उत्तराखण्ड में चित्रकला (Painting in Uttarakhand)
उत्तराखण्ड राज्य (Uttarakhand State) में चित्रकला धार्मिक पर्व व तीज-त्योहारों में और विविध संस्कारों में देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्त पूजा, अनुष्ठान आदि में भी इसके कई रूप देखने को मिलते हैं। राज्य में चित्रकला कालक्रम को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है
प्राचीनकालीन चित्रकला (Ancient Painting)
उत्तराखण्ड राज्य में ग्वारख्या, लाखु, ल्वेथाप, किमनी गाँव, हुड़ली, पेटशाल, फलसीमा आदि प्रागैतिहासिक गुफाओं में चित्रकला के सबसे प्राचीनतम (शैलचित्र) नमूने के रूप में मिलते हैं।
- ग्वारख्या गुफा शैल चित्र – चमोली स्थित इन गुफा शैलों पर पशुओं का चित्रांकन किया गया है। यह लाखु गुफा शैल चित्र से अधिक आकर्षक और चटकदार हैं।
- लाखु गुफा शैल चित्र – अल्मोड़ा के लाखु गुफा शैल चित्र में मानव को अकेले और समूह में नृत्य करते हुए तथा पशुओं को भी चित्रित किया गया है। इन चित्रों को रंगों से सुसज्जित किया गया है।
- ल्वेथाप शैल – चित्र अल्मोड़ा स्थित इस शैल चित्र में मानव को शिकार करते हुए प्रदर्शित किया गया है। इसमें एक-दूसरे के हाथ में हाथ डालकर मानव की नृत्य मुद्राओं को दिखाया गया है।
- किमनी गाँव शैल – चित्र चमोली स्थित किमनी गाँव के शैल चित्र में हथियार एवं पशुओं को चित्रित किया गया है। इन चित्रों का रंग सफेद है।
मध्य एवं आधुनिककालीन चित्रकला (Middle and Modern Painting)
विद्वानों के अनुसार गढ़वाल में चित्रकला का आरम्भ 16वीं शताब्दी मध्य में आरम्भ हुआ। यह काल महाराजा बलभद्र शाह (1473-1498 ई.) का था।
- महाराजा बलभद्र शाह ने काशी के कलाकारों से अपनी राजधानी श्रीनगर (गढ़वाल) में एक राजमहल का निर्माण करवाया था। उनके समय में राजप्रासाद में एक चित्रशाला भी निर्मित की गई थी।
- महाराजा फतेहशाह द्वारा चित्रकला का पोषण किया गया, साथ ही साहित्यकारों को भी प्रश्रय भी दिया गया।
- गढ़वाल नरेश पृथ्वीपति के शासनकाल (1658 ई.) में मुगल शाहजादा सुलेमान शिकोह के दो चित्रकार तुवर श्यामदास और हरदास गढ़वाल में बस गए तथा हरदास के वंशजों ने गढ़वाल शैली के विकास के लिए कार्य किया।
- 16वीं से 19वीं शताब्दी के मध्य जम्मू से लेकर गढ़वाल तक पहाड़ी चित्रशैली प्रचलित थी। ‘गढ़वाली चित्रशैली’ एक प्रकार से पहाड़ी चित्रशैली की ही एक मुख्य धारा है।
- हरदास के पुत्र हीरालाल को गढ़वाल शैली का सुत्रपात कर्ता तथा मोलाराम तोमर (1743-1833) को सबसे महान् चित्रकार माना जाता है।
गढ़वाली चित्रशैली की प्रमुख कृतियाँ (Major Works of Garhwali Painting)
नाम | वर्ष | कृतियाँ |
डॉ. कुमार स्वामी | 1916 | राजपूत पेण्टिंग्स (ऑक्सफोर्ड) |
बैरिस्टर मुकुन्दीलाल | 1921 | सम नोट्स ऑन मोलाराम (रूपम कलकत्ता) |
अजीत घोष | 1929 | द स्कूल ऑफ राजपूत पेण्टिंग्स |
ज. सी. फ्रेंच | 1931 | हिमालयन आर्ट (प्रकाशन लन्दन से) |
वी. आर्चर | 1954 | गढ़वाल पेण्टिंग (प्रकाशन लन्दन से) |
किशोरीलाल वैद्य | 1969 | पहाड़ी चित्रकला |
बैरिस्टर मुकुन्दीलाल | 1973 | गढ़वाल पेण्टिंग्स |
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