वात्सल्य रस (Vatsalya Ras)

वात्सल्य रस (Vatsalya Ras)

May 13, 2023

वात्सल्य रस (Vatsalya Ras)

  • छोटे बालकों के बाल-सुलभ मानसिक क्रिया-कलापों के वर्णन से उत्पन्न वात्सल्य प्रेम की परिपक्वावस्था को वात्सल्य रस कहा जाता है।
  • माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम, गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम आदि का भाव स्नेह कहलाता है यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है।

वात्सल्य रस के अवयव (उपकरण)

  • वात्सल्य रस का स्थाई भाव − वत्सलता या स्नेह।
  • वात्सल्य रस का आलंबन (विभाव) − पुत्र, शिशु, एवं शिष्य।
  • वात्सल्य रस का उद्दीपन (विभाव) − बालक की चेष्टाएँ, तुतलाना, हठ करना आदि तथा उसके रूप एवं उसकी वस्तुएँ ।
  • वात्सल्य रस का अनुभाव − स्नेह से बालक को गोद मे लेना, आलिंगन करना, सिर पर हाथ फेरना, थपथपाना आदि।
  • वात्सल्य रस का संचारी भाव − हर्ष, गर्व, मोह, चिंता, आवेश, शंका आदि।

वात्सल्य रस के उदाहरण – 

(1) बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति।
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति।।

(2) किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत ।
मनिमय कनक नंद कै आँगन, बिंब पकरिबैं धावत ॥
कबहुँ निरखि हरि आपु छाहँ कौं, कर सौं पकरन चाहत ।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत ॥

(3) झूले पर उसे झूलाऊंगी दूलराकर लूंगी वदन चुम
मेरी छाती से लिपटकर वह घाटी में लेगा सहज घूम।

(4) सन्देश देवकी सों कहिए,
हौं तो धाम तिहारे सुत कि कृपा करत ही रहियो। 
तुक तौ टेव जानि तिहि है हौ तऊ, मोहि कहि आवै
प्रात उठत मेरे लाल लडैतहि माखन रोटी भावै। 

(5) चलत देखि जसुमति सुख पावै
ठुमक-ठुमक पग धरनी रेंगत
जननी देखि दिखावे।।

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