Daily The Hindu Editorial - SEBI’s Reformation A New Direction for Ethics and Transparency

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की अखंडता पर सवाल

यह लेख ‘The Hindu‘ समाचार पत्र में प्रकाशित लेख “Step down: On upholding the integrity of SEBI” है, जो सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) की निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने पर केंद्रित है।

सेबी का सुधार: नैतिकता और पारदर्शिता की नई दिशा 
(SEBI’s Reformation: A New Direction for Ethics and Transparency)

1992 के हर्षद मेहता घोटाले के बाद से भारत की प्रतिभूति नियमावली और निगरानी प्रणाली इतनी गहराई से कभी जांच के दायरे में नहीं आई, जितनी कि अब आ रही है। उस घोटाले के बाद, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) को एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया था। इससे पहले, इसे अप्रैल 1988 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा एक गैर-वैधानिक निकाय के रूप में गठित किया गया था। आज, SEBI पर शीर्ष स्तर पर पक्षपात और हितों के टकराव के आरोप लगाए जा रहे हैं। भारत का शेयर बाजार अब $5.3 ट्रिलियन का वित्तीय महाशक्ति बन चुका है, ऐसे में इस नियामक संस्था पर लगाए गए आरोपों के परिणामस्वरूप पूरे वित्तीय प्रणाली पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

SEBI की स्थापना और इसका महत्व

SEBI की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारतीय वित्तीय बाजार को विनियमित करना और निवेशकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। हर्षद मेहता घोटाले के बाद इसकी स्थापना ने भारतीय वित्तीय प्रणाली में विश्वसनीयता और सुरक्षा का एक नया मानक स्थापित किया। पिछले कुछ दशकों में, SEBI ने विभिन्न नियम और निरीक्षण प्रणालियाँ विकसित की हैं, जिससे भारत का प्रतिभूति बाजार विश्व स्तर पर एक भरोसेमंद और मजबूत बाजार के रूप में उभरा है।

SEBI और अदानी समूह की जांच

हाल ही में, न्यूयॉर्क स्थित शॉर्ट-सेलर हिन्डनबर्ग रिसर्च ने SEBI की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच पर अदानी समूह के खिलाफ चल रही जांच में हितों के टकराव और पक्षपात के आरोप लगाए हैं। अदानी समूह, जो अहमदाबाद स्थित एक बहुराष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर FMCG क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी है, पर शेयर बाजार में हेरफेर और कॉर्पोरेट कदाचार के आरोप लगे हैं। हिन्डनबर्ग ने दावा किया है कि माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने कुछ अपतटीय निधियों में निवेश किया था, जो टैक्स हेवन के रूप में माने जाने वाले बर्मुडा और मॉरीशस में स्थित हैं। इन निधियों में अदानी समूह के चेयरमैन गौतम अदानी के भाई विनोद अदानी ने भी निवेश किया था।

हितों के टकराव के आरोप

हिन्डनबर्ग के अनुसार, बुच दंपत्ति द्वारा संचालित सिंगापुर और भारत में स्थित परामर्श फर्में भी इस विवाद में शामिल हैं। धवल बुच की इन फर्मों ने भारतीय उद्योग के कई प्रमुख ग्राहकों को सलाह दी है। हालांकि बुच दंपत्ति का दावा है कि माधबी पुरी बुच के SEBI के बोर्ड में शामिल होने के बाद ये कंपनियाँ निष्क्रिय हो गईं, हिन्डनबर्ग का दावा है कि भारतीय इकाई ने वित्तीय वर्ष 2022-24 के दौरान लगभग $3,00,000 का राजस्व अर्जित किया।

संभावित परिणाम और SEBI की साख

यह मामला बहुत गंभीर है क्योंकि इसमें SEBI के शीर्ष अधिकारी सीधे तौर पर शामिल हैं। अदानी समूह के खिलाफ SEBI की जांच पिछले 18 महीनों से चल रही है और 24 में से 23 आरोपों की जांच पूरी हो चुकी है। यद्यपि यह सिद्ध नहीं हुआ है कि माधबी पुरी बुच ने अदानी समूह के मामले में किसी भी प्रकार का प्रभाव डाला हो, फिर भी उनके आचरण पर उठे संदेह को दूर करना महत्वपूर्ण है। इसके लिए यह आवश्यक हो जाता है कि माधबी पुरी बुच अपने पद से इस्तीफा दें, जिससे कि अदानी समूह के खिलाफ लगे आरोपों की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच हो सके।

निष्कर्ष

SEBI जैसी महत्वपूर्ण संस्था की अखंडता और विश्वसनीयता को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। यदि इसके शीर्ष अधिकारी पर लगे आरोपों के कारण संस्था की साख को नुकसान पहुंचता है, तो यह पूरे भारतीय वित्तीय बाजार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इसलिए, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच हो और माधबी पुरी बुच अपने पद से इस्तीफा देकर संस्था की विश्वसनीयता को बनाए रखें।

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