NCERT Solutions Class 10 Hindi (Sparsh Part – II)
The NCERT Solutions in Hindi Language for Class 10 हिंदी (स्पर्श भाग – 2) पाठ – 1 साखी (कबीर) has been provided here to help the students in solving the questions from this exercise.
पाठ – 1 (साखी)
साखी |
ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ।।
कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूँढै बन माँहि।
ऐसैं घटि- घटि राँम है, दुनियां देखै नाँहिं।।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नांहि।
सब अँधियारा मिटी गया, जब दीपक देख्या माँहि।।
सुखिया सब संसार है, खायै अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै।।
बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ।।
निंदक नेड़ा राखिये, आँगणि कुटी बँधाइ।
बिन साबण पाँणीं बिना, निरमल करै सुभाइ।।
पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
ऐकै अषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ।
हम घर जाल्या आपणाँ, लिया मुराड़ा हाथि।
अब घर जालौं तास का, जे चलै हमारे साथि।।
प्रश्न-अभ्यास |
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर – मीठी वाणी बोलने से औरों के मन से क्रोध और घृणा के भाव नष्ट हो जाते हैं जिससे उन्हें सुख प्राप्त होता है। इसके साथ ही हमारे मन के अहंकार भी नाश होता है और हमारे ह्रदय को शान्ति मिलती है जिससे तन को शीतलता प्राप्त होती है।
2. दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – दीपक में एक प्रकाशपुंज होता है जिसके प्रभाव के कारण अंधकार नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार मन में ज्ञान रूपी दीपक का प्रकाश फैलते ही मन में छाया भ्रम, संदेह और भयरूपी अंधकार समाप्त हो जाता है।
3. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते ?
उत्तर – ईश्वर कण-कण में व्याप्त है फिर भी हम उसे देख नहीं पाते क्योंकि हम उसे उचित जगह पर तलाशते ही नहीं हैं। ईश्वर तो हमारे भीतर है लेकिन हम उसे अपने भीतर ढ़ूँढ़ने की बजाय अन्य स्थानों; जैसे तीर्थ स्थल, मंदिर, मस्जिद आदि में ढ़ूँढ़ते हैं।
4. संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कबीर के अनुसार वह व्यक्ति दुखी है जो हमेशा भोगविलास और दुनियादारी में उलझा रहता है। जो व्यक्ति सांसारिक झंझटों से परे होकर ईश्वर की आराधना करता है वही सुखी है। यहाँ पर ‘सोने’ का मतलब है ईश्वर के अस्तित्व से अनभिज्ञ रहना। ठीक इसके उलट, ‘जागने का मतलब है अपनी मन की आँखों को खोलकर ईश्वर की आराधना करना।
5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर – अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए बड़ा ही कारगर उपाय सुझाया है। कबीर ने कहा है कि हमें अपने आलोचक से मुँह नहीं फेरना चाहिए। कबीर ने कहा है कि हो सके तो आलोचक को अपने आस पास ही रहने का प्रबंध कर दें। ऐसा होने से आलोचक हमारी कमियो को बताता रहेगा ताकि हम उन्हें दूर कर सकें। इससे हमारा स्वभाव निर्मल हो जाएगा।
6. ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ’–इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर – ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सु पंडित होइ’ पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि संसार में पीव अर्थात् ब्रह्म ही सत्य है। उसे पढ़े या जाने बिना कोई भी पंडित (ज्ञानी) नहीं बन सकता है।
7. कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कबीर की साखियों की भाषा की विशेषता है कि यह जन भाषा है। उन्होंने जनचेतना और जनभावनाओं को अपनी सधुक्कड़ी भाषा द्वारा साखियों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया है। इसलिए डॉ० हजारी प्रसाद विवेदी ने इनकी भाषा को भावानुरूपिणी माना है। अपनी चमत्कारिक भाषा के कारण आज भी इनके दोहे लोगों की जुबान पर हैं।
(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिएप्रश्न
1. बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
उत्तर – जब बिरह का साँप तन के अंदर बैठा हो तो कोई भी मंत्र काम नहीं आता है। यहाँ पर कवि ने प्रेमी के बिरह से पीड़ित व्यक्ति की तुलना ऐसे व्यक्ति से की जिससे ईश्वर दूर हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति हमेशा व्यथा में ही रहता है क्योंकि उसपर किसी भी दवा या उपचार का असर नहीं होता है।
2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।
उत्तर – इस पंक्ति में कवि कहता है कि जिस प्रकार मृग की नाभि में कस्तूरी रहती है किन्तु वह उसे जंगल में ढूँढता है। उसी प्रकार मनुष्य भी अज्ञानतावश वास्तविकता को नहीं जानता कि ईश्वर हर देह घट में निवास करता है और उसे प्राप्त करने के लिए धार्मिक स्थलों, अनुष्ठानों में ढूँढता रहता है।
3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
उत्तर – जब मनुष्य का मैं यानि अहँ उसपर हावी होता है तो उसे ईश्वर नहीं मिलते हैं। जब ईश्वर मिल जाते हैं तो मनुष्य का अस्तित्व नगण्य हो जाता है क्योंकि वह ईश्वर में मिल जाता है। ये सब ऐसे ही होता है जैसे दीपक के जलने से सारा अंधेरा दूर हो जाता है।
4. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई।
उत्तर – इसका अर्थ है कि पोथियाँ एवं वेद पढ़-पढ़कर संसार थक गया, लेकिन आज तक कोई भी पंडित नहीं बन सका; अर्थात् ईश्वर के प्रेम के बिना, उसकी कृपा के बिना कोई भी पंडित नहीं बन सकता तत्वज्ञान की प्राप्ति नहीं कर सकता।
भाषा अध्ययन |
1. पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए-
उदाहरण – जिवै – जीना
औरन, माँहि, देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास।
उत्तर –
शब्द | प्रचलित रूप |
औरन | औरों को, और |
साबण | साबुन |
माँहि | में (अंदर) |
मुवा | मर गया, मरा |
देख्या | देखा |
पीव | पिया, प्रिय |
भुवंगम | भुजंग |
जालौं | जलाऊँ |
नेड़ा | निकट |
आँगणि | आँगन में |
तास | उस |