भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy)

3 दिसम्बर सन 1984

2-3 दिसंबर, 1984 की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) (परिवर्तित नाम डाउ केमिकल्स (Dow Chemicals)) कंपनी के प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनाइट (Methyl Isocyanate) गैस का रिसाव हुआ था।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना में 3,787 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 5.74 लाख से ज्यादा लोग घायल या अपंग हुए थे।  सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए एक आंकड़े में बताया गया है कि दुर्घटना ने 15,724 लोगों की जान ले ली थी।

इस हादसे का मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन, जो इस कंपनी का CEO था। 6 दिसंबर 1984 को एंडरसन को गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन अगले ही दिन 7 दिसंबर को उन्हें सरकारी विमान से दिल्ली भेजा गया और वहां से वो अमेरिका चले गया। इसके बाद एंडरसन कभी भारत लौटकर नहीं आए। 29 सितंबर 2014 को फ्लोरिडा के वीरो बीच पर 93 साल की उम्र में एंडरसन का निधन हो गया।

गैस रिसाव का कारण

1. UCIL संयंत्र में खराब रखरखाव वाले टैंकों में बड़ी मात्रा में MIC का भंडारण किया जा रहा था। 2. वित्तीय घाटे और बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा के कारण संयंत्र कम कर्मचारियों और सुरक्षा मानकों के साथ काम कर रहा था। 3. संयंत्र घनी आबादी वाले क्षेत्र में स्थित था, जहाँ कोई उचित आपातकालीन योजना या चेतावनी प्रणाली नहीं थी। 4. आपदा की रात पानी की बड़ी मात्रा MIC भंडारण टैंक (E610) में से एक में प्रवेश कर गई।

प्रतिक्रियाएँ

1. संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कम-से-कम 30 टन ज़हरीली गैस ने 600,000 से अधिक श्रमिकों और आसपास के निवासियों को प्रभावित किया है।