COP30 A New Phase of Climate Action Implementation

COP30: जलवायु कार्रवाई के कार्यान्वयन का नया दौर

November 27, 2025

यह लेख The Hindu में प्रकशित Editorial (Fighting the fire: On COP30) से लिया गया हैं, इस लेख में वैश्विक जलवायु शासन के दस वर्षों बाद COP30 ने कार्यान्वयन, अनुकूलन, और न्यायपूर्ण संक्रमण पर बल देते हुए विकसित–विकासशील देशों के बीच उत्तरदायित्व, वित्त और बहुपक्षीय सहयोग की अनिवार्यता को रेखांकित किया।

पेरिस समझौते के दस वर्ष बाद: वैश्विक जलवायु शासन की चुनौतियाँ

परिचय: COP30 का व्यापक संदर्भ

विश्व जलवायु नीति के लिए Conference of Parties (COP) की वार्षिक बैठकें वैश्विक जलवायु शासन की दिशा निर्धारित करती हैं। इस वर्ष का सम्मेलन COP30 ब्राज़ील के शहर बेलेम में हुआ, जिसे जानबूझकर अमेज़न वर्षावन की निकटता को ध्यान में रखकर चुना गया। अमेज़न को पृथ्वी के “फेफड़े” कहा जाता है, इसलिए यह स्थान जलवायु संरक्षण की वैश्विक प्रतिबद्धताओं का प्रतीक था। यह सम्मेलन विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि 2015 के ऐतिहासिक पेरिस समझौते के 10 वर्ष पूरे हो गए थे—एक समझौता जिसमें 195 देशों ने वैश्विक तापमान को 2°C के भीतर रखने और, यदि संभव हो, इसे 1.5°C तक सीमित करने का संकल्प किया था।

परंतु 2024 में पहली बार वैश्विक तापमान ने 1.5°C की सीमा को पार किया, भले ही इसे “न्यू नॉर्मल” बनने के लिए लगातार कई वर्षों तक ऐसा होना पड़ेगा। इस संदर्भ में COP30 का उद्देश्य मात्र चर्चाओं तक सीमित नहीं था बल्कि कार्यान्वयन (Implementation) को केंद्र में रखना था।

संवैधानिक व संस्थागत पृष्ठभूमि: पेरिस समझौते के 10 वर्ष

पेरिस समझौता (2015) आधुनिक जलवायु शासन का आधारस्तंभ है। इसके तीन प्रमुख उद्देश्य थे:

  • तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे रखना।
  • इसे 1.5°C तक सीमित करने का प्रयास करना।
  • देशों द्वारा बनाए गए राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (NDCs) के माध्यम से वैश्विक उत्सर्जन को नियंत्रित करना।

पिछले दस वर्षों में जलवायु वार्ताओं का उद्देश्य देशों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं को फॉसिल-फ्यूल निर्भरता से हटाकर कम-कार्बन पथ पर ले जाना था। साथ ही जलवायु-जनित नुकसान—समुद्र-स्तर वृद्धि, अत्यधिक ताप, बाढ़, वनाग्नि—की भरपाई के लिए वित्तीय तंत्र विकसित करना भी शामिल था।

COPs का संस्थागत ढाँचा देशों को उनकी जिम्मेदारियों के अनुसार वर्गीकृत करता है:

  • विकसित देश: ऐतिहासिक प्रदूषण के कारण अधिक जिम्मेदारी।
  • विकासशील देश: विकास की जरूरतों के कारण अधिक वित्त और प्रौद्योगिकी की मांग।

COP30 इसी तनावपूर्ण लेकिन आवश्यक बहुपक्षीय प्रणाली को आगे बढ़ाने का एक प्रयास था।

वर्तमान स्थिति: दो ध्रुवीय वैश्विक ब्लॉक

पिछले वर्षों में जलवायु वार्ताएँ दो स्पष्ट ब्लॉकों में बँट चुकी हैं:

  • विकसित देशों का समूह, जो सख्त उत्सर्जन लक्ष्य, फॉसिल-फ्यूल चरणबद्ध समाप्ति, और तेज़ कार्रवाई की वकालत करता है।
  • विकासशील देशों व पेट्रो-स्टेट्स का समूह, जो इसे विकास-विरोधी मानते हुए अधिक वित्त, तकनीकी सहयोग, और विकल्प तकनीकों की उपलब्धता की मांग करता है।

इस विभाजन को और गहरा करने वाले कारक शामिल हैं:

  • प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखने की चिंता
  • ग्रीन टेक्नोलॉजी की असमान पहुंच
  • $100 बिलियन/वर्ष की जलवायु-वित्त प्रतिबद्धता की अधूरी पूर्ति

COP30 इसी वैचारिक दूरी को पाटने के लिए ‘कार्यान्वयन’ जैसे साझा लक्ष्यों पर बल देता दिखाई दिया।

COP30 का विशिष्ट महत्व: ‘Implementation’ और ‘Mutirão’

ब्राज़ील की अध्यक्षता ने COP30 का मूल मंत्र “Implementation” रखा—यानी अब समय निर्णयों की बजाय जमीनी कार्रवाई का है। उन्होंने इसके लिए ब्राज़ीली पुर्तगाली शब्द “Mutirão” (अर्थ: सामूहिक प्रयास/मिलजुलकर काम करना) को केंद्र में रखा।

लगातार बदलते भू-राजनीतिक माहौल में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह रहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.) की अनुपस्थिति ने विकसित देशों की एकजुटता को कमजोर किया। फिर भी कई सकारात्मक पहलें उभरकर सामने आईं, जैसे:

  • अनुकूलन (Adaptation) को बढ़ी प्राथमिकता
  • न्यायपूर्ण संक्रमण (Just Transition) पर जोर
  • जलवायु-प्रतिरोधक बुनियादी ढाँचे के लिए वित्तीय प्रतिबद्धताएँ

ये विषय आम नागरिकों, छोटे किसानों, तटीय समुदायों और जलवायु-प्रभावित समाजों के वास्तविक अनुभवों से जुड़े हैं—इसलिए COP30 ने जलवायु शासन को अधिक मनुष्योन्मुख बनाने की दिशा में कदम उठाया।

भारत की भूमिका: नेतृत्व, परंतु संयमित स्थिति

भारत लंबे समय से G77+China, BASIC, और अन्य विकासशील देशों के समूहों में एक प्रमुख आवाज़ रहा है। COP30 में भारत ने ब्राज़ील की अध्यक्षता द्वारा उठाए गए मुद्दों—विशेष रूप से न्यायपूर्ण संक्रमण, जलवायु-वित्त, और अनुकूलन—का स्वागत किया।

हालाँकि, एक महत्वपूर्ण तथ्य यह रहा कि भारत ने अपने Updated Nationally Determined Contributions (NDCs) की घोषणा नहीं की। यह भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से समझा जा सकता है:

  • भारत अभी भी विकासशील अर्थव्यवस्था है, जिसे ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा में प्रगति के बावजूद कोयले और गैस की मांग बनी हुई है।
  • अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद भारत समान लेकिन विभेदित जिम्मेदारी (CBDR-RC) के सिद्धांत को प्राथमिकता देता है।

फिर भी भारत ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि न्यायपूर्ण विकास और ऊर्जा संक्रमण एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक होने चाहिए।

प्रशासनिक प्रयास: अनुकूलन और वित्त के नए आयाम

COP30 में प्रशासनिक स्तर पर तीन मुख्य प्रयास उभरकर सामने आए:

(1) अनुकूलन पर बढ़ा फोकस

जलवायु परिवर्तन के दैनिक प्रभाव—हीटवेव, चक्रवात, सूखा, बाढ़, फसल क्षति—को देखते हुए अनुकूलन को अब शमन जितना ही महत्वपूर्ण माना जा रहा है। COP30 ने इसके लिए:

  • अनुकूलन वित्त
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ
  • कृषि-लचीलापन कार्यक्रमों पर जोर दिया।

(2) न्यायपूर्ण संक्रमण

फॉसिल ईंधन आधारित रोजगार और अर्थव्यवस्थाओं को ध्वस्त किए बिना नवीकरणीय ऊर्जा की ओर जाना ही ‘जस्ट ट्रांज़िशन’ है। COP30 ने सुनिश्चित किया कि यह परिवर्तन सामाजिक असमानताओं को न बढ़ाए

(3) वित्तीय संरचनाएँ

जलवायु परिवर्तन से हुए नुकसान और क्षति की भरपाई के लिए Loss & Damage Fund पर फिर से ध्यान केंद्रित किया गया, लेकिन विकसित देशों की वित्तीय प्रतिबद्धताओं पर स्पष्टता अभी भी अस्पष्ट है।

सामाजिक प्रभाव: प्रदूषण, वनों की कटाई और जलवायु-नकारवाद

विश्व स्तर पर प्रदूषण, वनों की कटाई, और जलवायु नकारवाद (Climate Denialism) कहीं अधिक दिखाई देता है, जिससे COP की प्रगति नगण्य प्रतीत हो सकती है। फिर भी COPs का महत्व इस बात में है कि यह मानवता को उसके सबसे बड़े संकट के विरुद्ध एकजुट होने का मंच प्रदान करते हैं। यह तमाम राजनीतिक मतभेदों के बीच एक तरह की नैतिक बाध्यता की तरह काम करता है।

समाधान की राह: बहुपक्षीयता ही विकल्प

पेरिस समझौता और COP प्रक्रिया की मुख्य सीख यह है कि जलवायु परिवर्तन को कोई भी देश अकेले हल नहीं कर सकता। बहुपक्षीय सहयोग, वित्तीय जवाबदेही, और तकनीकी साझेदारी ही आगे का रास्ता है। COP30 ने इन तीन स्तंभों को पुनः मजबूत करने का प्रयास किया—भले ही परिणाम पूर्ण न हों, लेकिन यही मानवता का एकमात्र विकल्प है।

निष्कर्ष (Conclusion)

COP30 ने यह स्पष्ट किया कि ‘कार्यान्वयन का दशक’ शुरू हो चुका है। जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने का समय बीत चुका—अब ज़रूरत तेज़, समावेशी और वित्त-पोषित कार्रवाई की है।

📌 UPSC / State PCS के संभावित परीक्षा प्रश्न

GS Paper I (Essay Paper)

  • “जलवायु परिवर्तन के युग में वैश्विक बहुपक्षीयता की उपयोगिता और सीमाएँ”
  • “न्यायपूर्ण ऊर्जा संक्रमण: अवसर और चुनौतियाँ”

GS Paper II (Governance, IR)

  • जलवायु वार्ताओं में विकसित और विकासशील देशों की भूमिका की तुलना करते हुए COP30 के प्रमुख परिणामों की समीक्षा कीजिए।
  • पेरिस समझौते के कार्यान्वयन तंत्र के संदर्भ में भारत की रणनीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।

GS Paper III (Environment, Economy)

  • COP30 ने ‘अनुकूलन’ को केंद्र में रखकर जलवायु नीति की दिशा कैसे बदली? विश्लेषण कीजिए।
  • Loss & Damage Fund की उपयोगिता और इसकी सीमाएँ स्पष्ट करते हुए बताइए कि यह विकासशील देशों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है।

State PCS (General Studies)

  • “न्यायपूर्ण संक्रमण” (Just Transition) की अवधारणा को उदाहरण सहित समझाइए।
  • COP30 द्वारा सुझाए गए प्रमुख जलवायु-उपायों का क्षेत्रीय (State-specific) महत्व बताइए।

 

 

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