NCERT Solutions Class 10 Hindi (Sparsh Part – II) Chapter 9 (रवीन्द्रनाथ ठाकुर)

NCERT Solutions Class 10 Hindi (Sparsh Part – II) 

The NCERT Solutions in Hindi Language for Class 10 हिंदी (स्पर्श भाग – 2) पाठ – 9 आत्मत्राण (रवीन्द्रनाथ ठाकुर) has been provided here to help the students in solving the questions from this exercise. 

पाठ – 9 (आत्मत्राण)

आत्मत्राण (रवीन्द्रनाथ ठाकुर) 

विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय।
दुःख-ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुख को मैं कर सकूँ सदा जय।
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले;
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय।।

मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणायम)
तरने की हो शक्ति अनामय।
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
केवल इतना रखना अनुनय-
वहन कर सकूँ इसको निर्भय।
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छिन-छिन में।
दुःख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय।।

 

प्रश्न-अभ्यास 

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1. कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है?
उत्तर – कवि करुणामय ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है की उसे भले ही दुःख दर्द और कष्ट दे परन्तु उन सबसे लड़ने की शक्ति भी दे। चाहे दुःख हो या ख़ुशी वो ईश्वर को कभी न भूले। उसके मन में कभी ईश्वर के प्रति संदेह न हो इतनी शक्ति की माँग कवि कर रहा है।

2. ‘विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं’ -कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर – कवि इस पंक्ति में ईश्वर से प्रार्थना करता है कि मैं ये नहीं कहता की मुझ पर कोई विपदा न आये और कोई दुःख न आये। बस मैं ये चाहता हूँ कि मुझे उन विपदाओं और कष्टों को झेलने की शक्ति या ताकत देना।

3. कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर – विपरीत परिस्थितियों के समय कोई सहायक अर्थात् सहायता न मिलने पर कवि प्रार्थना करता है कि हे प्रभु! विपरीत परिस्थितियों में भले ही कोई सहायक न हो, पर मेरा बल और पौरुष न डगमगाए तथा मेरा आत्मबल कमजोर न पड़े। कविपूर्ण आत्म-विश्वास के साथ सभी बाधाओं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति माँगता है।

4. अंत में कवि क्या अनुनय करता है?
उत्तर – अंत में कवि अनुनय करता है कि चाहे सब लोग उसे धोखा दें , उसके बुरे समय में कोई उसका साथ ना दे और सब दुःख दर्द उसे घेर लें फिर भी उसका विश्वास ईश्वर पर कभी कम नहीं होगा। ईश्वर के प्रति उसकी आस्था कभी कम नहीं होगी।

5. ‘आत्मत्राण’ शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘आत्मत्राण’ का अर्थ है आत्मा का त्राण अर्थात आत्मा या मन के भय का निवारण या भय की मुक्ति। कवि ईश्वर से यह प्रार्थना नहीं कर रहा है कि उसे दुःख ना मिले बल्कि वह मिले हुए दुःखों को सहने और झेलने की शक्ति ईश्वर से मांग रहा है। अतः यह शीर्षक पूर्णतया सार्थक है।

6. अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए आप प्रार्थना के अतिरिक्त और क्या-क्या प्रयास करते हैं? लिखिए।
उत्तर – अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना के अतिरिक्त परिश्रम ,संघर्ष ,सहनशीलता और कठिनाई से परेशानिओं का सामना करना जैसे प्रयास आवश्यक हैं। धैर्य पूर्वक हम इन प्रयासों के जरिये अपनी इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं।

7. क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर – हाँ, यह प्रार्थना गीत अन्य प्रार्थना गीतों से भिन्न है क्योंकि अन्य गीतों में ईश्वर से दुःख दर्द ,कष्टों को दूर करने और सुख शांति की कामना की जाती है। परन्तु इस गीत में ईश्वर से दुःख दर्द और कष्टों को दूर करने के लिए नहीं बल्कि उन दुःख दर्द और कष्टों को सहने की और झेलने की शक्ति देने के लिए कहा है।

(ख) निम्नलिखित अंशों का भाव स्पष्ट कीजिए-

1. नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानँ छिन-छिन में।
उत्तर – इन पंक्तियों में कवि  कह रहे हैं कि सुख के दिनों में भी ईश्वर को एक क्षण के लिए भी ना भूलूँ अर्थात हर क्षण ईश्वर को याद करता रहूं। मेरे प्रभु मेरे मन में आपके प्रति कोई संदेह न हो इतनी मुझे शक्ति देना।

2. हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही तो भी मन में ना मार्ने क्षय।
उत्तर – इन पंक्तियों में कवि  कह रहे हैं कि उन्हें अगर इस संसार में हानि भी उठानी पड़े और लाभ से हमेशा वंचित ही रहना पड़े तो भी कोई बात नहीं पर उनके मन की शक्ति का कभी नाश नहीं होना चाहिए अर्थात उनका मन हर परिस्थिति में आत्मविश्वास से भरा रहना चाहिए।

3. तरने की हो शक्ति अनामय
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही।
उत्तर – कवि इस संसार रूपी भवसागर, माया के दुष्कर सागर को स्वयं ही पार करना चाहता है। वह ईश्वर से अपने दायित्वों रूपी बोझ को हल्का नहीं कराना चाहता तथा वह प्रभु से सांत्वना रूपी इनाम को भी पाने का इच्छुक नहीं है। वह तो ईश्वर से संसाररूपी सागर की सभी बाधाओं को पार करने की अपार शक्ति व जीवन में संघर्ष करने का साहस चाहता है।

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