हिन्दी भाषा और उसकी बोलियाँ
भारत की भाषाओं पर 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में व्यापक कार्य करने वाले सर जार्ज ग्रियर्सन ने हिन्दी का क्षेत्र अम्बाला (हरियाणा) से लेकर पर्व में बनारस (उत्तर प्रदेश) तक और उत्तर में नैनीताल की तलहटी (उत्तराखंड) से लेकर दक्षिण में बालाघाट (मध्य प्रदेश) तक निश्चित किया था। सर जार्ज ग्रियर्सन ने बिहारी, राजस्थानी और पहाड़ी बोलियों को हिन्दी के अन्तर्गत नहीं लिया, जबकि ये सभी हिन्दी के अन्तर्गत आती हैं।
हिन्दी भाषा के क्षेत्रों का वर्गीकरण
हिन्दी भाषा के क्षेत्रों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
- पूर्वी हिन्दी का क्षेत्र – पूर्वी हिन्दी का क्षेत्र कानपुर से मिर्जापुर, लखीमपुर, नेपाल की सीमा से लेकर दुर्ग, बस्तर की सीमा तक फैला हुआ है।
- पश्चिमी हिन्दी का क्षेत्र – पश्चिमी हिन्दी का क्षेत्र पश्चिम में पंजाब और राजस्थान की सीमा से लेकर पूर्व में अवधी तथा बघेली बोली की सीमा, उत्तर में पहाड़ी तथा दक्षिण में मराठी भाषा के क्षेत्र तक हुआ है।
उपभाषाएँ, विभाषाएँ, बोलियाँ या प्रान्तीय भाषाएँ
किसी प्रान्त/प्रदेश या उप-प्रान्त की बोलचाल की तथा साहित्य रचना की भाषा, विभाषा या उपभाषा या बोली कहलाती है।
हिन्दी प्रदेश में प्राकृत पाँच रूपों में थीं – महाराष्ट्री, शौरसेनी, अर्द्धमागधी, मागधी और पैचाशी। इन्ही पाँच अपभ्रंशों और फिर उनसे हिन्दी की पाँच उपभाषाओं – राजस्थनी हिंदी, पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, बिहारी हिन्दी और पहाड़ी हिन्दी का हुआ।
राजस्थानी हिन्दी, पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, बिहारी हिंदी और पहाड़ी हिंदी को उपभाषा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके अन्तर्गत अनेक बोलियाँ तथा उपबोलियाँ हैं। इनमें से पहाड़ी हिन्दी को छोड़कर अन्य सभी में पर्याप्त साहित्य उपलब्ध है। इन सभी उपभाषाओं का साहित्य हिंदी साहित्य के अंतर्गत पढ़ा तथा पढ़ाया भी जाता है। अतएव इन सबको हिन्दी की उपभाषाएँ माना जाता है।
1. राजस्थानी हिन्दी
यह उपभाषा पूरे राजस्थान में, सिन्ध और मालवा जनपद में बोली जाती है। राजस्थानी उपभाषा की प्रमुख बोलियाँ मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती और मालवी हैं। एक युग में राजस्थानी साहित्य अत्यन्त समृद्ध था।
2. बिहारी हिन्दी
बिहारी हिन्दी उपभाषा सम्पूर्ण बिहार एवं झारखण्ड में तथा उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है। बिहारी हिन्दी की चार प्रमुख बोलियाँ – भोजपुरी, मगही, मैथिली और अंगिका हैं।
3. पहाडी हिन्दी
इस उपभाषा के अन्तर्गत अनेक बोलियाँ बोली जाती हैं। डॉ. धीरेन्द्र वर्मा के अनुसार इनको तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
- पश्चिमी पहाड़ी,
- मध्य पहाड़ी
- पूर्वी पहाड़ी।
पश्चिमी पहाड़ी – बोलियों का क्षेत्र शिमला का सीमावर्ती प्रदेश है। इनमें कोई साहित्यिक रचना नहीं मिलती है।
मध्य पहाड़ी के दो भेद हैं
- कुमायूँनी – जो कुमायूँ प्रदेश के अल्मोड़ा-नैनीताल जिलों में बोली जाती है।
- गढ़वाली – जो गढ़वाल तथा मसूरी के निकटवर्ती क्षेत्रों में बोली जाती है।
इन दोनों में भी साहित्यिक रचना का अभाव है।
पूर्वी पहाड़ी का क्षेत्र नेपाल देश है। इसमें बहुत कम साहित्य उपलब्ध है।
4. पूर्वी हिन्दी
पूर्वी हिन्दी उपभाषा का क्षेत्र कानपुर से मिर्जापुर तक और लखीमपुर की उत्तरी सीमा से दुर्ग, बस्तर की सीमा तक है। पूर्वी हिन्दी उपभाषा के अन्तर्गत तीन बोलियाँ हैं – अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी। अवधी में बहुत अधिक साहित्य मिलता है।
5. पश्चिमी हिन्दी
पश्चिमी हिन्दी हिन्दी उपभाषा का क्षेत्र पश्चिम में अंबाला से लेकर पूर्व में कानपुर की पूर्वी सीमा तक एवं उत्तर में देहरादून से दक्षिण में मराठी की सीमा तक है। साहित्यिक दृष्टि से यह उपभाषा बहुत ही सम्पन्न है। इस उपभाषा के अन्तर्गत पाँच बोलियाँ आती हैं
- बांगरू या हरियाणवी,
- खड़ी बोली या कौरवी,
- ब्रजभाषा,
- बुन्देली अथवा बुन्देलखण्डी
- कन्नौजी।
हिन्दी भाषा की बोलियाँ
उपभाषाएँ | बोलियाँ |
1. पश्चिमी हिन्दी | 1. कौरवी 2. हरियाणवी 3. दक्खिनी 4. ब्रजभाषा 5. बुन्देला 6. कन्नौजी |
2. पूर्वी हिन्दी | 1. अवधी 2. बघेली 3. छत्तीसगढ़ी |
3. राजस्थानी | 1. मारवाड़ी 2. जयपुरी या ढूंढाड़ी 3. मेवाती 4. मालवी |
4. बिहारी | 1. भोजपुरी 2. मगही 3. मैथिली |
5. पहाड़ी | 1. कुमायूँनी 2. गढ़वाली |
राज्यवार बोलियों की विद्यमानता
राज्य | बोलियाँ |
1. उत्तर प्रदेश | कौरवी (खड़ी बोली), ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुन्देली, अवधी, भोजपुरी। |
2. उत्तराखण्ड | गढ़वाली, कुमायूँनी। |
3. हरियाणा | हरियाणवी। |
4. राजस्थान | मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती, मालवी। |
5. मध्य प्रदेश | बघेली, नीमाड़ी, मालवी। |
6. छत्तीसगढ़ | छत्तीसगढ़ी। |
7. बिहार | भोजपुरी, मगही, मैथिली। |
8. झारखण्ड | भोजपुरी, अंगिका। |
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