नंद वंश के अंतिम सम्राट घनानंद को पराजित करके चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। इस वंश में चंद्रगुप्त मौर्य तथा अशोक सर्वाधिक शक्तिशाली शासक हुए।
चंद्रगुप्त मौर्य [Chandragupt Mourya]
मौर्य साम्राज्य का संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य था। इसके जन्म और जाति के बारे में विद्वानों में मतभेद है। ‘ब्राह्मण ग्रंथ’, ‘विष्णु पुराण’ तथा ‘मुद्राराक्षस’ के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य शूद्र था, जबकि स्पूनर के अनुसार वह पारसीक था। जैन एवं बौद्ध ग्रंथ इसे मोरीय क्षत्रिय वंश से संबंधित मानते हैं। चंद्रगुप्त मौर्य को सैंड्रोकोट्स, एंड्रोकोट्स, आदि नामों से भी जाना जाता है।
कौटिल्य की सहायता से चंद्रगुप्त मौर्य ने सर्वप्रथम उत्तर-पश्चिम के राज्य पंजाब एवं सिंध को विजित किया। इसके बाद मगध साम्राज्य पर विजय प्राप्त की। सिकंदर की मृत्यु के पश्चात् सेल्यूकस बेबीलोन का राजा बना। भारत विजय को ध्यान में रखते हुए काबुल के मार्ग से होते हुए वह सिंधु नदी की ओर बढ़ा, जहाँ उसका सामना चंद्रगुप्त मौर्य की सेना से हुआ। इस युद्ध में सेल्यूकस पराजित हुआ तथा उसने 303 ई.पू. चंद्रगुप्त मौर्य से संधि की। सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से किया तथा दहेज के रूप में उसने हेरात, कंधार, मकरान तट, काबुल को दिया। इसके बदले में चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस को 500 हाथी उपहारस्वरूप प्रदान किए। सेल्यूकस ने मेगास्थनीज नामक एक राजदूत चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा, जिसने ‘इंडिका’ नामक पुस्तिका की रचना की।
चंद्रगुप्त मौर्य को भारत का मुक्तिदाता कहा जाता है। शासन के अंतिम वर्ष में वह अपना सिंहासन त्यागकर भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोला (मैसूर) में चंद्रगिरि पर्वत पर तपस्या करने चला गया, जहाँ उसने संलेखना विधि द्वारा अपने प्राण त्याग दिए।
बिंदुसार (298 – 273 ई.पू.) [Bindusar]
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिंदुसार 298 ई.पू. में मगध साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। यूनानियों ने इसे अमित्रचेट्स या ‘अमित्रघात’ कहा है, जिसका अर्थ है-शत्रुओं का नाश करनेवाला। इसका एक अन्य नाम सिंहसेन भी था।
बिंदुसार के समय में तक्षशिला में हुए विद्रोह को दबाने के लिए मालवा या उज्जैन के प्रशासक अशोक को भेजा गया था। सीरिया के शासक एंटियोक प्रथम ने डायमेकस नामक राजदूत तथा मिस्र के शासक टॉल्मी द्वितीय फिलाडेलफस ने ‘डायनोसियस’ नामक राजदूत बिंबिसार के दरबार में भेजा। बिंदुसार अपने पिता की भाँति प्रशासन का कार्य करता था, उसने अपने साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया तथा प्रत्येक प्रांत में उपराजा के रूप में कुमार नियुक्त किया। प्रशासनिक कार्यों के लिए उसने मंत्रिपरिषद् की स्थापना की तथा अनेक महामात्यों की नियुक्ति भी की। बिंदुसार ने 25 वर्षों तक राज्य किया तथा 273 ई.पू. में उसकी मृत्यु हो गई।
अशोक (273 – 232 ई.पू.) [Ashok]
बिंदुसार का उत्तराधिकारी अशोक महान् हुआ, जो 273 ई.पू. में मगध की गद्दी पर आसीन हुआ। सिंहली साहित्य के अनुसार अशोक अपने 99 भाइयों की हत्या कर सम्राट् बना, लेकिन इस विषय में मतभेद है। अशोक का अपने भाइयों के साथ संघर्ष हुआ, जो 4 वर्षों तक चला, क्योंकि अशोक 273 ई.पू. में शासक नियुक्त हुआ और 4 वर्ष बाद 269 ई.पू. में उसका राज्याभिषेक हुआ।
नेपाली साहित्य के अनुसार शासक बनने से पूर्व अशोक तक्षशिला का गवर्नर था, जबकि श्रीलंका साहित्य के अनुसार वह उज्जैन का गवर्नर था। अशोक को प्रारंभ में चंडाशोक या कामाशोक कहा गया है। अशोक नाम का उल्लेख उसके चार अभिलेखों – मास्की, गुर्जरा, नेत्तूर और उडेगोलम में मिलता है। भाबू अभिलेख में उसे ‘प्रियदर्शी’, जबकि मास्की में ‘बुद्ध शाक्य’ कहा गया है।
अशोक ने अपने जीवन में एकमात्र कलिंग युद्ध लड़ा, जिसकी जानकारी 13वें बृहत शिलालेख से मिलती है। यह युद्ध शासन के 8वें वर्ष 261 ई.पू. में लड़ा गया। इस युद्ध की विभीषिका ने अशोक के हृदय को परिवर्तित कर दिया। उसने युद्ध नीति को छोड़कर धम्म नीति को अपनाया एवं विश्व का प्रथम शांति प्रवर्तक बना। कौटिल्य के अनुसार, कलिंग युद्ध का मुख्य कारण हाथियों के क्षेत्र को प्राप्त करना था, जबकि प्लिनी के अनुसार व्यापारवाणिज्य के लिए समुद्री तट प्राप्त करने के उद्देश्य से कलिंग युद्ध लड़ा गया। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ के अनुसार, अशोक बौद्ध धर्म ग्रहण करने से पहले कट्टर शैव था। बौद्ध धर्म में अशोक को दीक्षित करनेवाला विद्वान् उपगुप्त या मोग्गलिपुत्रतिस्स था।
अशोक ने अपने साम्राज्य को 5 प्रांतों में बाँटा था –
1. उत्तरापथ प्रांत
राजधानी : तक्षशिला
2. दक्षिणापथ प्रांत
राजधानी : स्वर्णगिरि
3. अवंति प्रांत
राजधानी : उज्जैन
4. कलिंग प्रांत
राजधानी : तोसली
5. प्राची/पूर्वी राज्य
राजधानी : पाटलिपुत्र
संपूर्ण मौर्य राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थित थी। अशोक ने कश्मीर में श्रीनगर एवं नेपाल में ललितपाटन नामक नगर की स्थापना की। रुद्रदमन के जूनागढ़ अभिलेख के अनुसार, इस क्षेत्र में उर्जयंत पर्वत पर पुष्यगुप्त द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य ने सुदर्शन झील का निर्माण कराया था, जिसकी मरम्मत अशोक ने तुषाष्प द्वारा, रुद्रदमन ने सुविशाख द्वारा तथा स्कंदगुप्त ने चक्रपालित द्वारा कराई थी। तुषाष्प अशोक के समय अवंति का गवर्नर था, जो एक यूनानी था। अशोक के बाद मौर्य साम्राज्य कई भागों में बँट गया,
जैसे – पूर्वी भाग अर्थात् बिहार, बंगाल, उत्तर-प्रदेश आदि। इस क्षेत्र का शासक दशरथ बना, जिसने इनकी राजधानी पाटलिपुत्र को ही रखा।
पश्चिमी भाग में राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी मध्य प्रदेश प्रांत थे, जिसका शासक अशोक का एक अन्य पौत्र संप्रति बना।
अशोक के बाद संप्रति को मौर्य वंश का श्रेष्ठ शासक कहा जाता है। राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर क्षेत्र का शासक जालौक बना। मौर्य वंश के अंतिम शासक वृहद्रथ की हत्या185 ई.पू. में ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा कर दी गई तथा शुंग वंश की स्थापना की गई।
अशोक के अभिलेख (Records of Ashok)
अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है
1. शिलालेख
2. स्तंभलेख तथा
3. गुहालेख
शिलालेख (Inscription)
अशोक चतुर्दश शिलालेख के नाम से प्रसिद्ध ये शिलालेख 14 विभिन्न लेखों का एक समूह है, जो 8 भिन्नभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं। ये शिलालेख निम्नलिखित हैं
1. गिरनार (काठियावाड़, गुजरात में जूनागढ़ के समीप) (ब्राह्मी लिपि में)
2. धौली (पुरी, उड़ीसा) (ब्राह्मी लिपि में)
3. जौगढ़ (गंजाम जिला, उड़ीसा) (ब्राह्मी लिपि में)
4. कालसी (देहरादून) (ब्राह्मी लिपि में)
5. येर्रागडी (कर्नल जिला, आंध्र प्रदेश) (ब्राह्मी लिपि में)
6. सोपारा (ठाणे जिला, महाराष्ट्र) (ब्राह्मी लिपि में)
7. शाहबाजगढ़ी (पेशावर, पाकिस्तान) (खरोष्ठी लिपि में)।
8. मानसेहरा (हजारा, पश्चिमी पाकिस्तान) (खरोष्ठी लिपि में)
लघु शिलालेख (Small Inscription)
ये शिलालेख 14 शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं, इसलिए इन्हें लघु शिलालेख कहा गया है। ये निम्नलिखित स्थानों से प्राप्त हुए हैं
1. सासाराम (बिहार),
2. रूपनाथ (जबलपुर, मध्य प्रदेश),
3. गुर्जरा (दतिया, मध्य प्रदेश),
4. भबूर (वैराट) (जयपुर, राजस्थान),
5. मास्की (रायचूर, कर्नाटक),
6. ब्रह्मगिरि (चितलदुर्ग, कर्नाटक),
7. सिद्धपुर (ब्रह्मगिरि),
8. जटिगरामेश्वर (ब्रह्मगिरि),
9. येर्रागुड़ी (कर्नूल जिला, आंध्र प्रदेश),
10. गवीमठ (मैसूर),
11. पालकीगुंडू (रायचूर, कर्नाटक),
12. राजूल मंडगिरि (कर्नूल जिला, आंध्र प्रदेश),
13. अहरौरा (मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश)।
स्तंभलेख (Column)
अशोक के बड़े स्तंभलेखों की संख्या – 7 है, जो मुख्य रूप से छह भिन्न-भिन्न स्थानों में पाए गए हैं।
- दिल्ली-टोपरा स्तंभलेख – यह स्तंभलेख अंबाला (हरियाणा) और सिर्सवा (उत्तर प्रदेश) से प्राप्त हुआ है, जिसे फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली में स्थापित किया।
- दिल्ली-मेरठ स्तंभलेख – यह पहले मेरठ में था, बाद में फिरोजशाह तुगलक द्वारा दिल्ली में लाया गया।
- लौरिया अरेराज स्तंभलेख – यह स्तंभलेख बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में लौरिया अरेराज में स्थित है।
- लौरिया नंदनगढ़ स्तंभलेख – यह बिहार के पश्चिमी चंपारण में स्थित है।
- रामपुरवा स्तंभलेख – यह स्तंभलेख पूर्वी चंपारण जिले में अवस्थित है।
- प्रयाग स्तंभलेख – यह पहले कौशांबी में स्थित था, जिसे बाद में अकबर द्वारा इलाहाबाद के किले में रखवाया गया है।
लघु स्तंभलेख (Small Column Article)
अशोक की राजकीय घोषणाएँ जिन स्तंभों पर उत्कीर्ण हैं, उन्हें साधारण तौर लुपर लघु स्तंभलेख कहा जाता है।
ये निम्नलिखित स्थानों में पाए जाते हैं-
1. सारनाथ – वाराणसी, उत्तर प्रदेश।
2. कौशांबी – इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश।
3. साँची – रायसेन जिला, मध्य प्रदेश।
4. रूम्मिनदेई – नेपाल की तराई में परारिया ग्राम के समीप।
5. निगलीगाँव – निगलीगाँव सागर नामक बड़े सरोवर के तट पर नेपाल की तराई में रूम्मिनदेई से लगभग 13 किमी. पश्चिमोत्तर में स्थित है।
गुहा लेख (Cave Article)
दक्षिण बिहार के गया जिले में स्थित बराबर पहाड़ी की तीन गुफाओं की दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीर्ण मिले हैं, जिनमें अशोक द्वारा आजीवक संप्रदाय के साधुओं के निवास के लिए गुहा दान दिए जाने का विवरण है। ये सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं।
अशोक का सबसे लंबा स्तंभलेख उसका सातवाँ लेख है तथा सबसे छोटा स्तंभलेख रूम्मिनदेई स्तंभलेख है। कौशांबी के लघु स्तंभलेख में अशोक अपने महामात्यों को संघ भेद रोकने का आदेश देता है।
मौर्य प्रशासन (Maurya Administration)
स्मिथ ने मौर्यों की सीमा को भारत की वैज्ञानिक या भौगोलिक सीमा कहा है। मौर्यों का विशाल साम्राज्य प्रशासनिक दृष्टिकोण से राष्ट्र कहलाता था। संपूर्ण राष्ट्र चंद्रगुप्त मौर्य-बिंदुसार के समय 4 राज्य या चक्र तथा अशोक के समय 5 राज्यों में विभाजित था।
ये प्रांत थे –
- उत्तरापथ – इसकी राजधानी तक्षशिला थी। इसके अंतर्गत अफगानिस्तान, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पाकिस्तान तथा पंजाब सम्मिलित थे।
- अवंति – इसकी राजधानी उज्जैनी थी। इसके अंतर्गत राजस्थान, गुजरात तथा पश्चिमी मध्य प्रदेश सम्मिलित थे ।
- दक्षिणापथ – इसकी राजधानी स्वर्णगिरि थी। इसके अंतर्गत दक्षिणी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गोआ, कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश सम्मिलित थे।
- प्राची – इसकी राजधानी पाटलिपुत्र था। इसके अंतर्गत दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल का तराई क्षेत्र तथा बँग्लादेश सम्मिलित थे।
- कलिंग – इसकी राजधानी तोसाली थी। इसके अंतर्गत उड़ीसा क्षेत्र सम्मिलित था तथा सबसे छोटा राज्य था। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी।
मौर्य प्रशासन के अंगों को निम्न रूप से दर्शाया जा सकता है
राष्ट्र → प्रांत → मंडल (कमिश्नरी) → जनपद → स्थानिक (800 गाँव) → द्रोणमुख (400 गाँव) → खार्चटिक (200 गाँव) → संग्रहण 100 गाँव) → ग्राम (सबसे छोटी ईकाई)।
ग्रामीण क्षेत्र से प्राप्त राजस्व को ‘राष्ट्र’ कहा जाता था, जबकि नगर से प्राप्त राजस्व को ‘दुर्ग’ कहा जाता था। दोनों प्रकार के राजस्व समाहर्ता जमाकर सीधे केंद्र के पास भेजता था।
न्याय प्रणाली (Justice System)
मौर्य काल में दो प्रकार के न्यायालय थे –
1. धर्मस्थीय (दीवानी न्यायालय)
2. कंटकशोधन (फौजदारी न्यायालय)
सामाजिक एवं आर्थिक जीवन (Social and Economic Life)
कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र’ में समाज के चारों वर्गो-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का उल्लेख किया है। अशोक के शिलालेखों में दास और कर्मकार का उल्लेख किया गया है। परिवार में स्त्रियों की दशा स्मृति काल की अपेक्षा अधिक अच्छी थी। उन्हें पुनर्विवाह तथा नियोग की अनुमति थी, लेकिन उन्हें बाहर जाने की स्वतंत्रता नहीं थी। कौटिल्य ने ऐसी स्त्रियों को ‘अनिष्कासिनी’ कहा है। मौर्य युग में गणिका या वेश्याओं का उल्लेख मिलता है। स्वतंत्र रूप से वेश्यावृत्ति करनेवाली स्त्रियाँ ‘रूपाजीवा’ कहलाती थीं। समाज में विधवा विवाह को मान्यता थी। स्वतंत्र रूप से जीवन व्यतीत करनेवाली विधवाएँ ‘क्षेदवासिनी’ कहलाती थी।
तक्षशिला, उज्जैन एवं वाराणसी मौर्य काल में शिक्षा के प्रमुख केंद्र माने जाते थे। इस समय प्रौद्योगिकी शिक्षा का भी विकास हुआ, जिसकी व्यवस्था श्रेणियों द्वारा की जाती थी। नट, नर्तक, गायक, वादक आदि समाज में लोगों का मनोरंजन किया करते थे। जुआ, शराब, शिकार इत्यादि भी मनोरजंन के साधन थे।
राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन और वाणिज्य-व्यापार पर आधारित थी। इनको सम्मिलित रूप से वार्ता कहा गया है। अर्थशास्त्र में धान की फसल को उत्तम और गन्ने की फसल को सबसे निकृष्ट बताया गया है।
मौर्यों की राजकीय मुद्रा ‘पण’ थी। यह 3/4 तोले के बराबर चाँदी का सिक्का था। अधिकारियों को वेतन आदि देने में इसी का प्रयोग होता था। इस काल के सिक्के स्वर्ण, चाँदी और ताँबे के बने होते थे। स्वर्ण सिक्के निष्क एवं सुवर्ण, चाँदी के सिक्के पण या कार्षापण तथा ताँबे के सिक्के मासक एवं काकणि कहलाते थे। इन सिक्कों को आहत सिक्का भी कहा जाता था।
मौर्य वंश का पतन (Fall of the Maurya Dynasty)
मौर्य वंश के पतन के अनेक कारण थे –
- महामहोपाध्याय हरि प्रसाद शास्त्री के अनुसार, अशोक की धार्मिक नीति पतन का मुख्य कारण थी। उसकी नीति बौद्धों के पक्ष में और ब्राह्मणों के विरोध में थी। वृहद्रथ की हत्या ब्राह्मण धर्म की प्रतिक्रिया थी, लेकिन हेमचंद्र राय चौधरी इसे अस्वीकार करते हैं। उनके अनुसार पशु हिंसा पूर्ण प्रतिबंधित थी एवं स्वयं प्रधानमंत्री तथा सेनापति पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण था अर्थात् अशोक की नीति ब्राह्मण विरोधी नहीं थी। वृहद्रथ की हत्या एक सैनिक क्रांति थी, न कि धार्मिक प्रतिक्रिया।
- हेमचंद्र राय चौधरी के अनुसार, अशोक की शांतिप्रियता और अहिंसा की नीति मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण थी, क्योंकि इससे सेना का उत्साह कम हो गया। उत्तराधिकारी युद्धघोष के स्थान पर धम्मघोष पर बल देने लगे। नीलकंठ शास्त्री ने राय चौधरी के कथन का विरोध किया है और कहा कि अशोक की शांतिप्रिय नीति में कट्टरता थी। उसने अपनी सेना को बनाए रखा था तथा एक सीमा तक ही युद्ध नीति का त्याग किया था।
- अयोग्य उत्तराधिकारी तंत्र।
- अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति अशोक की दानशीलता के कारण अशोक के बाद अर्थव्यवस्था पर संकट उत्पन्न हो गया।
- प्रशासन में केंद्रीयकरण रोमिला थापर इसे पतन का मुख्य कारण मानती हैं, क्योंकि इससे प्रशिक्षित अधिकारी तंत्र का अभाव हो गया।
- निहार रंजन राय के अनुसार, मौर्य शासक विदेशी प्रभाव को अपनाने लगे, जिसको जनता ने अस्वीकार कर दिया।
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