यूरोपीय देशों द्वारा बंद की गई प्रदूषणकारी रसायन फैक्ट्रियों को भारत में स्थानांतरित किए जाने से उत्पन्न पर्यावरणीय, स्वास्थ्य-संबंधी और नीतिगत जोखिमों को यह लेख उजागर करता है।
यूरोप की रासायनिक विरासत: भारत पर बढ़ता पर्यावरणीय बोझ
प्रस्तावना: वैश्विक रासायनिक उद्योग और “प्रदूषण औपनिवेशिकता” की उभरती प्रवृत्ति
यूरोप द्वारा अपनी पुरानी, प्रदूषणकारी एवं स्वास्थ्य-हानिकारक रसायन इकाइयों को बंद करके उन्हें भारत जैसे विकासशील देशों में स्थानांतरित करना। यूरोप सख्त पर्यावरणीय कानूनों और जनविरोध के कारण इन फैक्ट्रियों को बंद कर रहा है, जबकि भारत इन्हें “तकनीक हस्तांतरण”, “औद्योगिक आधुनिकीकरण”, “Make in India” जैसे नारों के तहत स्वीकार कर रहा है। इसके मूल में मौजूद संरचनात्मक असमानता को “Pollution Colonialism” कहते हैं—यानी विकसित देश स्वच्छ पर्यावरण की दिशा में आगे बढ़ते हुए अपनी विषाक्तता का बोझ विकासशील देशों पर डाल रहे हैं।
संवैधानिक और नीतिगत पृष्ठभूमि
भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 स्पष्ट करता है कि स्वास्थ्यपूर्ण जीवन और स्वच्छ पर्यावरण हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। साथ ही अनुच्छेद 48A राज्य पर पर्यावरण संरक्षण का दायित्व सौंपता है। इसके बावजूद, भारत में कई औद्योगिक नीतियां—विशेषकर रसायन उद्योग से जुड़ी—पर्यावरणीय न्याय के इन संवैधानिक प्रावधानों से मेल नहीं खातीं।
भारत की Environmental Impact Assessment (EIA) प्रणाली, औद्योगिक क्लस्टरों की निगरानी, और Hazardous Waste Management Rules की सीमाएँ विकसित देशों के मानकों की तुलना में काफी कमजोर हैं।
इन परिस्थितियों का लाभ उठाकर यूरोप अपने बंद किए गए रासायनिक संयंत्रों को भारत में “दूसरी जिंदगी” दे रहा है, जबकि यूरोप की नियामक व्यवस्थाएँ इन इकाइयों को आगे संचालित करने की अनुमति नहीं देतीं।
ऐतिहासिक संदर्भ: PFAS और यूरोप का प्रदूषण संकट
लेख का केंद्रबिंदु एक विशेष उदाहरण है—इटली के Miteni PFAS प्लांट का भारत में पुनर्स्थापन।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- 2018: इटली ने विसेंज़ा (Vicenza) स्थित Miteni PFAS संयंत्र को बंद किया।
- यह संयंत्र पूरे वेनेटो (Veneto) क्षेत्र में भूजल प्रदूषण का कारण बना था।
- इसका प्रभाव 3,50,000 से अधिक लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ा।
- 2024: संयंत्र के वरिष्ठ अधिकारियों को “environmental devastation” के लिए दोषी ठहराया गया।
PFAS—Per and Polyfluoroalkyl Substances—को “Forever Chemicals” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मिट्टी, जल और जीवित शरीर में सदियों तक टिके रहते हैं। ये शरीर के रक्त, यकृत, मस्तिष्क और स्तनदूध तक में जमा हो जाते हैं।
इनसे जुड़े स्वास्थ्य जोखिम—कैंसर, बांझपन, प्रतिरक्षा दुर्बलता, हार्मोनल असंतुलन, बच्चों में विकास बाधाएँ—इन्हें विश्व के सबसे खतरनाक रसायनों में स्थान देते हैं।
इटली में लंबे जनविरोध, स्वास्थ्य संकट और वैज्ञानिक रिपोर्टों के बाद PFAS निर्माण लगभग प्रतिबंधित हो गया। लेकिन वही संयंत्र भारत में 2023 में पुनर्जीवित हो गया—महाराष्ट्र के Lote Parashuram MIDC, जो Koyna Wildlife Sanctuary के समीप स्थित है।
वर्तमान स्थिति: यूरोप से भारत की ओर जहरीले उद्योगों का स्थानांतरण
यह केवल एक संयंत्र की कहानी नहीं है; लेख के अनुसार यूरोप में सख्त पर्यावरण कानूनों का दबाव बढ़ने के कारण कई बड़े रसायन संयंत्र बंद किए जा रहे हैं और उन्हें भारत भेजा जा रहा है।
मुख्य उदाहरण:
- जर्मनी में Dow Chemical (Stade plant) के दो polycarbonate उत्पादन यूनिट बंद हुए—इन्हें दाहेज (गुजरात) भेजा जा रहा है, 2028 तक पुनर्संचालन की योजना है।
- Dow अपने यूरोपीय संयंत्र—Böhlen, Schkopau, Barry—को क्रमशः बंद कर रहा है।
- ब्रिटिश रसायन कंपनी INEOS Rheinberg में अपनी यूनिट बंद कर चुकी है।
- SABIC (Saudi Arabia) ने Redcar, UK में अपनी olefins cracker इकाई बंद कर दी।
इन बंद यूनिटों को “stranded assets” कहा जा रहा है—यानी ऐसी संपत्तियाँ जिन्हें उनके स्रोत देश में चलाना अब आर्थिक या पर्यावरणीय रूप से संभव नहीं। लेकिन भारत इन्हें दाहेज (गुजरात), मंगलुरु, विशाखपटनम, पानीपत, पारादीप जैसे रसायन हब में स्थापित करने के लिए तैयार है।
“जो डसेलडोर्फ (Düsseldorf) के लिए गंदा है, वह दाहेज (Dahej) के लिए कैसे स्वीकार्य हो सकता है?”
प्रशासनिक प्रयास और कमियां: भारत का विनियामक ढाँचा क्यों कमजोर पड़ रहा है?
भारत रसायन उद्योग में तेजी से वृद्धि चाहता है—यह वैश्विक रसायन बाजार में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन चुका है।
परंतु लेख विश्लेषण करता है कि:
- पर्यावरणीय नियमों का क्रियान्वयन कमजोर है,
- निरीक्षण तंत्र सीमित है,
- प्रदूषण से जुड़े अपराधों के लिए दंड बहुत कम हैं,
- औद्योगिक लॉबी और राज्यों की निवेश आकर्षित करने की होड़ ने नियामक क्षमता घटा दी है।
इसके परिणामस्वरूप खतरनाक रसायन संयंत्र अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों—कोयना, मंगरूव क्षेत्र, समुद्री तट, कृषि भूमि, नदी बेसिन—के पास स्थापित किए जा रहे हैं।
सामाजिक प्रभाव: स्वास्थ्य और पर्यावरणीय जोखिमों की विस्तृत पड़ताल
PFAS के प्रभाव अत्यंत गंभीर है कि यह रसायन वर्षा जल, आर्कटिक बर्फ, मानव रक्त—हर जगह मौजूद है।
- विश्व की 97% मानव आबादी के रक्त में PFAS पाए गए हैं।
PFAS एक बार पर्यावरण में आ जाए तो:
- इन्हें हटाना लगभग असंभव है।
- ये भूजल में प्रवेश करते हैं।
- कृषि भूमि और खाद्य श्रृंखला में जमा हो जाते हैं।
- गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं और बच्चों में दीर्घकालिक स्वास्थ्य हानि उत्पन्न करते हैं।
यदि PFAS भारत के नदियों या जलभृत में स्वच्छंद रूप से फैल गए तो विश्व की कोई भी तकनीक इसका सफाया करने में सक्षम नहीं।
भारत में पहले से मौजूद पर्यावरणीय संकट—
- औद्योगिक क्षेत्रों में कैंसर क्लस्टर,
- पेरियार, यमुना जैसी नदियों में रासायनिक प्रदूषण,
- मृदा उर्वरता में गिरावट— को देखते हुए यूरोप की “रासायनिक कबाड़” आयात नीति भारत को और अधिक पर्यावरणीय आत्म-विनाश की ओर धकेल रही है।
समाधान की राह: नीतिगत सुधार और बहुपक्षीय दृष्टिकोण
लेख संकेत देता है कि भारत को तीन स्तरों पर कार्रवाई करनी चाहिए:
- नीतिगत सुधार – Hazardous Waste नियमों को यूरोपीय मानकों के बराबर मजबूत बनाना।
- स्वास्थ्य सुरक्षा – PFAS जैसे अप्रत्यावर्तनीय प्रदूषकों के उत्पादन को सीमित/प्रतिबंधित करना।
- पारदर्शिता और जनभागीदारी – EIA प्रक्रियाओं को वास्तविक सार्वजनिक सुनवाई, सामाजिक ऑडिट और वैज्ञानिक निष्पक्षता पर आधारित बनाना।
भारत को अपने दीर्घकालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य, भूजल सुरक्षा, और जैव विविधता संरक्षण को औद्योगिक लाभ से अधिक महत्व देना होगा।
निष्कर्ष (Conclusion)
यूरोप द्वारा अपनी खतरनाक रसायन फैक्ट्रियों को भारत जैसे देशों में स्थानांतरित करना केवल आर्थिक लेनदेन नहीं, बल्कि “प्रदूषण औपनिवेशिकता” का आधुनिक रूप है। भारत यदि अब भी अपनी नियामक विफलताओं को नहीं सुधारता, तो वह आने वाले दशकों में अप्रत्यावर्तनीय पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संकट का सामना कर सकता है।
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