Act of evil On the Delhi blast

दिल्ली लाल क़िला विस्फोट : आतंकवाद, सुरक्षा नीति और राष्ट्रीय एकता की परीक्षा

November 12, 2025

10 नवंबर 2025 की शाम को दिल्ली के ऐतिहासिक लाल क़िले के पास एक चलती कार में हुए विस्फोट ने पूरे देश को झकझोर दिया। इस धमाके में 13 लोगों की मृत्यु और कई अन्य घायल हुए। प्रारंभिक जांच में पता चला कि यह घटना एक योजनाबद्ध आतंकी कृत्य हो सकती है। पुलिस ने अवैध गतिविधियाँ (निषेध) अधिनियम (UAPA) और विस्फोटक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है। जांच की ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपी गई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने अपराधियों को कड़ी सज़ा दिलाने का आश्वासन दिया, जबकि विपक्ष ने सरकार से जवाबदेही की मांग की। मुख्य संदिग्ध के रूप में उमर-उन-नबी, जो कि जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले का एक चिकित्सक था, की पहचान हुई। वह कार में ही विस्फोट में मारा गया। प्रारंभिक संकेतों से यह संभावना जताई जा रही है कि वह देश में संभावित आतंकवादी हमलों की एक व्यापक साजिश का हिस्सा था।

संवैधानिक और विधिक पहलू (Constitutional and Legal Context)

भारत का आतंकवाद-विरोधी ढांचा UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) जैसे सख्त कानूनों पर आधारित है। इस अधिनियम के अंतर्गत सरकार को किसी भी संगठन या व्यक्ति को “आतंकवादी” घोषित करने और उसकी संपत्ति जब्त करने का अधिकार है। इसके अतिरिक्त, Explosives Act का प्रयोग ऐसे अपराधों में किया जाता है जिनमें विस्फोटक पदार्थों का अवैध उपयोग हुआ हो।

केंद्र सरकार ने 2019 में UAPA में संशोधन करके सुरक्षा एजेंसियों को अधिक शक्तियाँ प्रदान कीं, जिससे किसी व्यक्ति को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। यद्यपि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से आवश्यक माना गया, परंतु इसकी आलोचना भी हुई कि यह नागरिक स्वतंत्रता और न्यायिक निष्पक्षता को सीमित करता है।

राजनीतिक परिप्रेक्ष्य और जवाबदेही (Political Context and Accountability)

घटना के बाद सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बीच राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप देखने को मिले। जहां भाजपा ने आतंकवाद के प्रति अपनी “ज़ीरो टॉलरेंस” नीति को दोहराया, वहीं विपक्ष ने सुरक्षा तंत्र में संभावित चूक पर सवाल उठाए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसी घटनाएँ न केवल सुरक्षा एजेंसियों की परीक्षा होती हैं, बल्कि राजनीतिक पारदर्शिता और प्रशासनिक उत्तरदायित्व की कसौटी भी।

आतंकवाद को लेकर “सॉफ्ट स्टेट” की अवधारणा, जिसे भाजपा ने 2014 के बाद के राजनीतिक विमर्श में प्रमुखता दी, इस घटना के संदर्भ में फिर चर्चा में आई। यह धारणा रही है कि कमजोर शासन आतंकवाद को बढ़ावा देता है, जबकि सख्त कानून और तत्पर सुरक्षा नीति ही प्रभावी निवारक हो सकती है।

राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और आतंकवाद-रोधी रणनीति (National Security and Counterterrorism Strategy)

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति बहुआयामी है—जिसमें सीमा सुरक्षा, खुफिया तंत्र, पुलिसिंग, साइबर निगरानी और सामुदायिक सहयोग शामिल हैं। हाल के वर्षों में, केंद्र और राज्य स्तर पर सुरक्षा तंत्र में सुधार हुआ है।

लेख के अनुसार, यह उल्लेखनीय है कि एक संभावित रासायनिक आतंकवादी साजिश (chemical terror plot) को हाल ही में नाकाम किया गया, जिसमें कई राज्यों में गिरफ्तारी और हथियार-विस्फोटक बरामद हुए। यह संकेत है कि सुरक्षा एजेंसियाँ लगातार सक्रिय हैं।

हालाँकि, आतंकवाद-रोधी नीति केवल पुलिसिंग तक सीमित नहीं हो सकती। इसके साथ राजनीतिक और सामाजिक उपायों की भी आवश्यकता है—जैसे नागरिकों में विश्वास बनाए रखना, अफवाहों को रोकना और सांप्रदायिक सद्भाव को सुदृढ़ करना।

सामाजिक प्रभाव और जनमानस की प्रतिक्रिया (Social Impact and Public Response)

ऐसी घटनाएँ जनता के भीतर भय, असुरक्षा और अविश्वास की भावना को जन्म देती हैं। आतंकवादी रणनीति का मुख्य उद्देश्य यही होता है—समाज में अस्थिरता और विभाजन फैलाना ताकि राज्य की वैधता पर प्रश्न उठे।

इस स्थिति में मीडिया, राजनीतिक दलों और नागरिक समाज की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। बिना तथ्यों की पुष्टि के अफवाहें या सांप्रदायिक बयानबाज़ी स्थिति को और गंभीर बना सकती हैं। लेख में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि वर्तमान समय में “शांति और संयम” सबसे बड़ी आवश्यकता है।

 शासन और नागरिक समरसता की चुनौती (Governance and Social Cohesion)

सुरक्षा की दृष्टि से हर सफल नीति का मापदंड यह है कि ऐसी घटनाएँ घटें ही नहीं। जब कोई विस्फोट या आतंकी हमला होता है, तो यह न केवल सुरक्षा तंत्र की विफलता का संकेत है बल्कि शासन की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।

इसलिए, किसी भी आतंकवादी घटना के बाद केवल दोषियों की गिरफ्तारी पर्याप्त नहीं है। सरकार को पारदर्शी जांच, नागरिक संवाद, और सामुदायिक विश्वास बहाली के कदम उठाने चाहिए। लोकतांत्रिक शासन का दायित्व है कि वह कानून के साथ-साथ सहिष्णुता और एकता का वातावरण भी बनाए रखे।

निष्कर्ष: शांति, सतर्कता और समावेशी सुरक्षा की दिशा में (Conclusion: Toward Peace and Inclusive Security)

दिल्ली का यह विस्फोट यह याद दिलाता है कि भारत, जो विविधता और लोकतंत्र की शक्ति से परिपूर्ण है, उसे सुरक्षा और सामाजिक समरसता के बीच संतुलन बनाए रखना होगा।

आतंकवाद केवल सुरक्षा का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक चुनौती भी है। प्रभावी आतंकवाद-रोधी नीति वही है जो कठोरता के साथ-साथ न्याय, पारदर्शिता और नागरिक सहयोग को प्राथमिकता दे। सरकार, विपक्ष और मीडिया—तीनों की ज़िम्मेदारी है कि वे इस कठिन समय में देश की एकता और शांति को सर्वोपरि रखें।

Source : – The Hindu Editorial, November 11, 2025 — “Delhi blast near Red Fort: On need for calm and clarity”

UPSC / State PCS के लिए उपयोगिता (Relevance for UPSC & State PCS Exams)

  • GS Paper 2 (Governance, Constitution, Polity, Social Justice & International Relations)
    • Terrorism as a challenge to constitutional governance.
    • Balancing national security and civil liberties.
    • Role of institutions like NIA, MHA, and judiciary in counterterrorism.
  • GS Paper 3 (Internal Security, Disaster Management, Science & Tech)
    • Terrorism and challenges to internal security.
    • Role of state and non-state actors in internal destabilisation.
    • Technological solutions in counterterrorism and policing.
    • Cyber and chemical terror threats — emerging challenges.
  • GS Paper 4 (Ethics, Integrity & Aptitude)
    • Case study: Ethical dilemma in counterterrorism.
    • Role of media and bureaucracy in maintaining public trust.
  • Essay Paper (General Studies Essay)
    • Security without social harmony is unsustainable.
    • Terrorism tests not just the strength of a nation’s laws but the resilience of its people.
    • In countering terror, a state must remain lawful to remain legitimate.
    • Social cohesion is the strongest weapon against extremism.
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