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प्रशांत महासागर की धाराएं (Pacific Ocean Currents)

प्रशांत महासागर की धाराएं (Pacific Ocean Currents)

प्रशान्त महासागर (Pacific Ocean), अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) की अपेक्षा अधिक विस्तृत तथा भिन्न आकार के तटवर्ती प्रदेशों से युक्त है। अतः इसमें धाराओं के क्रम कुछ भिन्न पाये जाते हैं। इस महासागर की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित हैं – 

(1) उत्तरी विषुवत रेखीय धारा (Northern Equatorial Stream) – उत्तरी प्रशान्त महासागर में यह धारा पूर्व से पश्चिम की ओर महासागर के आर-पार बहती है। यह गर्म धारा है और मध्य अमेरिका के पश्चिम तट से शुरू होकर यह पश्चिमी प्रशान्त महासागर में फिलिपीन्स द्वीप समूह तक पहुँचती है। यहाँ इस धारा की दो शाखाएँ हो जाती हैं। एक धारा उत्तर की ओर मुड़ जाती है और क्यूरोशिवो धारा के नाम से फिलिपीन्स द्वीप समूह, ताइवान और जापान के तटों के साथ बहती है और दूसरी धारा दक्षिण की ओर मुड़कर अपनी दिशा पूर्व की ओर कर लेती है जिसे प्रति विषुवत रेखीय धारा कहते हैं।

(2) क्यूरोशिवो धारा (Curoshivo Stream) – उत्तरी विषुवतरेखीय धारा जब फिलिपीन्स द्वीप समूह के नजदीक पहुँचकर सन्मार्गी (पवनें उत्तर-पूर्व. दिशा से तथा दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण-पूर्व दिशा से चलती हैं) पवनों के प्रभाव से उत्तर की ओर मुड़ जाती है तो मध्य चीन के सहारे बहती हुई जापान के पूर्वी तट पर पहुँचती है। इस महासागरीय धारा का रंग गहरा नीला होने के कारण जापान के लोग इसे जापान की काली धारा कहते हैं। यह गर्म जल की धारा है। जापान के दक्षिण-पूर्वी तट के नजदीक क्युरोशिवा धारा प्रचलित पछुआ पवन की चपेट में आ जाती है और क्यूराइल द्वीप समूह के समीप क्यूराइल नाम की ठण्डी धाराओं से मिल जाती है और महासागर के आर-पार पश्चिम से पूर्व दिशा में उत्तरी प्रशान्त धारा के नाम से बहती है। उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर पहुँचकर यह बैंकूवर के निकट दो भागों में बँट जाती है। उत्तरी शाखा ब्रिटिश कोलम्बिया और अलास्का के तटों पर घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में अलास्का धारा के नाम से बहती है। यह अलास्का में चली जाती है तथा अलास्का तट के सहारे बहती है। यह गर्म धारा है जिससे तट भी गर्म हो जाता है। दूसरी शाखा कैलिफोर्निया के पश्चिम तट पर दक्षिण में उत्तरी विषुवतरेखी धारा से मिल जाती है।

(3) क्यूराइल की धारा (Currail Stream) – बेरिंग जलडमरूमध्य से दक्षिण साइबेरिया तट के साथ बहते हुए क्यूराइल द्वीप समूह के निकट क्यूरोशिवा की धारा से मिलने वाली इस ठण्डी धारा को क्यूराइल या ओयाशिवो के नाम से जाना जाता है। 

(4) दक्षिण विषवतरेखीय धारा (South Equator) – दक्षिणी प्रशान्त महासागर में दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के पश्चिमी भाग से लगभग 50-10° दक्षिणी अक्षांश पर यह धारा पश्चिम की ओर बहती हुई और पूर्वी आस्ट्रेलियाई धारा के नाम से दक्षिण की ओर मुड़ जाती है। पश्चिम दिशा में बहती हुई आस्ट्रेलिया के उत्तर में स्थित न्यूगिनी तट से टकराकर दो धाराओं में विभाजित हो जाती है। प्रथम धारा उत्तर की ओर चलकर प्रति विषुवत रेखीय धारा बन जाती है जिसकी दिशा पूर्व की ओर होती है। दूसरी धारा आस्ट्रेलिया के पूर्वी भाग पर दक्षिण की ओर जाती हुई पुनः पूर्व की ओर दिशा परिवर्तित कर लेती है।

(5) पूर्वी आस्ट्रेलियाई धारा (Eastern Australian Stream) – जब दक्षिणी विषुवतरेखीय धारा न्यूगिनी द्वीप के समीप दो धाराओं में बँट जाती है तब इसकी दक्षिणी धाराा पूर्वी आस्ट्रेलिया तट के साथ-साथ बहने लगती है। इसलिए इसे पूर्वी आस्ट्रेलिया की गर्म धारा कहा जाता है। न्यू साऊथ वेल्स में इसे न्यू साउथ वेल्स की धारा के नाम से जाना जाता है।

(6) पेरु धारा (Peru Stream) – पूर्वी आस्ट्रेलियाई धारा धारा तस्मानिया के नजदीक दक्षिण प्रशान्त धारा में मिल जाती है जो पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है। दक्षिणी अमेरिका के दक्षिण-पश्चिमी तट पर पहुंचकर यह उत्तर की ओर मुड़ जाती है जहाँ से यह पेरु के तट के सहारे बहती है। इसी कारण यह पेरू की धारा के नाम से जानी जाती है। यह एक ठंडी जलधारा है जो आखिर में दक्षिणी विषुवतीय धारा में विलीन होकर चक्कर पूरा करती है। प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता हम्बोलट ने सबसे पहले इसको देखा था, इसलिए इसे हम्बोल्ट धारा के नाम से भी जाना जाता है।

(7) एलनिनो या विपरीत विषुवत रेखीय धारा (Alanino or Reverse Equinoctial Current) – यह गर्म धारा है, जिसके उत्पन्न होने का मुख्य कारण है- उत्तरी- दक्षिणी विषुवत रेखीय धाराओं का अक्षांशीय स्थिति पर खिसकाव होना। इस धारा के दक्षिण की ओर जाने से पेरू के तट और आसपास के जल का तापमान बढ़ जाता है और मछलियों के विकास में कठिनाई होती है। 

प्रशान्त महासागर की धाराएँ (Pacific Ocean Currents)

उत्तरीय प्रशान्त महासागर की धाराएँ दक्षिणीय  प्रशान्त महासागर की धाराएँ 
उत्तर विषुवत् रेखीय धारा (गर्म)  दक्षिण विषुवत्रेखीय धारा (गर्म)
उत्तरी प्रशान्त धारा (गर्म)  विपरीत विषुवतरेखीय धारा (गर्म) 
अलास्का धारा (गर्म)  पूर्वी आस्ट्रेलिया धारा (गर्म)
क्लोरोशियो धारा (गर्म)  एल-निनो धारा (गर्म) 
अल्यूशियन धारा (गर्म)  केल्विन धारा (गर्म)
कैलिफोर्निया धारा (ठण्डी)  दक्षिणी प्रशान्त प्रवाह (ठण्डी) 
ओखस्टक धारा (ठण्डी)  पेरू या हम्बोल्ट धारा (ठण्डी) 
ओयशियो धारा (ठण्डी)  ला-निनो (ठण्डी)

 

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महासागरीय धाराएं (Ocean Currents)

महासागरीय धाराएं (Ocean Currents)

सागरों (Seas) में जल के एक निश्चित दिशा में प्रवाहित होने की गति को ‘धाराएं (Currents)’ कहते हैं। इनका वेग प्राय: 2 से 10 किमी. प्रति घंटा तक होता है। इनका महत्व भारी मात्रा में विशाल जलराशि को हजारों किमी. दूर तक बहाने के लिए है। तापक्रम (Temperature) के अनुसार धाराएँ दो प्रकार की होती हैं –
(i) गर्म धारा (Hot Stream) तथा
(ii) ठण्डी धारा (Cold Stream)
इनकी गति, आकार एवं दिशा में पर्याप्त अंतर होता है, इस आधार पर ये धाराएँ तीन प्रकार की होती है : – 

  1. प्रवाह (Flow) – पवन की दिशा व गति से प्रभावित होकर सागरीय सतह का जल धीमी गति से आगे बढ़ता है। प्रवाह की सीमा और गति स्थाई नहीं होती। उत्तरी अटलांटिक तथा दक्षिणी अटलांटिक प्रवाह ऐसे ही हैं।
  2. धारा (Stream) – निश्चित सीमा के भीतर निश्चित दिशा में तीव्र गति से बहने वाली जलराशि को धारा कहते हैं। क्यूरोशिवो, पेरु, बेंगुएला इत्यादि धाराएँ इसके उदाहरण हैं।
  3. विशाल धारा (Huge Stream) – नदियों की भाँति अधिक जलराशि, तीव्र गति तथा निश्चित सीमा में बहने वाली सागरीय धारा को विशाल धारा कहते हैं। गल्फ स्ट्रीम (Gulf Stream) इसका उत्तम उदाहरण है।

धाराओं की उत्पत्ति के कारक (The Origin of Currents)

  1. पृथ्वी का परिभ्रमण और गुरुत्वाकर्षण (Earth Revolutions and Gravity)
  2. वायुदाब और पवनें (Winds and Winds)
  3. वाष्पीकरण और वर्षा (Evaporation and Precipitation)
  4. तापमान में भिन्नता (Temperature Variation)
  5. घनत्व का अन्तर (Difference of Density)
  6. महाद्वीपों का आकार (Size of Continents)

धाराओं की दिशा को प्रभावित करने वाले कारक महासागरीय धाराओं की प्रवाह दिशा कभी एक-सी नहीं रहती। उन पर निम्न दशाओं का प्रभाव पड़ता है – 

  1. प्रचलित स्थाई हवाएँ (Prevailing permanent winds), 
  2. पृथ्वी की परिभ्रमण गति (Earth’s rotation speed),
  3. तटों की आकृति (Coast shape),
  4. समुद्री नितल (Sea knit)

महासागरीय धाराओं का प्रभाव (Effect of Ocean Currents)

  1. तटीय भागों की जलवायु में परिमार्जन (Scour in Coastal Parts Climate) – महासागरीय धाराएं तटीय भागों को प्रभावित करती हैं। गर्म धाराएं जब ठंडे भागों में पहुँचती हैं तो वहाँ का तापमान कम नहीं होने देतीं तथा सर्दियों में उन्हें अपेक्षाकृत गर्म रखती हैं। गर्म तथा ठंडी धाराओं के मिलन स्थल पर कुहरा (Fog) पड़ता है जो जलयानों के लिए हानिकारक होता है।
  2. मत्स्य उद्योग पर प्रभाव (Impact on Fisheries Industry) – ये धाराएं मछलियों के लिए ऑक्सीजन तथा भोजन वितरण का कार्य करती है। इन धाराओं द्वारा प्लेंकटन (Plankton) नामक घास लाया जाता है जो मछलियों के लिए आदर्श स्थिति पैदा करती है। गल्फ स्ट्रीम धारा इस घास को न्यूफाउण्ड लैण्ड (Newfound Land) तथा उत्तर-पश्चिम यूरोपीय तट पर पहुँचा देती है। इसी कारण वहाँ मत्स्य उद्योग विकसित हो गया है। गर्म और ठंडी धाराएं मिलकर विभिन्न प्रकार की मछलियों को जन्म देने में सहायक होती है। 
  3. व्यापार पर प्रभाव (Impact on Business) – महासागरीय धाराएं जल मार्गों को निश्चित करती है, जिसके सहारे जलयानों का परिवहन मिल जाता है। गर्म धाराओं के कारण ठंडे स्थानों के बन्दरगाह पूरे खुले रहते हैं। जैसे-रूस का मुर्मुस्क बंदरगाह ध्रुवीय प्रदेश होने के बाजवूद उत्तरीय अटलांटिक प्रवाह के कारण वर्षभर खुला रहता है। 

 

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