भारतीय अर्थव्यवस्था

मेक इन इंडिया के 10 वर्ष

‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरुआत 2014 में देश को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने और अन्य क्षेत्रों में उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से की गई थी। भारत की आर्थिक वृद्धि में तेज गिरावट और चुनौतियों का सामना करते हुए, इस पहल ने देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया। इसका मुख्य उद्देश्य निवेश के लिए अनुकूल माहौल तैयार करना, बुनियादी ढांचे का विकास, विदेशी निवेश को आकर्षित करना, और सरकार एवं उद्योग के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना था। आज, 10 वर्षों के बाद, ‘मेक इन इंडिया’ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के करीब है।

प्रमुख क्षेत्र और उनकी प्रगति

‘मेक इन इंडिया’ पहल की शुरुआत 25 प्रमुख क्षेत्रों में भारत को विनिर्माण का केंद्र बनाने के लक्ष्य के साथ हुई थी। आज यह पहल 27 क्षेत्रों तक विस्तारित हो चुकी है, जिनमें मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर शामिल हैं। इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज की गई है:

  1. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर: इस सेक्टर में एयरोस्पेस, ऑटोमोटिव, फार्मास्युटिकल्स, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे 15 प्रमुख क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
  2. सर्विस सेक्टर: आईटी, पर्यटन, चिकित्सा यात्रा, वित्तीय सेवाओं समेत 12 सेवाओं को इसमें स्थान दिया गया है।

इन दोनों सेक्टर्स में भारत ने उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई है, जिससे देश की वैश्विक स्थिति मजबूत हो रही है।

मेक इन इंडिया पहल के चार स्तंभ

‘मेक इन इंडिया’ को सफल बनाने के लिए चार प्रमुख स्तंभों पर काम किया गया है, जिनके आधार पर देश में उद्यमशीलता और विनिर्माण को बढ़ावा मिला है:

  1. उद्यमशीलता को प्रोत्साहन: सरकार ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय किए हैं, जिससे स्टार्टअप्स और अन्य उद्यमों के लिए अनुकूल माहौल तैयार हुआ है।
  2. नवाचार और बुनियादी ढांचे पर ध्यान: स्मार्ट शहरों और औद्योगिक गलियारों का विकास किया गया, जिसमें उन्नत तकनीक और उच्च गति संचार को शामिल किया गया।
  3. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): रक्षा, बीमा, चिकित्सा उपकरण और रेलवे के क्षेत्रों में FDI के नियमों को सरल बनाकर विदेशी निवेश को आकर्षित किया गया है।
  4. सहयोगात्मक सोच: उद्योग और सरकार के बीच साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अपनी भूमिका एक सुविधाप्रदाता के रूप में विकसित की है, जिससे एक सहयोगात्मक वातावरण का निर्माण हुआ है।

एफडीआई की बढ़ती भूमिका

‘मेक इन इंडिया’ पहल की सफलता में एफडीआई का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

  • एफडीआई प्रवाह: 2014-15 में एफडीआई 45.14 अरब डॉलर से बढ़कर 2021-22 में 84.83 अरब डॉलर हो गया है। यह वृद्धि भारत के आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित हुई है।
  • विनिर्माण क्षेत्र में एफडीआई: पिछले दशक में विनिर्माण क्षेत्र में एफडीआई इक्विटी प्रवाह 69% बढ़कर 165.1 अरब डॉलर हो गया है।

उल्लेखनीय उपलब्धियां

‘मेक इन इंडिया’ पहल ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, जिनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं:

  1. कोविड-19 टीकों का उत्पादन: भारत ने रिकॉर्ड समय में टीकों का उत्पादन कर न केवल अपने नागरिकों का टीकाकरण किया, बल्कि दुनिया के कई देशों को निर्यात भी किया।
  2. वंदे भारत ट्रेन: भारत की पहली स्वदेशी सेमी-हाई स्पीड ट्रेन, वंदे भारत, मेक इन इंडिया की सफलता का उदाहरण है। अभी तक 51 वंदे भारत ट्रेन सेवाएं शुरू हो चुकी हैं।
  3. रक्षा उत्पादन: भारत ने रक्षा उत्पादन में भी उल्लेखनीय प्रगति की है, जिसमें 90 से अधिक देशों को निर्यात किया गया है।
  4. इलेक्ट्रॉनिक्स का उत्पादन: वित्त वर्ष 2023 में भारत का इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन 101 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जिसमें मोबाइल फोन उत्पादन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
  5. निर्यात में वृद्धि: भारत ने 437.06 अरब डॉलर का माल निर्यात किया है, जिससे वैश्विक व्यापार में भारत की भूमिका बढ़ी है।
  6. खिलौनों का उत्पादन: भारत हर साल 40 करोड़ खिलौनों का उत्पादन करता है, जिसमें हर सेकंड 10 खिलौने बनाए जाते हैं।
  7. भारतीय साइकिलों की प्रसिद्धि: भारतीय साइकिलों का निर्यात ब्रिटेन, जर्मनी और नीदरलैंड में बढ़ रहा है।

चुनौतियाँ

‘मेक इन इंडिया’ की सफलता के बावजूद, इसके सामने कुछ चुनौतियां भी हैं, जिन्हें सुलझाना आवश्यक है:

  1. बुनियादी ढांचे की कमी: परिवहन, बिजली आपूर्ति और रसद जैसे बुनियादी ढांचे की कमी इस पहल की बड़ी चुनौती है।
  2. नौकरशाही और लालफीताशाही: भारत का जटिल नियामक वातावरण व्यवसाय के राह में बाधा बनता है, जिससे निवेशकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  3. कुशल मानव संसाधन की कमी: कुछ विशिष्ट उद्योगों में कुशल मानव संसाधन की कमी है, जिसे पूरा करना जरूरी है।
  4. प्रभावी बौद्धिक संपदा कानून का अभाव: नवाचार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए बौद्धिक संपदा कानून का प्रभावी तरीके से लागू न होना भी एक चुनौती है।

निष्कर्ष

‘मेक इन इंडिया’ पहल ने पिछले 10 वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है। एफडीआई, विनिर्माण और सर्विस सेक्टर में इसकी सफलता ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मजबूत कदम उठाए हैं। हालांकि चुनौतियों के बावजूद, यह पहल भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है और देश को वैश्विक विनिर्माण का केंद्र बनाने की दिशा में अग्रसर है।

 

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भारत की व्यापार नीति पर ध्यान: निर्यात में वृद्धि और चुनौतियाँ

व्यापार नीति की चतुराई: भारत की व्यापार नीति पर ध्यान केंद्रित (Trade tact: On India’s trade policy focus)

यह लेख ‘The Hindu’ में प्रकाशित लेख “Trade tact: On India’s trade policy focus” पर आधारित है, जिसमें भारत की व्यापार नीति और हाल के आर्थिक आंकड़ों पर चर्चा की गई है। जून में भारत के वस्त्र निर्यात में तीसरे लगातार महीने वृद्धि हुई है, जबकि आयात में भी 5% की वृद्धि हुई है। हालांकि व्यापार घाटा बढ़ा है, लेकिन पिछले महीने की तुलना में इसमें थोड़ी कमी आई है।

निर्यात और आयात में वृद्धि

जून महीने में भारत के वस्त्र निर्यात में 2.55% की वृद्धि हुई है, जिससे कुल निर्यात $35.2 बिलियन हो गया। इसी अवधि में आयात भी 5% बढ़कर $56.2 बिलियन हो गया, जो मई के सात महीने के उच्चतम स्तर $62 बिलियन से कम है। व्यापार घाटा पिछले जून की तुलना में 9.4% बढ़ गया है, लेकिन यह पिछले महीने की तुलना में थोड़ा कम हुआ है।

तेल और सोने का व्यापार

मई में रिकॉर्ड $13 बिलियन के तेल घाटे के मुकाबले, जून में यह घटकर $10 बिलियन रह गया है। हालांकि, तेल निर्यात में 18.3% की गिरावट आई है, जिससे यह $5.5 बिलियन रह गया है। तेल की कीमतों में पिछले दो महीनों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं होने के कारण, यह निर्यात मात्रा में गिरावट का संकेत देता है। दूसरी ओर, जून में तेल आयात में 19.6% की वृद्धि हुई है, जो घरेलू मांग में वृद्धि को दर्शाता है। अप्रैल से जून तिमाही में कुल तेल आयात में 23% से अधिक की वृद्धि हुई है, जबकि वैश्विक कीमतें पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 9% अधिक रही हैं। पहली तिमाही में $62 बिलियन के कुल व्यापार घाटे का लगभग आधा हिस्सा तेल घाटे का है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 10.9% अधिक है।

सोने के आयात का मूल्य जून में 38.7% गिरकर $3.06 बिलियन हो गया है, जो 2024-25 का अब तक का सबसे निचला स्तर है। लेकिन चांदी के आयात में 377% की वृद्धि हुई है। सरकार को संयुक्त अरब अमीरात के साथ मुक्त व्यापार समझौते के तहत जीआईएफटी सिटी के माध्यम से रियायती शुल्क आयात के कारण भारत के बुलियन बाजार में व्यवधानों की जांच करनी चाहिए। इसके साथ ही, भारत के रत्न और आभूषण निर्यात में लगातार सातवें महीने की गिरावट को भी ध्यान में रखना चाहिए। तेल और सोने के अलावा, आयात बिल में इस साल अब तक लगभग 3% की वृद्धि हुई है, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 10% की गिरावट थी। जून में यह वृद्धि 7% हो गई, जो घरेलू मांग में सुधार का संकेत है और अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है।

भविष्य की दिशा

भारत की व्यापार नीति का मुख्य ध्यान निर्यात को बढ़ावा देने पर होना चाहिए, न कि केवल व्यापार घाटे को कम करने पर। यह उल्लेखनीय है कि मई और जून में भारत के शीर्ष 30 निर्यात क्षेत्रों में से कम से कम 19 में वृद्धि हुई है, जबकि अप्रैल में यह संख्या केवल 13 थी। वैश्विक मुद्रास्फीति में कमी और ब्याज दरों में संभावित कटौती से मांग बढ़ सकती है, और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2024 में व्यापार मात्रा वृद्धि की उम्मीदों को 0.3% से बढ़ाकर 3% कर दिया है। निर्यातकों को इस अवसर का पूरा लाभ उठाने और अधिक नौकरियाँ सृजित करने के लिए, केंद्र सरकार को पर्याप्त संसाधन और स्थिरता प्रदान करनी चाहिए, चाहे वह शुल्क छूट योजना हो या ब्याज समानता योजना। हाल ही में सभी निर्यातकों के लिए ब्याज समानता योजना को समाप्त करने जैसे अचानक नीति बदलाव निश्चित रूप से टाले जाने चाहिए, सिवाय छोटे फर्मों के जिन्हें केवल दो और महीनों के लिए समर्थन का वादा किया गया है।

निष्कर्ष

भारत की व्यापार नीति को निर्यात को बढ़ावा देने और व्यापार घाटे को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, भारत को अपनी नीतियों में स्थिरता और निरंतरता बनाए रखनी चाहिए ताकि निर्यातक वैश्विक अवसरों का लाभ उठा सकें और देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बना सकें।

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