाल के वर्षों में पूर्वानुमान प्रणाली में सुधार हुआ है, जिससे उत्तर-पूर्वी मानसून को अधिक ध्यान मिलने लगा है। हालांकि, अभी भी अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, खासकर शहरी बाढ़ के संदर्भ में। जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए, इसके प्रभाव को समझना और इसके आधार पर रणनीतियाँ बनाना आवश्यक है। राज्य की आपदा प्रबंधन एजेंसियों को इस मानसून की अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए अपने बजट और योजनाओं में आवश्यक बदलाव करने चाहिए।

शहरी बाढ़ और आपदा प्रबंधन की आवश्यकता

उत्तर-पूर्वी मानसून के दौरान शहरी क्षेत्रों में बाढ़ की संभावना अधिक रहती है। खासकर चेन्नई जैसे शहरों में हर साल बाढ़ और जलभराव की समस्याएं होती हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण यह समस्या और गंभीर हो सकती है। इसलिए, शहरी बाढ़ प्रबंधन के लिए दीर्घकालिक रणनीतियाँ तैयार करनी होंगी। सरकारों को बुनियादी ढांचे में सुधार के साथ-साथ आपदा प्रबंधन एजेंसियों को भी इस दिशा में सशक्त बनाना चाहिए। जल निकासी व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना और बाढ़-रोधी योजनाओं का निर्माण करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

उत्तर-पूर्वी मानसून भारत के दक्षिणी भागों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। हालांकि यह मानसून सीमित क्षेत्र और कम वर्षा लाता है, फिर भी इसका कृषि और शहरी क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसके अस्थिर स्वभाव के कारण इसकी सटीक भविष्यवाणी और प्रभावी प्रबंधन की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन और बढ़ती अनिश्चितताओं के इस दौर में, इस मानसून के प्रभाव को समझना और शहरी बाढ़ जैसे संकटों से निपटने के लिए पर्याप्त तैयारी करना जरूरी हो गया है। सरकार और नागरिक दोनों को मिलकर इसके लिए तैयार रहना होगा।

 

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