NCERT Solutions Class 8 Hindi (Vasant)
The NCERT Solutions in Hindi Language for Class 8 हिंदी (वसंत) भाग – III पाठ – 12 सुदामा चरित has been provided here to help the students in solving the questions from this exercise.
पाठ – 12 (सुदामा चरित)
प्रश्न – अभ्यास
कविता से
1. सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर : – सुदामा की दीनदशा को देखकर दुख के कारण श्री कृष्ण की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। उन्होंने सुदामा के पैरों को धोने के लिए पानी मँगवाया। परन्तु उनकी आँखों से इतने आँसू निकले की उन्ही आँसुओं से सुदामा के पैर धुल गए।
2. “पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।” पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर : – प्रस्तुत दोहे में यह कहा गया है कि जब सुदामा दीन-हीन अवस्था में कृष्ण के पास पहुँचे तो कृष्ण उन्हें देखकर व्यथित हो उठे। श्रीकृष्ण ने सुदामा के आगमन पर उनके पैरों को धोने के लिए परात में पानी मँगवाया परन्तु सुदामा की दुर्दशा देखकर श्रीकृष्ण को इतना कष्ट हुआ कि वे स्वयं रो पड़े और उनके आँसुओं से ही सुदामा के पैर धुल गए। अर्थात् परात में लाया गया जल व्यर्थ हो गया।
3. “चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।”
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
उत्तर : – उपर्युक्त पंक्ति श्रीकृष्ण अपने बालसखा सुदामा से कह रहे हैं।
(ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : – सुदामा अपने साथ भेंट के रूप में कृष्ण के लिए चिवड़ा लेकर आये हैं। लेकिन अपनी गरीबी के बोझ तले शर्माकर सुदामा चिवड़े की पोटली को अपनी बगल में छुपाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी बात पर कृष्ण अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
(ग) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
उत्तर : – बचपन में जब कृष्ण और सुदामा की गुरुमाता उन्हें खाने के लिए चने दिया करती थीं तो सुदामा छुपाकर सारे के सारे चने चट कर जाते थे। इसलिए कृष्ण उनसे कहते हैं कि वे चोरी की कला में तो बचपन से माहिर हैं।
4. द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
उत्तर : – द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा का मन बहुत दुखी था। वे कृष्ण द्वारा अपने प्रति किए गए व्यवहार के बारे में सोच रहे थे कि जब वे कृष्ण के पास पहुँचे तो कृष्ण ने आनन्द पूर्वक उनका आतिथ्य सत्कार किया था। क्या वह सब दिखावटी था? वे कृष्ण के व्यवहार से खीझ रहे थे क्योंकि उन्हें आशा थी कि श्रीकृष्ण उनकी दरिद्रता दूर करने के लिए धन-दौलत देकर विदा करेंगे परंतु श्रीकृष्ण ने उन्हें चोरी की उलहाना देकर खाली हाथ ही वापस भेज दिया।
5. अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : – जब सुदामा अपने गाँव पहुँचे तो वहाँ का दृश्य पूरी तरह से बदल चुका था। अपने सामने आलीशान महल, हाथी घोड़े, बाजे गाजे, आदि देखकर सुदामा को लगा कि वे रास्ता भूलकर फिर से द्वारका पहुँच गये हैं। थोड़ा ध्यान से देखने पर सुदामा को समझ में आया कि वे अपने गाँव में ही हैं। वे लोगों से पूछ रहे थे लेकिन अपनी झोपड़ी को खोज नहीं पा रहे थे।
6. निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर : – सुदामा सोचने लगे कि कमाल हो गया। जहाँ सर के ऊपर छत नहीं थी वहाँ अब सोने का महल शोभा दे रहा है। जिसके पैरों में जूते नहीं हुआ करते थे उसके आगे हाथी लिये हुए महावत खड़ा है। जिसे कठोर जमीन पर सोना पड़ता था उसके लिए फूलों से कोमल सेज सजा है। प्रभु की लीला अपरंपार है।
कविता से आगे
1. द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे। उनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए।
उत्तर : – श्रीकृष्ण और सुदामा बचपन में एक साथ शिक्षा ग्रहण करते थे। बचपन में दोनों की घनिष्ठ मित्रता के किस्से जग जाहिर थे। ठीक इसी तरह द्रुपद और द्रोण भी महर्षि भारद्वाज के आश्रम में पढ़ाई किया करते थे। द्रुपद के पिता राजा थे, तो वहीं द्रोण के दूर-दूर तक चर्चे थे। दोनों की मित्रता भी श्रीकृष्ण सुदामा जैसी ही थी। द्रुपद बचपन में द्रोण से कहते थे कि जब मैं राजा बनूंगा तो आधा राज्य तुम्हारे नाम कर दूंगा। हालांकि जैसे–जैसे समय बीता द्रोण और गरीब होता चला गया और द्रुपद की जिंदगी राजा जैसी हो गई। एक बार जब द्रोण उससे सहायता मांगने गए तो द्रुपद ने उसे अपनी मित्रता के लायक भी न समझा और उन्हें अपमानित करके भगा दिया। इसके बाद द्रोण ने पांडवों तथा कौरवों को धनुविद्या सिखानी शुरू की। फिर अर्जुन से गुरु–दक्षिणा में द्रुपद को बंदी बनाकर लाने को कहा। अर्जुन ने ऐसा ही किया। द्रोण ने उनके द्वारा किए गए अपमान की याद दिलाते हुए द्रुपद को मुक्त तो कर दिया।
सुदामा के कथानक से तुलना– कृष्ण और सुदामा की मित्रता जहाँ सच्चे अर्थों में आदर्श थी, वहीं द्रोण तथा द्रुपद की मित्रता एकदम ही इसके विपरीत थी।
2. उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता–पिता, भाई–बंधुओं से नजर फेरने लग जाता है ऐसे लोगों के लिए ‘सुदामा चरित’ कैसी चुनौती खड़ी करता हैं? लिखिए।
उत्तर : – इसमें कोई दो राय नहीं कि वक्त के साथ रिश्तों में खटास पड़ने लगी है। मौजूदा समय में इंसान सफल और समृद्ध होने के बाद अपने निर्धन माता–पिता और भाई–बंधुओं से नजर फेरने लगता है। ‘सुदामा चरित’ ऐसे व्यक्तित्व वाले इंसानों पर प्रश्नचिह्न लगाती है। अत्यधिक सुख–समृद्धि और पैसा आने के बाद इंसान को अपने निर्धन माता–पिता का निरादर नहीं करना चाहिए। उन्होंने न सिर्फ हमें जन्म दिया, बल्कि हमें बड़ी मुश्किलें में पाला–पोसा भी है| हमारी कामयाबी के पीछे उनकी कड़ी मेहनत छिपी है। हमारे सफल होने के पीछे भाई–बंधुओं का भी समान योगदान है। उनकी अच्छी एवं तर्कसंगत राय ने हमेशा हमारा बेहतर मार्गदर्शन किया है। हमें कृष्ण सुदामा की घनिष्ठ मित्रता से प्रेरित होकर हमें अपने माता–पिता और भाई–बंधुओं की मदद करनी चाहिए। ताकि हमारे सहारे से उनकी जीवन की नैया भी पार लग सके।
भाषा की बात
1. “पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सो पग धोए”
ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पढ़िए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छाँटिए।
उत्तर : – “कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।”- यहाँ अतिश्योक्ति अलंकार है। टूटी सी झोपड़ी के स्थान पर अचानक कंचन के महल का होना अतिश्योक्ति है।