अप्रत्याशित महंगाई बढ़ोतरी: भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का विश्लेषण
(Unexpected Inflation Surge: Analyzing the Consumer Price Index in India)
यह लेख “The Hindu” में प्रकाशित “Surprise spike: On the Consumer Price Index” पर आधारित है, इस लेख में बताया गया है की सितंबर और अक्टूबर 2024 के दौरान भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI – Consumer Price Index) में तेजी से वृद्धि देखी गई, जिसने सरकार द्वारा निर्धारित 4% के औसत लक्ष्य को अस्थायी रूप से प्राप्त करने में एक बड़ी चुनौती पेश की है। जबकि अगस्त में मुद्रास्फीति 3.65% थी, सितंबर में यह नौ महीनों के उच्चतम स्तर 5.5% पर पहुँच गई। RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC – Monetary Policy Committee) ने अक्टूबर में चेतावनी दी थी कि इस तरह की धीमी और असमान सुधार अपेक्षाकृत अस्थायी साबित हो सकते हैं। खासकर सब्जियों और खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी ने महंगाई में और वृद्धि की संभावना जताई है। अक्टूबर का CPI आंकड़ा 6.2% तक पहुंच गया, जो कि 2023 के बाद का उच्चतम स्तर है। यह लेख इन बढ़ते आंकड़ों के कारणों और संभावित समाधानों पर विस्तार से चर्चा करता है।
मुद्रास्फीति में अचानक वृद्धि का कारण
1. खाद्य वस्तुओं की कीमतों में उछाल
- सब्जियों की कीमतें: अक्टूबर के दौरान सब्जियों की कीमतों में 42.2% की अप्रत्याशित वृद्धि हुई, जो पिछले पाँच वर्षों में सबसे अधिक थी। इसके प्रमुख कारण टमाटर जैसी सब्जियों की बढ़ती कीमतें थीं, जिनकी कीमत पिछले वर्ष की तुलना में दोगुनी हो गई।
- खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि: लगभग दो वर्षों की गिरावट के बाद खाद्य तेलों की कीमतों में उछाल देखा गया, जिसमें वैश्विक तेल की कीमतों का प्रभाव भी शामिल था। इसके कारण फलों और अन्य खाद्य सामग्रियों की कीमतें भी बढ़ गईं।
2. कोर मुद्रास्फीति में सुधार की असफलता
कोर मुद्रास्फीति, जिसमें खाद्य और ऊर्जा को छोड़ दिया जाता है, मुख्य मुद्रास्फीति दर से कम रही। फिर भी, निजी देखभाल और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण इसकी दर स्थिर नहीं रही। अक्टूबर में निजी देखभाल वस्तुओं की कीमतें 11% तक बढ़ गईं, जो एक संकेत है कि कोर मुद्रास्फीति में भी वृद्धि हो रही है।
सरकार की नीतियों और उनके प्रभाव
1. मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए सरकार के कदम
वित्त मंत्रालय ने पिछले महीने की अपनी आर्थिक समीक्षा में बताया कि यह वृद्धि केवल कुछ खाद्य वस्तुओं तक सीमित है और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं तक नहीं पहुँच रही है। सरकार ने पर्याप्त खाद्यान्न भंडार और अच्छे खरीफ फसल के आधार पर खाद्य मुद्रास्फीति पर काबू पाने का विश्वास जताया था। इसके अलावा, किसानों के लिए बेहतर फसल प्रबंधन और वितरण प्रणाली लागू करने की सिफारिश की गई है ताकि मौसमी फसलों की कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोका जा सके।
2. आरबीआई की भूमिका और नीतिगत निर्णय
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कोर मुद्रास्फीति में सुधार की संभावना पर प्रकाश डाला था। फिर भी, मौजूदा स्थिति में मूल्य नियंत्रण की कठिनाइयाँ दर्शाती हैं कि जल्द ही ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद नहीं की जा सकती। विशेष रूप से दिसंबर के महीने में, आरबीआई द्वारा ब्याज दर कटौती की संभावना कम हो गई है।
भविष्य की संभावनाएँ और समाधान
1. खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण
विशेषज्ञों का मानना है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थिरता तभी आएगी जब ताजा फसलों का आगमन बढ़ेगा। सरकार को चाहिए कि वह खाद्य प्रबंधन के माध्यम से कीमतों पर नियंत्रण बनाए रखे और खाद्य सब्सिडी में सुधार करे।
2. मुद्रास्फीति और खपत के बीच का संतुलन
जैसे-जैसे महंगाई बढ़ रही है, शहरी क्षेत्रों में माँग में भी गिरावट देखी गई है, जो निजी निवेश के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार को कर कटौती, आर्थिक प्रोत्साहन जैसे कदम उठाने की जरूरत है ताकि मुद्रास्फीति को संतुलित किया जा सके और खपत में बढ़ोतरी हो।
निष्कर्ष
भारत में मुद्रास्फीति एक गहन समस्या बनी हुई है और इसे केवल वित्तीय प्रबंधन से हल नहीं किया जा सकता। सरकार को ऐसी नीतियाँ अपनानी होंगी जो मुद्रास्फीति को संतुलित करने के साथ-साथ घरेलू माँग को भी बढ़ा सकें। खाद्य प्रबंधन और कर सुधारों के माध्यम से ही इस समस्या का उचित समाधान निकल सकता है, ताकि मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पा सकें और आर्थिक विकास की राह पर बढ़ सकें।
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