भारत की उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) व्यवस्था में तत्काल सुधार की आवश्यकता: एक विश्लेषणात्मक सारांश
पृष्ठभूमि: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) की संरचना और महत्व
भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति को मापने का मुख्य मानक है, जिसका उपयोग रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) मौद्रिक नीति निर्धारण के लिए करता है। वर्तमान CPI श्रृंखला का आधार वर्ष 2012 है, जिसके अनुसार विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं का वजन निर्धारित किया गया है। CPI में खाद्य एवं पेय पदार्थों का भार 46% के करीब है, जो संपूर्ण मुद्रास्फीति माप को अत्यधिक प्रभावित करता है। CPI को अद्यतन करने की आवश्यकता पिछले कई वर्षों से महसूस की जा रही है, क्योंकि उपभोग पैटर्न, कीमतों की गतिशीलता और अर्थव्यवस्था की संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
ताज़ा स्थिति: अक्टूबर 2025 के आंकड़े और विश्लेषण
अक्टूबर 2025 के खुदरा मुद्रास्फीति आंकड़ों ने CPI में गहरी विसंगतियों को उजागर किया। आधिकारिक डेटा के अनुसार कुल CPI मुद्रास्फीति मात्र 0.25% रही—जनवरी 2012 के बाद सबसे कम। पहली नज़र में यह सकारात्मक दिखता है, लेकिन गहराई से देखने पर यह एक सांख्यिकीय भ्रम (statistical anomaly) प्रतीत होता है, न कि वास्तविक मूल्य-स्तर में गिरावट।
खाद्य एवं पेय पदार्थ श्रेणी में –3.7% की गिरावट दर्ज की गई, जो CPI के वर्तमान श्रृंखला इतिहास में अब तक की सर्वाधिक गिरावट है। किंतु यह गिरावट वास्तविक मूल्य-स्तर में कमी नहीं दर्शाती; इसकी मुख्य वजह पिछले वर्ष अक्टूबर 2024 में खाद्य मुद्रास्फीति का अत्यधिक उच्च— 9.7%—स्तर था। इस उच्च आधार प्रभाव (High Base Effect) ने इस वर्ष की खाद्य मुद्रास्फीति को कृत्रिम रूप से नकारात्मक कर दिया, जबकि बाजारों में सब्ज़ियों की वास्तविक कीमतों में वृद्धि देखी जा रही है।
CPI में अंतर्निहित विसंगतियाँ: भार निर्धारण और श्रेणीगत असंतुलन
लेख स्पष्ट करता है कि CPI की संरचना अत्यधिक झुकी (skewed) हुई है। 46% भार वाले खाद्य पदार्थ यदि उच्च आधार प्रभाव से नकारात्मक मुद्रास्फीति दिखाएँ, तो पूरा सूचकांक कृत्रिम रूप से नीचे खिंच जाता है। वहीं, CPI की अन्य प्रमुख श्रेणियों—ईंधन एवं प्रकाश, आवास, तंबाकू, और मिस्लेनियस—में मुद्रास्फीति पिछले वर्ष की तुलना में अधिक रही, जिसका अर्थ है कि वास्तविक जीवन में कीमतें बढ़ रही थीं, जबकि CPI कुछ और ही दिखा रहा था।
दिलचस्प रूप से GST दर कटौती का प्रभाव केवल कपड़ा एवं जूता-चप्पल श्रेणी में दृष्टिगोचर हुआ, जहाँ मुद्रास्फीति पिछले वर्ष की तुलना में कम रही। इससे CPI के भार और श्रेणियों की अप्रासंगिकता और असंतुलन अधिक स्पष्ट होता है।
CPI और वास्तविकता का disconnect: उपभोक्ताओं की धारणाएँ बनाम आधिकारिक डेटा
वास्तविकता और CPI के बीच disconnect का सबसे स्पष्ट उदाहरण RBI द्वारा सितंबर 2025 में किए गए उपभोक्ता सर्वेक्षण से मिलता है, जिसमें लोगों ने अपनी अनुभूत मुद्रास्फीति 7.4% बताई—जो कि आधिकारिक CPI आंकड़े (0.25%) से कई गुना अधिक है।
यह अंतर इंगित करता है कि CPI न तो वर्तमान उपभोग पैटर्न को दर्शाता है और न ही वास्तविक मूल्य परिवर्तन की अनुभूति को पकड़ पाता है। यह स्थिति नीति-निर्माण के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न करती है।
मौद्रिक नीति पर प्रभाव: RBI की निर्णय-प्रक्रिया और चुनौतियाँ
चूँकि RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ब्याज दरों के निर्णय के लिए CPI को प्राथमिक मानदंड के रूप में उपयोग करती है, इसलिए CPI में ऐसी विसंगतियाँ नीति-निर्माण को कठिन बना देती हैं। दिसंबर 2025 की MPC बैठक में RBI को यह निर्णय लेना होगा कि ब्याज दरें स्थिर रखें या कटौती की जाए।
इसके साथ ही, GDP वृद्धि दर भी GST दर कटौती से उत्पन्न मांग में अस्थायी बढ़ोतरी के कारण विकृत दिखाई दे रही है। इस संदर्भ में, यदि मुद्रास्फीति के आंकड़े भी सांख्यिकीय anomalies से प्रभावित हों, तो नीति निर्धारण और भी जटिल और जोखिमपूर्ण हो जाता है।
प्रशासनिक प्रयास: CPI श्रृंखला के अद्यतन की प्रक्रिया
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने घोषणा की है कि नया CPI श्रृंखला अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही (FY 2026 Q1) तक पूरी होने की संभावना है। आधार वर्ष के अद्यतन के साथ-साथ CPI बास्केट के भार, उपभोग वर्गीकरण और डेटा संग्रह पद्धतियों में सुधार अपेक्षित है।
हालाँकि, लेख का तर्क है कि यह प्रक्रिया धीमी है और तत्कालता की माँग करती है। बीते एक दशक में उपभोग आदतों में बड़े परिवर्तन हुए हैं—ई-कॉमर्स, सेवाक्षेत्र की बढ़ी हिस्सेदारी, ऊर्जा उपभोग में बदलाव—जिनके अनुरूप CPI का अद्यतन जल्द होना चाहिए।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: गलत मुद्रास्फीति मापन के व्यापक परिणाम
जब आधिकारिक मुद्रास्फीति कम दिखाई जाती है, तो इसका प्रभाव निम्नलिखित क्षेत्रों पर पड़ता है:
- वेतन और पेंशन निर्धारण: वास्तविक मूल्य वृद्धि की तुलना में कम प्रतिपूर्ति।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ: DBT और महंगाई भत्ता में विसंगतियाँ।
- मौद्रिक नीति: ब्याज दरें वास्तविक परिस्थितियों के अनुमान से भटक जाती हैं।
- बाजार और निवेशक निर्णय: गलत आर्थिक संकेतों पर आधारित।
इस प्रकार, CPI की गलत तस्वीर समाज के व्यापक वर्गों की आर्थिक सुरक्षा और नीति की प्रभावशीलता को प्रभावित करती है।
समाधान की राह: CPI में व्यापक सुधार की दिशा
समाधान के रूप में लेख निम्न प्रमुख बिंदुओं पर जोर देता है:
- आधार वर्ष का समयबद्ध अद्यतन (2012 से 2022 या 2023 तक)।
- वजन निर्धारण का पुनर्मूल्यांकन, विशेषकर खाद्य श्रेणी का।
- नई उपभोग प्रवृत्तियों का समावेश—ई-कॉमर्स, डिजिटल सेवाएँ, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि।
- उच्च-आवृत्ति डेटा संग्रह, जिससे सांख्यिकीय त्रुटियाँ कम हों।
- RBI और MoSPI के बीच बेहतर समन्वय, ताकि नीति निर्माण में डेटा-निर्भरता और सटीकता रहे।
अंततः, CPI का अद्यतन जितना शीघ्र होगा, उतनी ही जल्दी भारत की मौद्रिक नीति, बजटीय योजनाओं और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की सटीकता बढ़ेगी।
निष्कर्ष
लेख इस तथ्य पर बल देता है कि CPI का वर्तमान स्वरूप भारत की अर्थव्यवस्था की वास्तविक मुद्रास्फीति को प्रतिबिंबित नहीं करता, और यह नीति-निर्माताओं, उपभोक्ताओं तथा आर्थिक योजनाओं के लिए चुनौतियाँ पैदा कर रहा है। आधार वर्ष का अद्यतन, भार संरचना का पुनर्लेखन और डेटा संग्रह के आधुनिकीकरण द्वारा CPI को वर्तमान आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप बनाना समय की माँग है।
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