Uttarakhand Foundation Day Achievements and Challenges of 24 Years

उत्तराखंड स्थापना दिवस: 24 साल की उपलब्धियां और चुनौतियां

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उत्तराखंड स्थापना दिवस हर साल 9 नवंबर को मनाया जाता है, जो राज्य के अलग अस्तित्व में आने की वर्षगांठ है। उत्तराखंड का गठन 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के अंतर्गत हुआ था। इस प्रकार, उत्तराखंड उत्तर प्रदेश से अलग होकर भारत के 27वें राज्य के रूप में स्थापित हुआ। पर्वतीय क्षेत्रों के निवासियों के लिए यह दिवस उनकी 70 साल पुरानी मांग की पूर्ति का प्रतीक है, जो ब्रिटिश शासनकाल से ही एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग कर रहे थे। उत्तराखंड की स्थापना के पीछे लोगों की सांस्कृतिक पहचान और भौगोलिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखा गया था।

उत्तराखंड का भूगोल और संस्कृति

हिमालय की तलहटी में स्थित, उत्तराखंड का प्राकृतिक सौंदर्य इसे ‘देवभूमि’ की उपाधि देता है। राज्य की सीमाएं उत्तर में चीन (तिब्बत) और पूर्व में नेपाल से जुड़ी हुई हैं। उत्तराखंड की संस्कृति गहरी धार्मिक परंपराओं से जुड़ी हुई है, जिसमें चारधाम – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे पवित्र तीर्थ शामिल हैं। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस राज्य में घने जंगल, ग्लेशियर, नदियाँ और पर्वत चोटियाँ हैं, जो न केवल पर्यावरणीय बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।

उत्तराखंड की उपलब्धियां

उत्तराखंड के गठन के 24 सालों में राज्य ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, जो इसे भारत के मानचित्र पर एक विशिष्ट स्थान दिलाती हैं। कुछ प्रमुख उपलब्धियों को निम्नलिखित बिंदुओं में विस्तार से समझा जा सकता है:

1. औद्योगिक विकास में प्रगति

राज्य के औद्योगिक विकास को गति देने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कार्यकाल में सिडकुल (State Industrial Development Corporation of Uttarakhand Limited) की स्थापना की गई। हरिद्वार, देहरादून और ऊधम सिंह नगर जैसे जिलों में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना ने राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ाए। उत्तराखंड अब औद्योगिक नक्शे पर प्रमुख स्थान रखने लगा है, हालाँकि तिवारी सरकार के बाद औद्योगिक विकास की रफ्तार में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई है।

2. सड़क और परिवहन का विस्तार

राज्य गठन के बाद सड़क नेटवर्क का तेजी से विस्तार हुआ, जिससे ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों तक यातायात सुगम हुआ। केंद्र सरकार की ऑलवेदर रोड परियोजना के तहत चारधाम रूट का विकास किया गया, जिससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिला। इसके अतिरिक्त, दिल्ली से देहरादून एक्सप्रेसवे, भारतमाला और पर्वतमाला परियोजनाओं के तहत सड़क और रोपवे संपर्क के विकास की भी योजना बनाई गई है।

3. अर्थव्यवस्था में उछाल

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था ने राज्य बनने के बाद से उल्लेखनीय प्रगति की है। एक अनुमान के अनुसार, राज्य की अर्थव्यवस्था 17,000 करोड़ रुपये से बढ़कर अब तीन लाख करोड़ रुपये के पास पहुँच गई है। प्रति व्यक्ति आय भी लगभग 2,60,000 रुपये तक पहुँच गई है, जो राज्य की आर्थिक मजबूती का संकेत है।

4. बिजली और पानी की सुविधा

उत्तराखंड का हर गाँव और घर बिजली से रोशन हो चुका है। दीनदयाल उपाध्याय योजना और सौभाग्य योजना के तहत सभी घरों तक बिजली पहुंचाई गई है। जल जीवन मिशन के अंतर्गत पिछले दो सालों में करीब दस लाख घरों में पाइप द्वारा पानी की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।

उत्तराखंड की चुनौतियाँ और नाकामियां

विकास के बावजूद, उत्तराखंड को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, जिन पर काम करना अभी बाकी है। इनमें से कुछ चुनौतियाँ नीचे दी गई हैं:

1. पलायन की समस्या

उत्तराखंड का गठन पहाड़ी क्षेत्रों में पलायन रोकने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए किया गया था। लेकिन पिछले 24 सालों में लगभग 35 लाख से अधिक लोग रोजगार की तलाश में पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन कर चुके हैं। 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के 1,700 गांव वीरान हो चुके हैं। पलायन आयोग के पदाधिकारी भी इस समस्या को हल करने में सफल नहीं रहे हैं।

2. शिक्षा और स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार का अभाव

शिक्षा के क्षेत्र में उत्तराखंड का प्रदर्शन अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहा है। केंद्र सरकार के परफॉर्मेंस इंडेक्स में राज्य शिक्षा के विभिन्न मानकों में 18वें से 34वें स्थान पर खिसक गया है। स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। राज्य में पर्याप्त डॉक्टरों की उपलब्धता नहीं है और अधिकतर लोग निजी अस्पतालों पर निर्भर हैं।

3. कृषि और बागवानी में कमज़ोरी

उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए कृषि और बागवानी को आर्थिक समृद्धि का साधन माना गया था, लेकिन 24 सालों में इस क्षेत्र में अपेक्षित प्रगति नहीं हुई है। राज्य में कश्मीर और हिमाचल के सेब ही छाए रहते हैं, जबकि उत्तराखंड में सेब उत्पादन को बढ़ावा नहीं दिया जा सका है। उद्यान निदेशालय ने बागवानी के क्षेत्र में विश्वसनीय आंकड़ों की कमी पर भी सवाल उठाए हैं।

4. रोजगार के अवसरों का अभाव

उत्तराखंड के युवाओं के लिए रोजगार की कमी एक गंभीर समस्या है, जिससे कई युवा बेहतर अवसरों की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर रुख कर रहे हैं। सरकार राज्य में रोजगार के ठोस साधन विकसित करने में अक्षम रही है, जिससे युवाओं के पलायन की समस्या और बढ़ रही है।

5. पर्यावरणीय चुनौतियाँ

कोरोना काल के लॉकडाउन के दौरान राज्य में वायु गुणवत्ता में सुधार देखा गया था, लेकिन उसके बाद वायु प्रदूषण बढ़ा है। देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार और हल्द्वानी जैसे शहरों में प्रदूषण की समस्या बनी हुई है। केंद्र सरकार की राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत वर्ष 2026 तक प्रदूषणकारी कणों के स्तर में कमी का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें उत्तराखंड के कुछ शहरों को शामिल किया गया है।

निष्कर्ष: आगे की राह

उत्तराखंड ने पिछले 24 वर्षों में कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन राज्य के सामने अभी भी कई चुनौतियाँ हैं। राज्य में औद्योगिक और परिवहन क्षेत्र में अच्छी प्रगति हुई है, लेकिन पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और रोजगार की समस्याएं चिंता का विषय बनी हुई हैं। उत्तराखंड के विकास को नई ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए सरकार को योजनाबद्ध तरीके से काम करने की आवश्यकता है, जिससे प्रदेश के लोग अपने राज्य में ही रोजगार पा सकें और समृद्धि प्राप्त कर सकें।

 

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