उत्तराखंड लोकसेवा आयोग व अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा आयोजित की जानेवाली आगामी परीक्षाओं (UKPSC/ UKSSSC) को मध्यनजर रखते हुए Exam Pillar आपके लिए Daily MCQs प्रोग्राम लेकर आया है। इस प्रोग्राम के माध्यम से अभ्यर्थियों को उत्तराखंड लोकसेवा आयोग व अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के परीक्षाओं के प्रारूप के अनुरूप वस्तुनिष्ठ अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराये जायेंगे।
Daily UKPSC / UKSSSC MCQs : उत्तराखंड (Uttarakhand)
20 December, 2025
| Read This UKPSC / UKSSSC Daily MCQ – (Uttarakhand) in English Language |
Q1. सिंहपुर के यदु वंश का शासनकाल लगभग किस शताब्दी के दौरान माना जाता है?
(A) 3वीं – 4वीं शताब्दी
(B) 4वीं – 5वीं शताब्दी
(C) 6वीं – 7वीं शताब्दी
(D) 8वीं – 9वीं शताब्दी
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Explanation: सिंहपुर का यदु वंश भारतीय इतिहास की मध्यकालीन आरंभिक अवधि में उभरने वाला एक स्थानीय राजवंश था, जिसका शासन लगभग 6वीं से 7वीं शताब्दी के बीच रहा। यह काल गुप्तोत्तर भारत में क्षेत्रीय राजसत्ताओं के गठन का समय था, जब स्थानीय शासक धार्मिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक दृष्टि से स्वतंत्र पहचान बना रहे थे। यदुवंश की सक्रियता इसी युग में रही, जब उत्तर भारत के पर्वतीय और यमुना तटीय क्षेत्रों में छोटे-छोटे सामंतशाही केंद्र विकसित हो रहे थे। विकल्प (A) और (B) गुप्त पूर्व या गुप्तकालीन समय को दर्शाते हैं, जो इस वंश से पहले का युग था; जबकि विकल्प (D) का काल कत्यूर और पाला राजवंशों के उदय का समय है। अतः 6वीं–7वीं शताब्दी का विकल्प (C) ही इस वंश के काल निर्धारण के अनुरूप है।
Q2. यदुवंशीय राजाओं की जानकारी किस प्रमुख स्रोत से प्राप्त होती है?
(A) कालसी अभिलेख
(B) राजकुमारी ईश्वरा का लाखामंडल लेख
(C) प्रयाग प्रशस्ति लेख
(D) अशोक का शिलालेख
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Explanation: यदुवंशीय राजाओं की सबसे महत्वपूर्ण जानकारी लाखामंडल से प्राप्त राजकुमारी ईश्वरा के लेख से मिलती है। यह लेख न केवल वंशावली का विवरण देता है, बल्कि 11 पीढ़ियों के 12 शासकों के नामों का भी उल्लेख करता है। इससे स्पष्ट होता है कि यह वंश कई पीढ़ियों तक निरंतर शासन करता रहा और उसकी सत्ता का केंद्र धार्मिक-राजनीतिक रूप से संगठित था। विकल्प (A) कालसी अभिलेख मौर्यकालीन है और अशोक से संबंधित है; विकल्प (C) प्रयाग प्रशस्ति समुद्रगुप्त की विजयों का विवरण देती है, जो यदुवंश से असंबद्ध है; विकल्प (D) अशोक के धर्म प्रचार से संबंधित है, न कि यदुवंशीय शासन से। इस प्रकार, सटीक स्रोत लाखामंडल का राजकुमारी ईश्वरा लेख ही है।
Q3. यदुवंश का संस्थापक कौन था, और उसकी राजधानी कहाँ स्थित थी?
(A) भास्करवर्मन — जालंधर
(B) चन्द्रगुप्त — प्रयाग
(C) श्री सेनवर्मन — सिंहपुर
(D) ईश्वरा — लाखामंडल
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Explanation: सिंहपुर के यदुवंश का संस्थापक श्री सेनवर्मन था, जिसकी राजधानी यमुना प्रदेश के सिंहपुर नामक स्थान पर थी। श्री सेनवर्मन ने इस वंश की राजनीतिक नींव रखी, जिससे आगे की कई पीढ़ियों ने यमुना तटवर्ती क्षेत्रों में अपना प्रभाव बनाए रखा। सिंहपुर एक सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान था, जो व्यापारिक मार्गों और धार्मिक केंद्रों से जुड़ा हुआ था। विकल्प (A) में भास्करवर्मन कामरूप (असम) के राजा थे, जिनका इस वंश से कोई संबंध नहीं; विकल्प (B) चन्द्रगुप्त मौर्य वंश के संस्थापक थे; विकल्प (D) ईश्वरा एक राजकुमारी थीं, शासक नहीं। अतः श्री सेनवर्मन और सिंहपुर ही सही संयोजन हैं।
Q4. राजकुमारी ईश्वरा किससे संबंधित थीं, और उनका धार्मिक योगदान क्या था?
(A) वे भास्करवर्मन की पुत्री और चन्द्रगुप्त की पत्नी थीं; उन्होंने लाखामंडल में एक शिव मंदिर बनवाया
(B) वे कनिष्क की पत्नी थीं; उन्होंने बौद्ध विहार की स्थापना की
(C) वे अमोघभूति की पुत्री थीं; उन्होंने कार्तिकेय मंदिर का निर्माण कराया
(D) वे हुविष्क की पुत्री थीं; उन्होंने विष्णु मंदिर का निर्माण कराया
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Explanation: राजकुमारी ईश्वरा, यदुवंश की एक महत्वपूर्ण राजकुलीन महिला थीं। वे भास्करवर्मन की पुत्री और जालधर राजकुमार चन्द्रगुप्त की पत्नी थीं। उनका सबसे उल्लेखनीय धार्मिक योगदान लाखामंडल में एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण था, जो उस युग में शैव परंपरा की गहराई और स्त्री नेतृत्व की भूमिका को उजागर करता है। इस निर्माण से यह भी स्पष्ट होता है कि उस समय धार्मिक संस्थान राजनीतिक वैभव और राजवंशीय प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में देखे जाते थे। विकल्प (B), (C) और (D) पूरी तरह असंगत हैं, क्योंकि उनमें उल्लिखित व्यक्ति व घटनाएँ भिन्न कालखंडों व वंशों से संबंधित हैं। अतः विकल्प (A) ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित सही उत्तर है।
Q5. लाखामंडल के खंडित शिलालेख किस वंश से सम्बन्धित पाए गए?
(A) कुलूत वंश
(B) छागलेश वंश
(C) यदु वंश
(D) गोत्रीय वंश
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Explanation: लाखामंडल के जो खंडित शिलालेख प्राप्त हुए, वे छागलेश वंश से सम्बद्ध रहे। इन शिलालेखों में वंशीय नामों और शासकीय सूचनाओं के अवशेष मिलते हैं जिनसे छागलेश राजसमीकरण की पहचान होती है। अन्य विकल्पों में सूचीबद्ध वंशों के लिए अलग-अलग अभिलेखीय स्रोत मौजूद हैं, पर वहाँ जो शिलालेख उल्लेखित हैं वे छागलेश वंश के नाम-प्रमाणों से मेल खाते हैं। इसलिए उस अभिलेखसमूह का सम्बन्ध छागलेश वंश से स्थापित रहता है।
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