यह लेख The Hindi और Indian Express में प्रकशित लेख (Zero stars: On the Sanchar Saathi app और Government forcing down Sanchar Saathi app erodes privacy, hurts business) से लिया गया हैं, इस लेख में भारत में बढ़ते साइबर अपराध, विशेषकर IMEI spoofing, digital arrests, और government impersonation fraud की चुनौती को देखते हुए सरकार ने 28 नवंबर 2025 और 1 दिसंबर 2025 को नए निर्देश जारी किए, जिनमें Sanchar Saathi App का अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन प्रमुख है। परंतु इस कदम ने निजता, संवैधानिक वैधता और उद्योग हितों पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं।
निगरानी का खतरा: संचार साथी ऐप की अनिवार्यता पर संवैधानिक प्रश्न
प्रस्तावना: डिजिटल युग और साइबर अपराध का उभार
भारत विश्व की सबसे बड़ी डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं में एक है, जहाँ 80 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता और 115 करोड़ मोबाइल कनेक्शन हैं। इसके साथ ही साइबर अपराध का स्वरूप और जटिलता भी तेजी से बढ़ी है। पिछले पाँच वर्षों में भारत में साइबर धोखाधड़ी के मामलों में 300% वृद्धि दर्ज की गई है। लेख में उल्लेखित अपराध—“digital arrests”, cross-border cyber scams, और impersonation frauds—आज की बड़ी चुनौती बन चुके हैं।
अपराधियों द्वारा IMEI spoofing, SIM-unlinked messaging accounts तथा anonymous cross-border operations का उपयोग करके कानून प्रवर्तन से बचने का नया पैटर्न उभर रहा है। इसी पृष्ठभूमि में सरकार ने 28 नवंबर 2025 और 1 दिसंबर 2025 को नए निर्देश जारी किए, जिनका केंद्र Sanchar Saathi App mandate है।
हालाँकि सरकार का तर्क सुरक्षा-उन्मुख है, पर यह लेख दर्शाता है कि यह कदम “overkill” हो सकता है—क्योंकि यह निजता और संवैधानिक संतुलन को खतरा पहुँचा सकता है।
संवैधानिक पृष्ठभूमि: निजता का अधिकार और राज्य का हस्तक्षेप
भारत में नागरिकों की निजता का संरक्षण अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है। सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय—K.S. Puttaswamy बनाम संघ (2017)—ने निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी। इस निर्णय ने राज्य के हस्तक्षेप को तीन कसौटियों पर परखा:
- Legality (वैधता) — कोई भी दखल कानून पर आधारित होना चाहिए।
- Necessity (आवश्यकता) — यह हस्तक्षेप वैध उद्देश्य को साधने के लिए अनिवार्य होना चाहिए।
- Proportionality (अनुपातिकता) — हस्तक्षेप का स्तर उद्देश्य के अनुरूप और न्यूनतम होना चाहिए।
Sanchar Saathi App को प्री-इंस्टॉल करना और non-removable बनाना इन कसौटियों पर गंभीर चिंताएँ पैदा करता है—क्योंकि यह एक प्रशासनिक आदेश है, औपचारिक संसद द्वारा पारित कानून नहीं, और इसमें कम आक्रामक विकल्पों की उपेक्षा की गई है।
वर्तमान स्थिति: सरकार के दो महत्वपूर्ण निर्देश (Nov–Dec 2025)
लेख के अनुसार, DoT ने दो आदेश जारी किए:
(i) SIM Binding Directive – 28 नवंबर 2025
- यदि उपयोगकर्ता फोन से SIM हटाता है, तो WhatsApp/Telegram जैसे अकाउंट निष्क्रिय हो जाएंगे।
- यह सुरक्षा के लिहाज से अहम है, पर इससे moderate inconvenience उत्पन्न होगा।
(ii) Sanchar Saathi App Pre-installation Directive – 1 दिसंबर 2025
- मार्च 2026 से भारत में निर्मित/आयातित सभी स्मार्टफोन में ऐप प्री-इंस्टॉल होगा।
- ऐप delete/disable नहीं किया जा सकेगा।
- यह “readily visible and accessible” रहेगा और सभी फीचर्स के साथ “non-restricted mode” में कार्य करेगा।
यह प्रावधान ऐप को फोन के OS में उच्च सुरक्षा अधिकार (elevated permissions) प्रदान करता है, जिसमें शामिल हो सकते हैं:
- कैमरा एक्सेस
- SMS और कॉल डेटा एक्सेस
- लोकेशन ट्रैकिंग
- IMEI लिंकिंग
ऐसी पहुँच इसे Panopticon-style surveillance tool में बदल सकती है।
साइबर अपराध के तकनीकी आयाम: वर्तमान संकट की जड़
तकनीकी कारक इस समस्या की जड़ हैं—
1. Instant Messaging Account Persistence
SIM हटाने के बाद भी अकाउंट सक्रिय रहना अपराधियों को पूरी anonymity देता है।
2. IMEI Spoofing & Tampering
IMEI नंबर किसी भी फोन का unique identifier होता है। भारत में हर वर्ष लाखों फर्जी या बदल हुए IMEI नंबर पाए जाते हैं, जिससे अपराधियों का पता लगाना कठिन हो जाता है।
3. Cross-Border Cyber Syndicates
कई धोखाधड़ी नागालैंड–म्यांमार बॉर्डर, कंबोडिया, लाओस, और दक्षिण एशियाई साइबर हब्स से संचालित होती हैं।
इन समस्याओं के समग्र समाधान में संचार साथी ऐप को एक टूल के रूप में देखा जा रहा है, पर इसका अनिवार्य स्वरूप समस्याग्रस्त है।
ऐप की कार्यक्षमता और अब तक की सफलता
सरकार के अनुसार ऐप ने जनवरी–अगस्त 2025 के बीच उल्लेखनीय प्रगति की—
- 50 लाख से अधिक डाउनलोड
- 37.28 लाख चोरी/खोए फोन ब्लॉक
- 22.76 लाख फोन ट्रेस किए गए
ये आँकड़े ऐप की उपयोगिता दर्शाते हैं। यह उपयोगकर्ताओं को सक्षम बनाता है:
- धोखाधड़ी कॉल/संदेश रिपोर्ट करने में
- बैंक/वित्तीय संस्थानों के “trusted numbers” की पुष्टि में
- खोए मोबाइल ब्लॉक/ट्रेस करने में
परंतु व्यापक उपयोगिता के बावजूद ऐप को फोर्सफुली प्री-इंस्टॉल करने का कदम उचित नहीं है।
सरकार का दृष्टिकोण: सुरक्षा और डिजिटल शासन
सरकार का दावा है कि यह निर्णय निम्नलिखित उद्देश्यों से प्रेरित है:
- Fake/duplicate devices की पहचान
- IMEI-संबंधी अपराधों पर रोकथाम
- Lost/stolen phone tracking ecosystem मजबूत करना
- Spam और साइबर फ्रॉड रोकना
सरकार डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा (DPI) बनाने में अग्रणी है—जैसे DigiLocker, Aadhaar, UPI, FASTag—इसलिए संचार साथी को उसी दिशा का विस्तार माना जा सकता है।
परंतु इतने व्यापक अधिकारों वाला ऐप केवल “security verification tool” नहीं, बल्कि निगरानी की क्षमता भी पैदा करता है।
निजता और निगरानी की चिंता: Pegasus precedent
लेख स्पष्ट रूप से कहता है कि नागरिकों का विद्यमान अविश्वास सरकार द्वारा पहले किए गए कार्यों से उत्पन्न हुआ है—
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Pegasus Spyware Scandal (2021), जिसने पत्रकारों, विपक्ष के नेताओं और कार्यकर्ताओं की निगरानी की।
Sanchar Saathi को “non-removable” बनाना उसी प्रवृत्ति का विस्तार माना जा रहा है।
यह ऐप सिद्धांततः—
- लोकेशन ट्रैकिंग
- संचार पैटर्न विश्लेषण
- डिवाइस मेटाडेटा संग्रह
- फर्जी IMEI निगरानी
जैसे फीचर्स उपयोग कर सकता है, जिससे bulk surveillance की संभावना बढ़ जाती है।
औद्योगिक और आर्थिक प्रभाव: विनिर्माण क्षेत्र की चिंता
भारत विश्व का प्रमुख स्मार्टफोन निर्माण हब बन रहा है।
- USA में निर्यात होने वाले हर 3 स्मार्टफोन में से 1 भारत में बना है।
- वैश्विक iPhone उत्पादन का लगभग 20% भारत में होता है।
- Apple, Samsung, Xiaomi जैसी कंपनियाँ उत्पादन-linked incentive (PLI) योजना से लाभ लेती हैं।
Sanchar Saathi की अनिवार्यता—
- OS में गहरे हस्तक्षेप
- compliance burden
- data security concerns
जैसे मुद्दों के कारण व्यापार-अनुकूलता (Ease of Doing Business) को प्रभावित कर सकती है। Apple सहित कई कंपनियाँ इसका विरोध कर रही हैं और इसे अदालत में चुनौती देने की संभावना है।
लोकतांत्रिक सिद्धांत और नागरिक स्वतंत्रता
“consent must be opt-in, not opt-out”।
यदि ऐप uninstall किया जा सकता भी हो, तब भी—
- pre-installation itself compromises consent
- digital traces (digital dust) system में बने रहते हैं
निजता एक ऐसा अधिकार है जो व्यक्ति की गरिमा, स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय से जुड़ा है, न कि केवल सुरक्षा से। इसलिए ऐप का अनिवार्य रूप लोकतांत्रिक सिद्धांतों को चुनौती देता है।
वैकल्पिक उपाय: संवैधानिक और तकनीकी संतुलन की राह
संभावित समाधान :
- Voluntary Adoption Model – जैसे DigiLocker, DigiYatra, संचार साथी भी स्वैच्छिक हो सकता है।
- Legislative Backing (कानूनी आधार) – ऐप को संसद द्वारा पारित डेटा संरक्षण-केंद्रित कानून के तहत लागू किया जाए।
- Privacy Audits & Independent Oversight
- डेटा का उपयोग
- ऐप की सुरक्षा
- misuse possibility, इन पर नियमित independent audit हो।
- Public Awareness Campaign – सरकार साइबर साक्षरता बढ़ाकर ऐप के स्वैच्छिक उपयोग को प्रोत्साहित कर सकती है।
- Strengthening State Capacity
- साइबर पुलिस स्टेशनों का विस्तार
- डिजिटल forensics प्रशिक्षण
- cross-border cyber cooperation तंत्र
निष्कर्ष (Conclusion)
संचार साथी ऐप सुरक्षा और साइबर अपराध रोकथाम जैसे वैध उद्देश्य को साधने की क्षमता रखता है, परंतु इसे अनिवार्य बनाना तथा delete/disable न करने देना भारतीय संविधान के निजता-सम्मत ढाँचे, उद्योग-अनुकूल नीतियों और नागरिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के विपरीत है। इसके क्रियान्वयन से सुरक्षा से अधिक हानि की संभावना प्रबल है। संविधान और तकनीक के बीच संतुलन हेतु इसे स्वैच्छिक बनाया जाना ही सर्वोत्तम विकल्प है।
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📌 UPSC / State PCS के संभावित परीक्षा प्रश्न GS Paper I (Essay Paper)
GS Paper II (Polity, Governance)
GS Paper III (Internal Security & Technology)
GS Paper IV (Ethics)
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