India’s Statistical System and IMF’s Warning The Imperative of Data Reforms

भारत की सांख्यिकीय प्रणाली और IMF की चेतावनी: डेटा-सुधार की अनिवार्यता

November 29, 2025

यह लेख The Hindu में प्रकशित Editorial (Data deficiencies: On India and the IMF’s low grading) से लिया गया हैं, इस लेख में  भारत को IMF द्वारा राष्ट्रीय खाते सांख्यिकी के लिए दिया गया ‘C’ ग्रेड भारत की डेटा-व्यवस्था में मौजूद पद्धतिगत कमजोरियों, पुराने आधार-वर्ष (2011-12) और अनौपचारिक क्षेत्र की अपूर्ण मापन-समस्या को उजागर किया गया हैं

भारत और IMF की निम्न ग्रेडिंग: डेटा-सुधार में देरी की चुनौतियाँ

संवैधानिक एवं संस्थागत पृष्ठभूमि (Constitutional & Institutional Background)

भारत में सांख्यिकीय प्रणाली की जड़ें संविधान के अनुच्छेद 246, केंद्रीय सूची के प्रविष्टि 48, तथा सांख्यिकी मंत्रालय (MoSPI) के कार्यक्षेत्र में निहित हैं। आर्थिक गतिविधियों के वैज्ञानिक मापन और विश्वसनीय राष्ट्रीय लेखा-मानक बनाए रखने की ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) तथा राष्ट्रीय सांख्यिकीय आयोग (NSC) पर है।

राष्ट्रीय खातों में GDP, GVA, निवेश, उपभोग व्यय, उत्पादन संकेतक तथा क्षेत्रीय प्रदर्शन को शामिल किया जाता है। यह डेटा RBI की मौद्रिक नीति, वित्त मंत्रालय की राजकोषीय रणनीति, और नीति आयोग की विकासात्मक योजना का आधार बनता है। इसलिए IMF की ग्रेडिंग केवल सांख्यिकीय टिप्पणी नहीं बल्कि शासन और आर्थिक स्थिरता से जुड़ा संवेदनशील मुद्दा है।

तात्कालिक स्थिति: IMF का ‘C’ ग्रेड और उसके निहितार्थ (Current Status & IMF Assessment)

IMF ने भारत के राष्ट्रीय खातों को ‘C’ ग्रेड दिया है—जो कि दूसरा सबसे निम्न स्तर है। यह संकेत करता है कि भारत के सांख्यिकीय डेटा में ऐसी समस्याएँ हैं जो IMF की आर्थिक निगरानी (Surveillance) और भारत के वास्तविक आर्थिक आकलन को प्रभावित करती हैं।
महत्वपूर्ण बिंदु:

  • यह ग्रेड भारत को चीन जैसी श्रेणी में रखता है—जो कि पारदर्शिता के संदर्भ में निराशाजनक तुलना है।
  • IMF यह टिप्पणी पहली बार नहीं कर रहा; बल्कि लगातार पुराने आधार वर्ष 2011-12 को मुख्य समस्या बताया है।
  • इसी आधार-वर्ष की कमजोरी के कारण CPI को भी ‘A’ नहीं बल्कि ‘B’ ग्रेड मिला।

राष्ट्रीय लेखा-मानक यदि समयानुकूल न हों, तो गलत मूल्यांकन के आधार पर सरकार की नीतियाँ अप्रभावी हो सकती हैं—विशेषकर जब वैश्विक अनिश्चितताएँ और मौद्रिक-राजकोषीय समन्वय संतुलित निर्णयों पर निर्भर करता हो।

ऐतिहासिक संदर्भ (Historical Perspective)

भारत ने पिछले तीन दशकों में अपनी सांख्यिकी प्रणाली में कई संरचनात्मक सुधार किए हैं:

  • 1999 में NSC की स्थापना—सांख्यिकीय सुधारों के लिए एक स्वतंत्र संस्थागत ढांचा।
  • 2006 में MoSPI का पुनर्गठन—डेटा संग्रहण एवं प्रसंस्करण को आधुनिक बनाने के लिए।
  • 2015 में 2011-12 आधारित GDP श्रृंखला—MCA-21 कॉर्पोरेट डेटा का समावेशन, जो पूर्व ASI आधारित ढांचे से अधिक सूक्ष्म था।

फिर भी, डेटा-अपग्रेड की गति लगातार धीमी रही है। पिछले आधार-वर्ष को बदले 14 वर्ष होने वाले हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय मानक 5 वर्ष में आधार-वर्ष अपडेट का सुझाव देते हैं।

प्रमुख पद्धतिगत समस्याएँ (Key Methodological Problems)

(a) पुराना आधार-वर्ष (2011-12)

  • भारत द्वारा उपयोग किए जा रहे तीन मुख्य संकेतकों—राष्ट्रीय खाते, CPI और IIP—का आधार वर्ष 2011-12 है।
  • परिणामस्वरूप, उपभोग व्यवहार, उद्योग संरचना, डिजिटल अर्थव्यवस्था, ई-कॉमर्स और सेवाओं के नए रूपों को सांख्यिकी सही ढंग से प्रतिबिंबित नहीं कर पाती।
  • CPI में खाद्य पदार्थों का अत्यधिक भार (overweight) है, जो मुद्रास्फीति की वास्तविक प्रवृत्ति को विकृत करता है। यह सीधे RBI की मौद्रिक नीति को प्रभावित करता है।

(b) अनौपचारिक क्षेत्र का अपूर्ण आकलन

  • भारत की अर्थव्यवस्था का 40–50% हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में है (विभिन्न राष्ट्रीय सर्वेक्षण अनुमानों के आधार पर)।
  • यह क्षेत्र नकद-आधारित, गैर-पंजीकृत और अत्यधिक गतिशील है—जिसके कारण इसका मापन अत्यंत कठिन है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का कम आकलन GDP को या तो अधिक दिखा देता है या कम, जिससे नीतिगत भ्रम पैदा होता है।
  • IMF ने विशेष रूप से इस क्षेत्र को सर्वाधिक सुधार-आवश्यक क्षेत्र बताया है।

(c) डेटा रिलीज़ में देरी (Release Delays)

  • कई सर्वेक्षण रिपोर्टें, जैसे खपत व्यय सर्वे (CES) और NSO के वार्षिक रोजगार सर्वे, समय पर प्रकाशित नहीं हुए।
  • IMF के अनुसार, ऐसी देरी आर्थिक निगरानी की गुणवत्ता को कम करती है।

प्रशासनिक प्रयास एवं सुधार (Administrative Efforts & Reform Measures)

भारत सरकार ने व्यापक डेटा-अपग्रेड की प्रक्रिया शुरू की है:

  • 2026 की शुरुआत में नई श्रृंखला जारी की जाएगी (राष्ट्रीय खाते, CPI, IIP)।
  • GDP अनुमान में GST डेटा शामिल किया जाएगा—यह एक बड़ा सुधार है क्योंकि यह वास्तविक आर्थिक लेनदेन का निकटतम और आधुनिक रिकॉर्ड है।
  • सूचना-संग्रह प्रणालियों के डिजिटलीकरण, NSO के सैंपल फ्रेम के विस्तार, और डेटा-सत्यापन के लिए नई तकनीकों (AI आधारित आउटलेयर-चेकिंग) को अपनाने की तैयारी जारी है।

ये सुधार, यदि समय पर लागू हुए, तो अंतरराष्ट्रीय रेटिंग और डेटा-विश्वसनीयता में सुधार ला सकते हैं।

राजनीतिक आयाम (Political Dimensions)

डेटा-समीक्षा और राष्ट्रीय खातों की आलोचना अक्सर राजनीतिक बहस का विषय बनती है। कुछ उदाहरण:

  • संशोधित GDP श्रृंखला (2015) को लेकर विपक्ष द्वारा राजनीतिक आरोप
  • सर्वेक्षण डेटा रोकने के आरोप—विशेषकर 2017-18 रोजगार डेटा और 2017 खपत सर्वे
    डेटा का राजनीतिकरण सांख्यिकीय संस्थानों की विश्वसनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में भारत की छवि को नुकसान पहुँचाता है।

सामाजिक प्रभाव (Social Impact)

सटीक राष्ट्रीय खाते केवल नीति-सीमा निर्धारण नहीं बल्कि विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों की निर्मिति से भी जुड़े हैं।

  • यदि CPI मुद्रास्फीति उतार-चढ़ाव को सही तरह न दर्शाए तो गरीब परिवारों पर वास्तविक महँगाई का प्रभाव सामने नहीं आता।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का कम आकलन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, शहरी रोजगार नीतियों, तथा MSME सहायता कार्यक्रमों को प्रभावित करता है।
  • गलत अनुमान का अर्थ है कि लक्षित लाभार्थियों तक संसाधन समय पर और उचित मात्रा में नहीं पहुँचते।

समाधान का मार्ग (Way Forward)

लेख यह इंगित करता है कि समाधान बहुआयामी है:

(a) आधार-वर्ष का त्वरित अद्यतन

  • हर 5 वर्ष में आधार-वर्ष बदलना अनिवार्य किया जाए।
  • 2011-12 जैसे पुराने वर्ष पर निर्भरता समाप्त हो।

(b) अनौपचारिक क्षेत्र के बेहतर मापन के लिए नई रणनीतियाँ

  • डिजिटल भुगतान डेटा, GST ट्रेल्स, जियो-टैग्ड व्यावसायिक गतिविधियाँ।
  • बड़े डेटा (Big Data), मशीन लर्निंग आधारित अनुमान विधियाँ।

(c) संस्थागत स्वतंत्रता को सुदृढ़ करना

  • NSC को सांविधिक दर्जा (Statutory Status)।
  • डेटा प्रकाशन अनुसूची को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाना।

(d) अंतरराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन

  • UN-SNA 2008 और उसके अद्यतन दिशानिर्देशों के अनुरूप मापन।

लेख का निष्कर्ष: डेटा-अपग्रेड में देरी भारत की आर्थिक नीति, संस्थागत साख और वैश्विक आकलन को नुकसान पहुँचाती है। तेजी से, पारदर्शी और आधुनिक सुधार तत्काल आवश्यक हैं।

निष्कर्ष  (Conclusion)

IMF की ‘C’ ग्रेडिंग भारत की सांख्यिकीय प्रणाली में मौजूद संरचनात्मक कमियों, पुराने आधार-वर्ष और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के अपूर्ण आकलन की गंभीरता को रेखांकित करती है। समयबद्ध और तकनीक-आधारित डेटा-सुधार भारत की आर्थिक विश्वसनीयता और नीतिगत प्रभावशीलता के लिए अत्यंत आवश्यक है।

📌 UPSC / State PCS के संभावित परीक्षा प्रश्न

GS Paper I (Essay Paper)

  • “विश्वसनीय सांख्यिकी किसी भी लोकतंत्र की प्राणवायु है।” IMF की निम्न ग्रेडिंग के संदर्भ में भारत की डेटा-व्यवस्था की चुनौतियों एवं सुधार संभावनाओं का विश्लेषण कीजिए।

GS Paper II (Governance)

  • भारत की सांख्यिकी संस्थाओं की स्वतंत्रता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु NSC को सांविधिक दर्जा प्रदान करने के पक्ष-विपक्ष का विश्लेषण कीजिए।

GS Paper III (Economy)

  • भारत के राष्ट्रीय खाते सांख्यिकी में पुराने आधार-वर्ष के प्रभावों पर चर्चा कीजिए। यह RBI की मौद्रिक नीति को कैसे प्रभावित करता है?
  • अनौपचारिक क्षेत्र के आकलन संबंधी समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए बताइए कि GST डेटा GDP अनुमान को कैसे सुधार सकता है।
  • IMF की ‘C’ ग्रेडिंग भारत के आर्थिक निर्णय-निर्माण के लिए किस प्रकार चेतावनी-चिह्न है?

GS Paper IV (Ethics)

  • “सांख्यिकीय पारदर्शिता आर्थिक नैतिकता का केंद्रीय तत्व है।” उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

 

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