Uttarakhand GK Notes in hindi

उत्तराखंड का इतिहास – आद्यैतिहासिक काल (History of Uttarakhand – Prehistoric Period)

प्रागेतिहासिक काल व ऐतिहासिक काल के मध्य का समय आद्य ऐतिहासिक काल माना जाता है। यह मनुष्य के सांस्कृतिक विकास का दौर था इस काल के कुछ भाग में लिखित सामग्री प्राप्त नहीं हुई जबकि इसके अग्रिम चरण में लिखित प्रमाण मिले हैं इसलिए आद्य ऐतिहासिक काल का अध्ययन दो स्रोतों के माध्यम से किया जाता है।

  1. पुरातात्विक स्रोत
  2. लिखित स्रोत या साहित्यिक स्त्रोत

पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Sources)

पुरातात्विक साधन अत्यन्त प्रमाणिक होते हैं तथा इनके माध्यम से इतिहास के अन्ध-युगों की भी जानकारी प्राप्त हो जाती है। इसके तहत मूलतः अभिलेख, स्मारक एवं मुद्रा सम्बन्धी अवशेष आते है। उत्तराखण्ड के इतिहास निर्माण में तो इनकी महत्ता और भी अधिक है।

पुरातात्विक स्रोतों को अध्ययन की दृष्टि से निम्न भागों में बांटा गया है –

ऊखल-सदृश गड्डे (Cup-Marks)

  • विशाल शिलाओं एवं चट्टान पर बने उखल के आकार के गोल गड्ढों को कप मार्क्स (Cup-marks) कहते हैं।
  • हेनवुड ने सर्वप्रथम चंपावत जिले के देवीधुरा नामक स्थान पर इस प्रकार के (ओखलियों) की खोज की।
  • सर्वप्रथम उत्तराखंड में पुरातात्विक स्रोतों की खोज का श्रेय हेनवुड (1856) को जाता है।
  • रिवेट-कारनक (1877 ई०) को अल्मोड़ा के द्वारहाट के कप मार्क्स चंद्रेश्वर मंदिर में लगभग 200 कप मार्क्स मिले जो कि 12 समांतर पंक्तियों में लगे हुए थे।
  • रिवेट-कारनक ने इन शैल चित्रों की तुलना यूरोप के शैलचित्रों से की।
  • डॉ० यशोधर मठपाल को द्वारहाट मंदिर से कुछ दूर पश्चिमी रामगंगा घाटी के नोला ग्राम में इन्हीं के समान 72 कप मार्क्स प्राप्त हुए।

ताम्र उपकरण

  • ये उपकरण तांबे के बने होते थे।
  • ताम्र निखात संस्कृति ऊपरी गंगा घाटी की प्राचीनतम संस्कृति है।
  • हरिद्वार के निकट बहादराबाद से ताम्र निर्मित भाला, रिंस, चूड़ियां आदि नहर की खुदाई के दौरान प्राप्त हुए। एच. डी. सांकलिया के अनुसार ये उपकरण गोदावरी घाटी से प्राप्त उपकरणों के समरूप थे।
  • वर्ष 1986 ई० में अल्मोड़ा जनपद से एक एवं वर्ष 1989ई० में बनकोट (पिथौरागढ़) से आठ ताम्र मानव आकृतियां प्राप्त हुए।
  • इन ताम्र उपकरणों से इस बात की पुष्टि होती है कि गढ़वाल – कुमाँऊ में ताम्र उत्पादन इस युग में होता था।

महापाषाणीय शवाधान

  • महापाषाणीय शवाधान का सबसे महत्वपूर्ण स्थल मलारी गांव (चमोली) है यहां 1956 ई० में महापाषाणीय शवाधान खोजे गये जिनकी खोज का श्रेय श्री शिव प्रसाद डबराल को जाता है। मलारी गांव मारछा जनजाति का गाँव है।
  • मलारी में मानव कंकाल के साथ-साथ भेड़, घोड़ो, आदि के कंकाल व मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए।
  • राहुल सांकर्त्यन ने हिमाचल प्रदेश के किन्नोर के लिपा गाँव में महापाषाणीय शवाधान की खोज की।

शवाधान – शवों को रखने की प्रथा शवाधान कहलाती है। हड़पा सभ्यता में तीन प्रकार की शवाधान विधियाँ थी।

  • पूर्ण समाधिकारण
  • आंशिक समाधिकारण
  • दाह संस्कार

लिखित स्रोत (Written Sources)

वेद

  • वेद चार है – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद।
  • सबसे पुराना वेद ऋग्वेद नवीनतम वेद अथर्ववेद है।
  • उत्तराखंड का प्रथम उल्लेख हमें ऋग्वेद से प्राप्त होता है।
  • उत्तराखंड को ऋग्वेद में देवभूमि मनीषियों की पूर्ण भूमि कहा गया है।

ब्राह्मण ग्रन्थ

  • ब्राह्मण ग्रन्थ यज्ञों तथा कर्मकांडों के विधान और इनकी क्रियाओं को समझने के लिए आवश्यक होते हैं। इनकी भाषा वैदिक संस्कृति है।
  • ये पद्य में लिखे गये है।
  • प्रत्येक वेद के ब्राह्मण ग्रन्थ होते हैं।
  • ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रन्थ है।
  • ऐतरेय ब्राह्मण ग्रन्थ – उत्तराखंड के लिए ‘कुरुओं की भूमि’ या ‘उत्तर कुरु’ शब्द का प्रयोग हुआ है।
  • कौषीतकि ब्राह्मण ग्रन्थ वाक् देवी का निवास स्थान बद्री आश्रम में है।

पुराण

  • पुराण 18 हैं जिनमे सबसे बड़ा पुराण स्कंद पुराण है व सबसे पुराना पुराण मत्स्य पुराण है।
  • जातकों में भी हिमालय के गंगातट का वर्णन मिलता है।

स्कंद पुराण

  • स्कंद पुराण में 5 हिमालयी खंडो (नेपाल, मानसखंड, केदारखंड, जालंधर, कश्मीर) का उल्लेख है।
  • गढ़वाल क्षेत्र को स्कंद पुराण में केदारखंड कुमाँऊ क्षेत्र को मानसखंड कहा गया।
  • केदारखण्ड में गोपेश्वर ‘गोस्थल’ नाम से वर्णित है।
  • स्कंद पुराण में हरिद्वार को ‘मायापुरी’ कुमाँऊ के लिये कुर्मांचल शब्द का उल्लेख मिलता है।
  • कांतेश्वर पर्वत (कानदेव) पर भगवान विष्णु ने कुर्मा या कच्छपावतार लिया इसलिए कुमांऊ क्षेत्र को प्राचीन में कुर्मांचल के नाम से जाना जाता था। बाद में कुर्मांचल को ही कुमाँऊ कहा गया।
  • पुराणों में ‘मानसखंड’ ‘केदारखंड’ के संयुक्त क्षेत्र को – उत्तर खंड, ब्रह्मपुर एवं खसदेश नामों से संबोधित किया है।

ब्रह्मपुराण, वायुपुराण

  • ब्रह्मपुराण व वायुपुराण के अनुसार कुमाँऊ क्षेत्र में किरात, किन्नर, यक्ष, गंधर्व, नाग आदि जातियों का निवास था।

महाभारत

  • महाभारत के वनपर्व में हरिद्वार से केदारनाथ तक के क्षेत्रों का वर्णन मिलता है उस समय इस क्षेत्र में पुलिंद व किरात जातियों का अधिपत्य था।
  • पुलिंद राजा सुबाहु जिसने पांडवों की और से युद्ध में भाग लिया था कि राजधानी श्रीनगर थी।
  • महाभारत के वनपर्व में लोमश ऋषि के साथ पांडवों के इस क्षेत्र में आने का उल्लेख है।
  • आदि पर्व में उल्लेख – अर्जुन व उल्लुपी का विवाह गंगाद्वार में हुआ था।

रामायण

  • टिहरी गढ़वाल की हिमयाण पट्टी में विसोन नामक पर्वत पर वशिष्ठ गुफा, वशिष्ठ आश्रम, एवं वशिष्ठ कुंड स्थित है।
  • श्री राम के वनवास जाने पर वशिष्ठ मुनि ने अपनी पत्नी अरुंधति के साथ यहीं निवास किया था।
  • तपोवन टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित है जहां लक्ष्मण ने तपस्या की थी।
  • पौड़ी गढ़वाल के कोट विकासखंड में सितोन्सयूं नामक स्थान है इस स्थान पर माता सीता पृथ्वी में समायी थी। इसी कारण कोट ब्लॉक में प्रत्येक वर्ष मनसार मेला लगता है।
  • रामायणकालीन बाणासुर का भी राज्य गढ़वाल क्षेत्र में था और इसकी राजधानी ज्योतिषपुर (जोशीमठ) थी।

अभिज्ञान शंकुतलम

  • अभिज्ञान शंकुतलम की रचना कालिदास ने की।
  • प्राचीन काल में उत्तराखंड में दो विद्यापीठ थे बद्रिकाश्रम एवं कण्वाश्रम
  • कण्वाश्रम उत्तराखंड के कोटद्वार से 14 km दूर हेमकूट व मणिकूट पर्वतों की गोद मे स्थित है।
  • कण्वाश्रम में दुष्यंत व शकुंतला का प्रेम प्रसंग जुड़ा है शकुंतला ऋषि विश्वामित्र तथा स्वर्ग की अप्सरा, मेनका की पुत्री थी।
  • शकुंतला व दुष्यंत का एक पुत्र हुआ भरत जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
  • इसी कण्वाश्रम में कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम की रचना की।
  • कण्वाश्रम मालिनी नदी के तट पर स्थित है।
  • वर्तमान में यह स्थान चौकाघाट के नाम से जाना जाता है।

मेघदूत

  • कालिदास द्वारा रचित मेघदूत के अनुसार अल्कापुरी (चमोली) कुबेर की राजधानी थी।

बौद्ध ग्रंथ

  • पाली भाषा के बौद्ध ग्रंथों में उत्तराखंड को हिमवंत कहा गया है।

अन्य

  • इतिहासकार हरीराम धस्माना, भजन सिंह, शिवांगी नौटियाल के अनुसार ऋग्वेद में सप्तसैंधव प्रदेश वर्तमान गढ़वाल ही था।
  • चमोली के निकट स्थित नारायण गुफा, व्यास गुफा, मुचकुंद गुफाओं में वेदों की रचना वादरायण या वेदव्यास ने की थी।
  • पुराणों के अनुसार मनु का निवास स्थान तथा कुबेर की राजधानी अलकापुरी (फूलों की घाटी) को माना जाता है।
  • ब्रह्मा के मानस पुत्रों दक्ष, मरीचि, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु और अत्रि का निवास स्थान गढ़वाल ही था।
  • बाणभट्ट की पुस्तक हर्षचरित में भी इस क्षेत्र की यात्रा पर आने-जाने वाले लोगों का उल्लेख मिलता है।
  • कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में कश्मीर के शासक ललितादित्तय मुक्तापीड़ द्वारा गढ़वाल विजय का उल्लेख मिलता है।
  • जोशीमठ से प्राप्त हस्तलिखित ग्रन्थ ‘गुरूपादुक’ में अनेक शासक और वंशो का उल्लेख प्राप्त होता है।

विदेशी साहित्य

  • हर्षवर्धन के शासनकाल में ही चीनी यात्री ह्वेनसांग उत्तराखण्ड राज्य की यात्रा पर आया था, उसने अपने यात्रा वृतांत में हरिद्वार का उल्लेख ‘मो-यू-लो’ नाम से एवं हिमालय का ‘पो-लि-हि-मो-यू-ला’ अथवा ब्रह्मपुर राज्य के नाम से किया है।
  • चीनी यात्री युवान-च्वांड (ह्वेनसांग) ने सातवीं सदी में अपने यात्रा वृतांत में उत्तराखंड के विभिन्न शहरों का वर्णन किया है –
    • ब्रह्मपुर – उत्तराखंड
    • शत्रुघ्न नगर – उत्तरकाशी
    • गोविपाषाण – काशीपुर
    • सुधनगर – कालसी
    • तिकसेन – मुनस्यारी
    • बख्शी – नानकमत्ता
    • ग्रास्टीनगंज – टनकपुर
    • मो-यू-लो – हरिद्वार
  • मुगल काल में आए पुर्तगाली यात्री जेसुएट पादरी अन्तोनियो दे अन्द्रोदे 1624 में श्री नगर पंहुचा उस समय यहां का शासक श्यामशाह था।
  • तेमुर की आत्मकथा मुलुफात-इ-तिमुरी के अनुसार गंगाद्वार के निकट युद्ध करने वाले शासक –
    • बहरुज (कुटिला/कपिला राजा)
    • रतन सेन (सिरमौर का राजा)
  • फ्रांसिस बर्नियर ने हरिद्वार को शिव की राजधानी के रूप में उल्लेख किया है।

 

Read Also :
Uttarakhand Study Material in Hindi Language (हिंदी भाषा में)  Click Here
Uttarakhand Study Material in English Language
Click Here 
Uttarakhand Study Material One Liner in Hindi Language
Click Here
Uttarakhand UKPSC Previous Year Exam Paper  Click Here
Uttarakhand UKSSSC Previous Year Exam Paper  Click Here

उत्तराखंड का इतिहास – प्रागैतिहासिक काल (History of Uttarakhand – Prehistoric times)

उत्तराखंड की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं पौराणिक महत्ता की भांति यहां का इतिहास भी मानव सभ्यताओं के विकास का साक्षी है। प्रागैतिहासिक काल से ही इस भू-भाग में मानवीय क्रियाकलापों के प्रमाण मिलते हैं। विभिन्न कालों के अनुक्रम में उत्तराखंड के इतिहास का अध्ययन तीन भागों में किया जाता है –

1. प्रागैतिहासिक काल स्रोत :- पाषाणयुगीन उपकरण व गुहालेख चित्र
2. आद्यएतिहासिक काल स्रोत :- पुरातात्विक प्रमाण व साहित्यिक प्रमाण
3. ऐतिहासिक स्रोत :-  मुद्राए, ताम्रपत्र, अभिलेख, शिलालेख 

प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Times)

प्रागैतिहासिक काल वह काल है जिसकी जानकारी पुरातात्विक स्त्रोतों, पुरातात्विक स्थलों जैसे पाषाण युगीन उपकरण गुफा शैल चित्र आदि से प्राप्त होती है। इस समय के इतिहास की जानकारी लिखित रूप में प्राप्त नहीं हुई है। प्रागैतिहासिक काल को ‘प्रस्तर युग’ भी कहते हैं।

उत्तराखंड में प्रागेतिहासिक काल के साक्ष्य

पाषाणयुगीन उपकरण 

पाषाणयुगीन उपकरण वे उपकरण थे जिनका उपयोग मानव ने अपने विकास के विभिन्न चरणों में किया जैसे हस्त कुठार (Hand Axe), क्षुर (Choppers), खुरचनी (Scrapers), छेनी, आदि।
Stone Age Tools
उत्तराखंड में पाषाणयुगीन उपकरण अलकनन्दा नदी घाटी (डांग, स्वीत), कालसी नदी घाटी, रामगंगा घाटी आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए जिनसे इस बात की पुष्टि होती है कि पाषाणयुगीन मानव उत्तराखंड में भी निवास करते थे।

लेख व गुहा चित्र

उत्तराखंड के प्रमुख जिलों अल्मोड़ा, चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ आदि में लेख व गुहा चित्र मिले है। 

अल्मोड़ा (Almora)

अल्मोड़ा जनपद के निम्नलिखित स्थानों से हमें प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी मिलती हैं – 

लाखू उडुयार (लाखू गुफा)

  • स्थान – अल्मोड़ा (सुयाल नदी के तट पर बसे दलबैंड, बाड़ेछीना गाँव में।)
  • खोज – 1968 ई०
  • खोजकर्ता – श्री यशवंत सिंह कठौर और एम.पी. जोशी 
  • उत्तराखंड में प्रागैतिहासिक शैलाश्रय चित्रों की पहली खोज थी।
  • लखुउडियार का हिन्दी में अर्थ हैं ‘लाखों गुफायें’ अर्थात इस जगह के पास कई अन्य गुफायें भी हैं।
  • विशेषताएं –
    • मानव आकृतियों का अकेला व समूह में नृत्य करते हुए।
    • विभिन्न पशु पक्षियों का चित्रण किया गया है।
    • चित्रों को रंगों से सजाया गया है।
    • इन शैलचित्रों में भीमबेटका-शैलचित्र के समान समरूपता देखी गयी है।

ल्वेथाप गाँव 

  • स्थान – अल्मोड़ा जिले में
  • विशेषताएं
    • शैल-चित्रों में मानव को हाथो में हाथ डालकर नृत्य करते तथा शिकार करते दर्शाया गया हैं।
    • यहाँ से लाल रंग से निर्मित चित्र प्राप्त हुए है।

पेटशाला

  • स्थान – अल्मोड़ा जिले में (पेटशाला व पुनाकोट गाँव के बीच स्थित कफ्फरकोट में)
  • खोज – 1989 ई०
  • खोजकर्ता – श्री यशोधर मठपाल  
  • विशेषताएं –
    • शैल-चित्रों में नृत्य करते हुए मानवों की आकृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
    • मानव आकृतियां रंग से रंगे है।

फलसीमा

  • स्थान – अल्मोड़ा के फलसीमा में
  • विशेषताएं –
    • मानव आकृतियों में योग व नृत्य करते हुए दिखाया गया हैं।

कसार देवी मंदिर 

  • स्थान – अल्मोड़ा से 8 किलोमीटर दूर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर
  • विशेषताएं –
    • इस मंदिर से 14 मृतकों का सुंदर चित्रण प्राप्त हुआ है।

चमोली (Chamoli)

चमोली जनपद के निम्नलिखित स्थानों से हमें प्रागैतिहासिक काल के बारे में जानकारी मिलती हैं – 

गवारख्या गुफा

  • स्थान – चमोली जनपद में (अलकनंदा नदी के किनारे डुग्री गाँव के पास स्थित।)
  • खोजकर्ता – श्री राकेश भट्ट, इसका अध्ययन डॉ. यशोधर मठपाल ने किया। 
  • विशेषताएं –
    • इस उड्यार में मानव, भेड़, बारहसिंगा आदि के रंगीन चित्र मिले हैं।
    • यहाँ प्राप्त शैल-चित्र लाखु गुफा के चित्रों (मानव, भेड़, बारहसिंगा, लोमड़ी) से अधिक चटकदार है।
    • डॉ. यशोधर मठपाल के अनुसार इन शिलाश्रयों में लगभग 41 आकृतियाँ है, जिनमें  30 मानवों की, 8 पशुओं की तथा 3 पुरुषों की है।
    • चित्रकला की दृष्टि से उत्तराखंड की सबसे सुंदर आकृतियां मानी जाती है।
    • चित्रों की मुख्य विशेषता मनुष्यों द्वारा पशुओं को हाँकते हुए और घेरते हुए दर्शाया गया है।

किमनी गाँव 

  • स्थान – चमोली जनपद के थराली विकासखंड में
  • विशेषताएं –
    • हथियार व पशुओं के शैल चित्र प्राप्त हुए हैं ।
    • हल्के सफेद रंग का प्रयोग किया गया है।

मलारी गाँव

  • स्थान – तिब्बत से सटा मलारी गांव चमोली में। 
  • खोजकर्ता – 2002 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा अध्ययन।
  • विशेषताएं –
    • हजारों वर्ष पुराने नर कंकाल मिट्टी के बर्तन जानवरों के अंग प्राप्त हुए।
    • 2 किलोग्राम का एक सोने का मुखावरण (Gold Mask) प्राप्त हुआ।
    • नर कंकाल और मिट्टी के बर्तन लगभग 2000 ई०पू० से लेकर 6 वीं शताब्दी ई०पू० तक के हो सकते है।
    • डॉ. शिव प्रसाद डबराल द्वारा गढ़वाल हिमालय के इस क्षेत्र में शवाधान खोजे गए है।
    • यहाँ से प्राप्त बर्तन पाकिस्तान की स्वात घाटी के शिल्प के समान है।
मलारी गांव में गढ़वाल विश्विद्यालय के खोजकर्ताओं ने दो बार सर्वेक्षण किया – 

  • गढ़वाल विश्विद्यालय के खोजकर्ताओं को मानव अस्थियों के साथ लोहित, काले एवं धूसर रंग के चित्रित मृदभांड प्राप्त हुए।
  • प्रथम सर्वेक्षण 1983 में आखेट के लिए प्रयुक्त लोह उपकरणों के साथ एक पशु का संपूर्ण कंकाल मिला जिसकी पहचान हिमालय जुबू से की गई व साथ ही कुत्ते भेड़ व बकरी की अस्थियां प्राप्त हुई।
  • द्वितीय सर्वेक्षण (2001-02) में नर कंकाल के साथ 5.2 किलो का स्वर्ण मुखौटा (मुखावरण), कांस्य कटोरा व मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए।

उत्तरकाशी (Uttarkashi)

हुडली

  • स्थान – उत्तरकाशी में
  • विशेषताएं –
    • यहां नीले रंग के शैल चित्र प्राप्त हुए।

पिथौरागढ़ (Pithoragarh)

बनकोट

  • स्थान – पिथौरागढ़ के बनकोट क्षेत्र से
  • विशेषताएं –
    • 8 ताम्र मानव आकृतियां मिली हैं।

चंपावत (Champawat) 

देवीधुरा की समाधियाँ 

  • स्थान – चंपावत जिले में
  • खोज – 1856 में हेनवुड द्वारा
  • विशेषता
    • बुर्जहोम कश्मीर के समान समाधियाँ।

 

 

Read Also :
Uttarakhand Study Material in Hindi Language (हिंदी भाषा में)  Click Here
Uttarakhand Study Material in English Language
Click Here 
Uttarakhand Study Material One Liner in Hindi Language
Click Here
Uttarakhand UKPSC Previous Year Exam Paper  Click Here
Uttarakhand UKSSSC Previous Year Exam Paper  Click Here

उत्तराखण्ड की मूर्तिकला (Sculpture of Uttarakhand)

उत्तराखण्ड की मूर्तिकला (Sculpture of Uttarakhand)

उत्तराखण्ड में अधिकांश मूर्तियाँ स्थापत्य कृतियों के रूप में मिलती हैं। इनका निर्माण प्रायः मन्दिरों की प्राचीरों, गवाक्षों, आधार पीठिकाओं, छतों, द्वार स्तम्भों तथा शिलापट्टिकाओं पर हुआ है। उत्तराखण्ड में विभिन्न धर्मों से सम्बन्धित अनेक मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।

शैव धर्म से सम्बन्धित मूर्तियाँ 

  • लकुलीश की मूर्तियाँ – जागेश्वर के लकुलीश मन्दिर में शिव की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, इनमें शिव का ‘त्रिरूप’ उल्लेखनीय है। जिनमें मध्य मुख जटाओं से मण्डित है तथा कानों से लटकते आभूषण कारुणिक आभा को दर्शाते हैं। बायाँ मुख परोपकारिता का सूचक है तथा दायाँ मुख सृष्टि के संहारकर्ता का रौद्र रूप प्रतीत होता है। 
  • नृत्य की मुद्रा में शिव – शिव का यह रूप भारत में सदैव से प्रधान रहा है। उत्तराखण्ड के अधिकांश मन्दिरों में शिव के इसी रूप को उभारा गया है। इस सन्दर्भ में जागेश्वर के नटराज मन्दिर तथा गोपेश्वर मन्दिर में प्राप्त नृत्यधारी मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। 
  • वज्रासन मुद्रा – केदारनाथ मन्दिर की द्वारपट्टिका पर शिव की वज्रासन मुद्रा उत्कीर्ण है। शिव का वीणाधर स्वरूप, नाग, डमरू तथा अमरफल से मण्डित है। इसमें द्वारपट्टिका का बहुत-सा भाग खण्डित हो चुका है। 
  • बैजनाथ की मूर्ति – इस मूर्ति के चार हाथ हैं, जो विभिन्न मुद्राओं में दिखाई देते हैं। बाईं जाँघ पर पार्वती जी विराजमान हैं, जिन्होंने माला, हार एवं करधनी इत्यादि आभूषण धारण किए हुए हैं। बैजनाथ का प्राचीन नाम ब्रह्मनाथ है। 
  • शिव की संहारक मूर्ति – लाखामण्डल से शिव की संहारक मूर्ति प्राप्त हुई है। यह मूर्ति धनुषाकार मुद्रा में आठ भुजाओं से युक्त है। इस मूर्ति को शिव के त्रिपुरान्तक रूप एवं अपस्मार रूप से जोड़ा जाता है। शैली और सज्जा की दृष्टि से यह मूर्ति 8वीं शताब्दी की मानी जाती है। 
  • शिव-पार्वती की एक संयुक्त मूर्ति – यह मूर्ति स्थापित है। इसमें शिव ललितासन में पार्वती की ओर उन्मुख हैं। 
  • बद्रीनाथ की मूर्ति – इस मूर्ति के अधिकांश लक्षण कालीमठ की प्रतिमा से मिलते हैं। इस मूर्ति की दस भुजाएँ तथा तीन मुख हैं, जो अब तक प्राप्त शैव मूर्तियों में सबसे विशिष्ट लक्षण हैं। इस मूर्ति के साथ गरुड़ प्रतिमा पर एक 10वीं शताब्दी का अभिलेख उत्कीर्ण है, जिसके आधार पर इस प्रतिमा को 10वीं शताब्दी का स्वीकार किया जा सकता है। 
  • नृत्य करते गणपति की मूर्ति – जोशीमठ में गणेश की केवल एक नृत्यधारी मूर्ति मिलती है, जो शैली एवं मुद्रा की दृष्टि से उत्तराखण्ड की विशिष्ट कृति है। इस मूर्ति में गणेश देवता नृत्य मुद्रा में आठ भुजाओं से युक्त हैं। 
  • लाखामण्डल की मूर्ति  – यह गणपति की एक विशिष्ट मूर्ति है। मूर्ति के चार हाथ एवं छः सिर हैं, जो क्रमशः दो पंक्तियों में तीन-तीन की संख्या में स्थापित हैं। इसमें गणपति एक मोर की पीठ पर सवार हैं तथा दोनों ओर दो मोर हैं, जो देवता की ओर निहार रहे हैं। इस मूर्ति पर दक्षिण कला का प्रभाव दिखाई पड़ता है। 

वैष्णव धर्म से सम्बन्धित मूर्तियाँ 

  • शैव धर्म के पश्चात् उत्तराखण्ड का दूसरा प्रमुख धर्म वैष्णव धर्म है। यहाँ केदार की भाँति पंचबद्री की कल्पना तथा विष्णु के विभिन्न जन्मों से सम्बन्धित मूर्तियाँ मिलती हैं। वैष्णव धर्म से सम्बन्धित निम्नलिखित मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं – 
  • विष्णु की देवलगढ़ की खड़ी मूर्ति –  इस मूर्ति में साज-सज्जा पर विशेष बल दिया गया है, जिससे शरीर के खाली भागों को सुगमता से देखना कठिन है। 
  • वामन मूर्ति – विष्णु के 5वें अवतार के प्रतीक वामन की प्रतिमा काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) में मिली है, जो रेतीले पत्थर से निर्मित है। 
  • शेषशयन मूर्ति – विष्णु के इस रूप की अधिकांश मूर्तियाँ उत्तराखण्ड के मन्दिरों की प्राचीरों, पट्टिकाओं, छतों तथा द्वारों पर उत्कीर्ण मिलती हैं। बैजनाथ तथा द्वाराहाट (अल्मोड़ा) की स्वतन्त्र मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। इन दोनों मूर्तियों में देवता शेषनाग की पीठ पर विश्राम अवस्था में विराजमान है। 

ब्रह्मा की मूर्तियाँ 

  • ब्रह्मा देवता की सर्वप्रथम मूर्ति द्वाराहाट (अल्मोड़ा) में रत्नदेव के छोटे मन्दिर की द्वारशीर्ष पट्टिका पर उत्कीर्ण मिलती है। देवता की चार भुजाएँ हैं और वह कमलासन पर आसीन हैं। 
  • इसकी दूसरी मूर्ति बैजनाथ संग्रहालय से प्राप्त हुई है। 

सूर्य तथा नवग्रहों की मूर्तियाँ 

सूर्य पूजा से सम्बन्धित उत्तराखण्ड में जितनी मूर्तियाँ मिलती हैं, उनमें जागेश्वर, द्वाराहाट तथा बैजनाथ की सूर्य प्रतिमाएँ उल्लेखनीय हैं। 

  • जागेश्वर की सूर्य मूर्ति – यह मूर्ति तीन फीट ऊँची है तथा काले पत्थर से निर्मित मण्डित रथ में खड़े हैं। मध्य के अश्व पर अरुण आसीन है। 
  • द्वाराहाट की सूर्य मूर्ति – इस मूर्ति में देवता समभंग मुद्रा में खड़े हैं।

देवियों की मूर्तियाँ 

  • मेखण्डा की पार्वती मूर्ति  – पार्वती को उमा या गौरी नामों से भी पुकारा गया है। उत्तराखण्ड में इनकी अनेक मूर्तियाँ मिलती हैं। मेखण्डा से प्राप्त प्रतिमा में देवी अंजलि हस्त मुद्रा में आसीन हैं। यह कला की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण मूर्ति है। 
  • लाखामण्डल की गौरी प्रतिमा  – इस मूर्ति में देवी को तपस्या करते हुए दिखाया गया है। देवी चार लपटों के मध्य खड़ी हैं। शैली की दृष्टि से यह मूर्ति 8वीं-9वीं शताब्दी की प्रतीत होती है। 
  • दुर्गा की मूर्तियाँ – बैजनाथ संग्रहालय से प्राप्त दुर्गा खड़ी मूर्ति तथा जागेश्वर एवं कालीमठ की सिंहवाहिनी प्रतिमाएँ विशिष्ट हैं। 
  • महिषासुर मर्दिनी  – शक्ति रम्भा देवी का देवी के इस रूप की प्रथम मूर्ति चम्बा से मिली है। 
  • गजलक्ष्मी मूर्ति – राज्य में द्वाराहाट (अल्मोड़ा) से प्राप्त हुई है। 

 

Read Also :

उत्तराखण्ड में चित्रकला (Painting in Uttarakhand)

उत्तराखण्ड में चित्रकला (Painting in Uttarakhand)

उत्तराखण्ड राज्य (Uttarakhand State) में चित्रकला धार्मिक पर्व व तीज-त्योहारों में और विविध संस्कारों में देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्त पूजा, अनुष्ठान आदि में भी इसके कई रूप देखने को मिलते हैं। राज्य में चित्रकला कालक्रम को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है 

प्राचीनकालीन चित्रकला (Ancient Painting)

उत्तराखण्ड राज्य में ग्वारख्या, लाखु, ल्वेथाप, किमनी गाँव, हुड़ली, पेटशाल, फलसीमा आदि प्रागैतिहासिक गुफाओं में चित्रकला के सबसे प्राचीनतम (शैलचित्र) नमूने के रूप में मिलते हैं।

  • ग्वारख्या गुफा शैल चित्र  – चमोली स्थित इन गुफा शैलों पर पशुओं का चित्रांकन किया गया है। यह लाखु गुफा शैल चित्र से अधिक आकर्षक और चटकदार हैं। 
  • लाखु गुफा शैल चित्र – अल्मोड़ा के लाखु गुफा शैल चित्र में मानव को अकेले और समूह में नृत्य करते हुए तथा पशुओं को भी चित्रित किया गया है। इन चित्रों को रंगों से सुसज्जित किया गया है। 
  • ल्वेथाप शैल – चित्र अल्मोड़ा स्थित इस शैल चित्र में मानव को शिकार करते हुए प्रदर्शित किया गया है। इसमें एक-दूसरे के हाथ में हाथ डालकर मानव की नृत्य मुद्राओं को दिखाया गया है। 
  • किमनी गाँव शैल – चित्र चमोली स्थित किमनी गाँव के शैल चित्र में हथियार एवं पशुओं को चित्रित किया गया है। इन चित्रों का रंग सफेद है। 

मध्य एवं आधुनिककालीन चित्रकला (Middle and Modern Painting)

विद्वानों के अनुसार गढ़वाल में चित्रकला का आरम्भ 16वीं शताब्दी मध्य में आरम्भ हुआ। यह काल महाराजा बलभद्र शाह (1473-1498 ई.) का था। 

  • महाराजा बलभद्र शाह ने काशी के कलाकारों से अपनी राजधानी श्रीनगर (गढ़वाल) में एक राजमहल का निर्माण करवाया था। उनके समय में राजप्रासाद में एक चित्रशाला भी निर्मित की गई थी। 
  • महाराजा फतेहशाह द्वारा चित्रकला का पोषण किया गया, साथ ही साहित्यकारों को भी प्रश्रय भी दिया गया। 
  • गढ़वाल नरेश पृथ्वीपति के शासनकाल (1658 ई.) में मुगल शाहजादा सुलेमान शिकोह के दो चित्रकार तुवर श्यामदास और हरदास गढ़वाल में बस गए तथा हरदास के वंशजों ने गढ़वाल शैली के विकास के लिए कार्य किया। 
  • 16वीं से 19वीं शताब्दी के मध्य जम्मू से लेकर गढ़वाल तक पहाड़ी चित्रशैली प्रचलित थी। ‘गढ़वाली चित्रशैली’ एक प्रकार से पहाड़ी चित्रशैली की ही एक मुख्य धारा है। 
  • हरदास के पुत्र हीरालाल को गढ़वाल शैली का सुत्रपात कर्ता तथा मोलाराम तोमर (1743-1833) को सबसे महान् चित्रकार माना जाता है। 

गढ़वाली चित्रशैली की प्रमुख कृतियाँ (Major Works of Garhwali Painting)

नाम वर्ष  कृतियाँ 
डॉ. कुमार स्वामी  1916  राजपूत पेण्टिंग्स
(ऑक्सफोर्ड) 
बैरिस्टर मुकुन्दीलाल 1921  सम नोट्स ऑन मोलाराम
(रूपम कलकत्ता) 
अजीत घोष  1929  द स्कूल ऑफ राजपूत पेण्टिंग्स 
ज. सी. फ्रेंच  1931  हिमालयन आर्ट (प्रकाशन लन्दन से) 
वी. आर्चर  1954  गढ़वाल पेण्टिंग (प्रकाशन लन्दन से) 
किशोरीलाल वैद्य  1969  पहाड़ी चित्रकला 
बैरिस्टर मुकुन्दीलाल  1973  गढ़वाल पेण्टिंग्स
Read Also :

उत्तराखण्ड के वाद्य यन्त्र (Musical Instruments of Uttarakhand)

उत्तराखण्ड के प्रमुख वाद्य यन्त्र
(Major Musical Instruments of Uttarakhand)

ढोल 

  • यह साल की लकड़ी और ताँबे का बना होता है। इसके बाईं ओर बकरी की तथा दाईं ओर भैंस या बारहसिंहा की खाल चढ़ी होती है। 

दमाऊँ/दभामा

  • यह ताँबे का नौ इंच गहरे कटोरे की भाँति बना होता है तथा इस पर मोटा चमड़ा चढ़ा होता है। यह चन्द्र ढोल के साथ बजाया जाता है। 

मशकबीन

  • यह कपड़े का थैलीनुमा वाद्य यन्त्र है, जिसमें 5 बाँसुरी जैसे यन्त्र लगे होते हैं। इसमें एक नली हवा फूंकने के लिए होती है।

हुड़की

  • यह एक फुट लम्बा वाद्य यन्त्र है जिसकी दोनों पुड़ियों को बकरी की खाल से बनाया जाता है। यह दो प्रकार की होती है, छोटी हुड़की को साइत्या कहते हैं तथा बड़ी हुड़की को हुडुक कहते हैं। 

मोछंग

  • यह एक छोटा वाद्य यन्त्र है, जो लोहे की पतली शिराओं से बना होता है। यह मुख्यतः पशुचारक वनों में बजाते हैं। यह होंठों पर स्थिर कर एक अंगुली से बजाया जाता है। 

रणसिंघा

  • यह ताँबे का बना पूँक वाद्य यन्त्र है। पूर्व में यह युद्ध के समय बजाया। जाता था। वर्तमान में इसका प्रयोग दमाऊँ के साथ देवताओं को नृत्य करवाने में किया जाता है। 

अल्गोजा

  • यह बाँस या रिंगाल की बनी बाँसुरी होती है। इसे प्रायः खुदेड़ और झुमैला लोक गीतों के साथ बजाया जाता है। 

बिणाई

  • यह वाद्य यन्त्र लोहे का बना होता है। इसे दोनों सिरों को दाँतों के बीच में दबाकर बजाया जाता है।

 

Read Also :

UKSSSC Assistant Accountant Exam 19 May 2019 (Answer Key) 

उत्‍तराखंड सबऑर्डिनेट सर्विस सेलेक्‍शन कमीशन (UKSSSC – Uttarakhand Public Service Commission) द्वारा समूह ‘ग’ (Group ‘C’) की भर्ती परीक्षा दिनांक 19 मई, 2019 को आयोजित कि गई। यह परीक्षा  (81.1) सहायक लेखाकार (Assistant Accountant) के पद हेतु लिखित परीक्षा द्वितीय पाली (12:00 PM – 02:00 PM) में संपन्न हुई । इस परीक्षा के प्रश्नपत्र उत्तर कुंजी (Paper With Answer Key) सहित यहाँ पर उपलब्ध है – 

पदनाम (Post Name) — सहायक लेखाकार (Assistant Accountant)
पोस्ट 
कोड (Post Code) 81.1
परीक्षा आयोजक (Organizer) — UKSSSC (Uttarakhand Subordinate Service Selection Commission)
परीक्षा तिथि (Exam Date) 19 May, 2019 (Second Shift)

UKSSSC Assistant Accountant Exam Paper 2019 (Answer Key) 

 

1. यदि चालू अनुपात 2.5 है तथा ६ है तथा कार्यशील पूँजी ₹ 600,000 हैं। तो चालू सम्पत्ति होगी
(A) ₹ 3,00,000
(B) ₹ 5,00,000
(C) ₹ 4,00,000
(D) ₹ 1,00,000

Show Answer/Hide

Answer – (D)

2. अधिलाभ का अर्थ है :
(A) कुल लाभ / वर्षों की संख्या
(B) औसत लाभ – सामान्य लाभ
(C) भारित लाभ / भारों की संख्या
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (B)

3. A और B 3 : 2 के अनुपात में लाभ-हानि विभाजित करते हैं। वे 1/4 भाग के लिये C को प्रवेश देते हैं। नया लाभ विभाजन अनुपात होगा :
(A) 3: 2:1
(B) 6: 4: 3
(C) 9: 5: 6
(D) 9: 6:5

Show Answer/Hide

Answer – (D)

4. गार्नर बनाम मरें का विवाद हुआ था :
(A) भारत में
(B) इंग्लैण्ड में
(C) नेपाल में
(D) चीन में

Show Answer/Hide

Answer – (B)

5. ऋण-पत्रों के शोधन पर दिये जाने वाला प्रीमियम है :
(A) व्यक्तिगत खाता
(B) वास्तविक खाता
(C) नाममात्र खाता
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (A)

6. एक साझेदार के दिवालिया होने पर उसकी पूँजी खाते की कमी को गार्नर बनाम मरें के निर्णय के अनुसार शोधक्षम्य साझेदार वहन करते हैं :
(A) बराबर अनुपात में
(B) लाभ अनुपात में
(C) पूँजी अनुपात में
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (C)

7. पूँजीगत व्यय से प्राप्त होता है :
(A) अल्पकालीन लाभ
(B) दीर्घकालीन लाभ
(C) अति अल्पकालीन लाभ
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (B)

8. एक कम्पनी द्वारा निर्गमित 10000 अंशों हेतु 14000 आवेदन प्राप्त हुए मि0 ‘X’ को आनुपातिक आधार पर 300 अंश प्राप्त हुए। उन्होंने कितने अंशो हेतु आवेदन किया होगा ?
(A) 302 अंश
(B) 213 अंश
(C) 300 अंश
(D) 420 अंश

Show Answer/Hide

Answer – (D)

9. इनवेस्टीगेशन प्रारम्भ होता है, जब :
(A) पुस्तपालन समाप्त होता है।
(B) लेखांकन समाप्त होता है।
(C) अंकेक्षण समाप्त होता है।
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

Show Answer/Hide

Answer – (C)

10. हरण किये गये अंशों के पुनः निर्गमन के पश्चात अंश हरण खाते के शेष को हस्तांतरित किया जाता है :
(A) लाभ-हानि खाते में
(B) पूँजी संचय खाते में
(C) सामान्य संचय खाते में
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (B)

11. अस्पतालों में लागत लेखांकन की कौन-सी विधि प्रयुक्त होती है ?
(A) परिचालन लेखांकन
(B) इकाई लेखांकन
(C) उपकार्य लेखांकन
(D) समूह लेखांकन

Show Answer/Hide

Answer – (A)

12. रोकड़ प्रवाह विवरण आधारित होता है :
(A) लेखांकन के उपार्जन के आधार पर
(B) लेखांकन के रोकड़ के आधार पर
(C) दोनों (A) एवं (B)
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (B)

13. न्यूनतम मजदूरी का आश्वासन रहता है :
(A) रोवन प्रब्याजि योजना में
(B) इमरसन कार्यदक्षता प्रब्याजि योजना में
(C) गैण्ट कार्य प्रब्याजि योजना में
(D) हासे प्रब्याजि योजना में

Show Answer/Hide

Answer – (D)

14. यदि आरम्भिक पूँजी ₹ 60000, आहरण ₹ 5000, सत्र की अतिरिक्त पूँजी ₹ 10000, अन्तिम पूँजी ₹90000 है, तो वर्ष के दौरान अर्जित लाभ होगा :
(A) ₹ 40,000
(B) ₹ 50,000
(C) ₹ 25,000
(D) ₹ 35,000

Show Answer/Hide

Answer – (C)

15. यदि अप्राप्य व संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधान में कमी कर दी जाए, तो निम्न परिणाम होगा :
(A) शुद्ध लाभ में वृद्धि
(B) शुद्ध लाभ में कमी
(C) सकल लाभ में वृद्धि
(D) सकल लाभ में कमी

Show Answer/Hide

Answer – (A)

16. जब माँग का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होता है। इस बजट का निर्माण करते हैं :
(A) उत्पादन
(B) विक्रय
(C) वित्तीय
(D) लोचदार

Show Answer/Hide

Answer – (D)

17. ‘दी इंस्टीयूट ऑफ कॉस्ट एण्ड वर्क्स एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया’ का प्रधान कार्यालय स्थित है ?
(A) कोलकाता में
(B) मुम्बई में
(C) दिल्ली में
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (A)

18. निरन्तर स्कन्ध प्रणाली की सफलता निम्नलिखित में से किस पर निर्भर करती है ?
(A) सामग्रियों के लिए नियमित अंतरालों पर आर्डर भेजना।
(B) सामग्रियों के निर्गमन पर नियन्त्रण रखना
(C) प्रत्येक लेन-देन के पश्चात् सामग्रियों की प्राप्ति तथा निर्गमन के रिकार्ड रखना।
(D) भण्डारी द्वारा सामग्रियों की प्राप्ति को ‘विन कार्डों पर रिकार्ड रखना

Show Answer/Hide

Answer – (C)

19. आयकर अधिनियम, 1961 की किस धारा के अंतर्गत कृषि आय को आयकर से छूट प्राप्त है ?
(A) 2(1A)
(B) 10(1)
(C) 10(2)
(D) 10(4)

Show Answer/Hide

Answer – (B)

20. अन्तिम रहतिया का मूल्यांकन किया जाना चाहिए :
(A) लागत मूल्य पर
(B) बाजार मूल्य पर
(C) लागत मूल्य या बाजार मूल्य दोनों में से जो कम हो
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (C)

UKSSSC Lab Assistant Exam Paper 19 May 2019 (Answer Key)

उत्‍तराखंड सबऑर्डिनेट सर्विस सेलेक्‍शन कमीशन (UKSSSC – Uttarakhand Public Service Commission) द्वारा समूह ‘ग’ (Group ‘C’) की भर्ती परीक्षा 19 मई 2019 को आयोजन की गई । इस परीक्षा में यह प्रयोगशाला सहायक (Lab Assistant) का प्रश्नपत्र उपलब्ध कराया गया है –

Exam – UKSSSC – प्रयोगशाला सहायक (Lab Assistant)
Post Code – 75.1
Exam Date – 19 May 2019 (03.00 PM to 05.00 PM)

UKSSSC Lab Assistant Exam Paper 19 May 2019 

1. निम्न में से किस कोशिका में केन्द्धक नहीं होता है?
(A) न्यूट्रोफिल्स
(B) ओसोनोफिल्स
(C) चपीसो
(D) मानोइट

Show Answer/Hide

Answer – (C)

2. निम्नलिखित में से किसके द्वारा उच्चतम स्तर के बहुपता प्रदर्शित की जाती है ?
(A) स्टोलोनीफेरा
(B) एलसाइनोसीया
(C) ऐक्टीनीरिया
(D) साईंफोनोफोरा

Show Answer/Hide

Answer – (D)

3. सही सम्बन्ध है।
(A) Kp =KC(RT)Δn
(B) Kp = KC(RT)Δn+1
(C) Kp = KCRΔnTΔn-1
(D) Kp = KCRΔn-1TΔn

Show Answer/Hide

Answer – (A)

4. दो असमान्तर सदिशों A तथा B का परिमाण कम [A] तथा |B| है। तो निम्न में से कौन सा सदिश सम्बध सदैव लागू होगा ?
(A)
(B)

(C)
(D)

Show Answer/Hide

Answer – (D)

5. निम्नलिखित में से कौन-सा एक डूबने से मृत्यु मामले में सहायक हैं ?
(A) पराग

(B) कीड़े
(C) डायटम
(D) दाँत

Show Answer/Hide

Answer – (C)

6. बीरबल साहनी इस्टीट्यूट ऑफ पैलिओबॉटनी
(A) हैदराबाद में
(B) कोलकाता में
(C) नई दिल्ली में
(D) लखनऊ में

Show Answer/Hide

Answer – (D)

7. पॉलिटीन गुणसूत्र पाये जाते हैं :
(A) बिल्ली में
(B) मनुष्य में
(C) ड्रॉसोफिला में
(D) आम में

Show Answer/Hide

Answer – (C)

8. इडिगो डाई है
(A) साईट हाई
(E) एनोइ डाई
(C) विसाजत हाई
(D) बाट हाई

Show Answer/Hide

Answer – (D)

9. प्रकाश के अपवर्तन के कारण निम्न में से भतिक राशि नहीं बदलती है।
(A) तमाध्य
(B) आवृत्ति
(C) प्रकाश का वेग
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (B)

10. फास्जीन का रासायनिक नाम है
(A) कार्बन टेट्राक्लोराइड
(B) कार्बोनिल सल्फाइड
(C) कार्बोनिल क्लोराइड
(D) कॉपर हाइपोक्लोराइट

Show Answer/Hide

Answer – (C)

11. जब बीजाधानी एक कोशिका से बनती हैं कहलाती हैं।
(A) यूस्पोरजिएट
(B) हेटरोस्योरी
(C) होमोस्पोरी
(D) लेप्टोस्पोरजिएट

Show Answer/Hide

Answer – (D)

12. विघटनकारी चयन परिणाम देता है
(A) एलोपटक प्रजातिकण
(B) सम्पादक प्रजातिकरण
(C) दोनों (A) एवं (B)
(D) उपयुक्त में से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (B)

13. निम्न में से किस समूह की उपस्थिति से बेन्जीन वलय, इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन के प्रति सक्रिय हो जाता है ?
(A) – CN
(B) – CNO
(C) – OH
(D) – COOR

Show Answer/Hide

Answer – (C)

14. नाभिक के अंदर बीटा-क्षय की प्रक्रिया को दिखाया जा सकता है
(A)

(B)
(C)

(D)

Show Answer/Hide

Answer – (A)

15. निम्न में से सिल्वर नाइट्रेट जाँच किसके लिए होती है
(A) साइनाइड जहर की
(B) ऐल्यूमीनियम फास्फाइड जहर की
(C) पाइथ्रायड जहर की
(D) उपर्युक्त सभी

Show Answer/Hide

Answer – (B)

16. जायागोपरिक अवस्था मिलती है
(A) लिजिएसी कुल में
(B) सोलेनेसी कुल में
(C) फेबेसी कुल में
(D) कुकरबिटेसी कुल में

Show Answer/Hide

Answer – (D)

17. हॉट-पोट जव विविधता का सिवात दिया गया था
(A) नारमन मेयर द्वारा
(B) फ्रिश द्वारा
(C) रोजन द्वारा
(D) जेफ्री द्वारा

Show Answer/Hide

Answer – (A)

18. दुर्बल अम्ल और इसके सॉल्ट के लिए pH का मान है।
(A)
(B)
(C)
(D)

Show Answer/Hide

Answer – (B)

19. एक ‘m’ द्रव्यमान का कण ‘r’ त्रिज्या के क्षैतिज वृत्त में K/r2 के अभिकेंद्र बल के अंतर्गत गति कर रहा है जहाँ K एक नियतांक है। इस कण की कुल ऊर्जा होगी
(A)
(B)
(C)
(D)

Show Answer/Hide

Answer – (C)

20. धारा 293 सी0आर0पी0सी0 के तहत किसे सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञ नहीं माना जाता है ?
(A) मुख्य चिकित्सा अधिकारी
(B) विस्फोटक के मुख्य निरीक्षक
(C) निदेशक, हाफकिन इंस्टीटयूट, बॉम्बे
(D) शासकीय सारोलॉजिस्ट

Show Answer/Hide

Answer – (A)

UKSSSC सहायक भण्डारपाल (Assistant Store-Keeper) Exam Paper 2017 (Answer Key)

उत्‍तराखंड सबऑर्डिनेट सर्विस सेलेक्‍शन कमीशन (UKSSSC – Uttarakhand Public Service Commission) द्वारा समूह ‘ग’ (Group ‘C’) की भर्ती परीक्षा दिनांक 09 जनवरी, 2017 को आयोजित कि गई। यह परीक्षा  (67) सहायक भंडारपाल (Assistant Store-Keeper) के पद हेतु लिखित परीक्षा द्वितीय पाली (2:00 PM – 04:00 PM) में संपन्न हुई । इस परीक्षा के प्रश्नपत्र उत्तर कुंजी (Paper With Answer Key) सहित यहाँ पर उपलब्ध है – 

पदनाम (Post Name) — सहायक भंडारपाल (Assistant Store-Keeper)
पोस्ट 
कोड (Post Code) 67
परीक्षा आयोजक (Organizer) — UKSSSC (Uttarakhand Subordinate Service Selection Commission)
परीक्षा तिथि (Exam Date) 09 January, 2017 (Second Shift)

UKSSSC सहायक भंडारपाल (Assistant Store-Keeper) Exam Paper 2017 (Answer Key) 

 

1. हिन्दी वर्णमाला में ‘अयोगवाह’ वर्ण है –
(A) अ, आ
(B) इ, ई
(C) उ, ऊ
(D) अं, अः

Show Answer/Hide

Answer – (D)

2. ‘ज्ञ’ किसके मेल से बना है ?
(A) ज् + ञ
(B) ग + य
(C) ज + यँ
(D) ग + यँ

Show Answer/Hide

Answer – (A)

3. ‘अर्द्ध विराम’ चिह्न का रूप है –
(A) !
(B) :
(C) ;
(D) :-

Show Answer/Hide

Answer – (C)

4. ‘गुरुत्व’ शब्द में कौन-सी संज्ञा है ?
(A) जातिवाचक संज्ञा
(B) भाववाचक संज्ञा
(C) व्यक्तिवाचक संज्ञा
(D) द्रव्यवाचक संज्ञा

Show Answer/Hide

Answer – (B)

5. ‘प्रेस प्रतिनिधि’ शब्द है –
(A) देशज
(B) तद्भव
(C) तत्सम
(D) संकर शब्द

Show Answer/Hide

Answer – (D)

6. देवनागरी लिपि का विकास ______ से हुआ।
(A) खरोष्ठी-लिपि
(B) ब्राह्मी-लिपि
(C) कैथी-लिपि
(D) उपर्युक्त तीनों

Show Answer/Hide

Answer – (B)

7. ‘अनुग्रह’ शब्द का विलोम है –
(A) विग्रह
(B) विकार
(C) विराग
(D) विरक्त

Show Answer/Hide

Answer – (A)

8. ‘पर्वत’ शब्द का कौन-सा शब्द पर्यायवाची नहीं है ?
(A) पहाड़
(B) नग
(C) अंबुधि
(D) भूधर

Show Answer/Hide

Answer – (C)

9. निम्नांकित में पुल्लिंग शब्द है –
(A) जड़ता
(B) बुढ़ापा
(C) घटना
(D) दया

Show Answer/Hide

Answer – (B)

10. ‘पुरुष’ शब्द में कौन सी संज्ञा है ?
(A) व्यक्तिवाचक
(B) जातिवाचक
(C) भाववाचक
(D) द्रव्यवाचक

Show Answer/Hide

Answer – (B)

11. ‘मैं घर पहुँचा कि पानी बरसने लगा और पानी इतना बरसा कि ठंड बढ़ गई।’ वाक्य है –
(A) साधारण
(B) संयुक्त
(C) मिश्र
(D) इनमें से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (B)

12. जीवन्नपि का संधि विच्छेद है –
(A) जीवन् + अपि
(B) जीव् + अन्नपि
(C) जीवन + अपि
(D) जीव + न + अपि

Show Answer/Hide

Answer – (A)

13. किस शब्द में द्विगु समास नहीं है ?
(A) चतुर्भुज
(B) पंचवटी
(C) द्विगु
(D) त्रिवेणी

Show Answer/Hide

Answer – (A)

14. उपयुक्त उत्तर दीजिए –
“ऊधौ का ना लेना, ना माधौ का देना।”
(A) झमेलों में पड़कर आनन्द लेना।
(B) सब झमेलों से अलग रहना ।
(C) झमेलों के बीच लोगों को ला खड़ा करना।
(D) ऊधौ से लेकर भी माधौ को न देना।

Show Answer/Hide

Answer – (B)

15. ‘अण्डे का शहजादा’ मुहावरे का अर्थ है –
(A) बचपन से अमीर
(B) छोटी जागीर का मालिक
(C) बुद्धिमान
(D) अनुभवहीन

Show Answer/Hide

Answer – (D)

16. निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है ?
(A) दोहा व सोरठा के प्रथम चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
(B) दोहा व सोरठा के द्वितीय चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
(C) दोहा व सोरठा के तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Show Answer/Hide

Answer – (D)

17. ‘बीभत्स रस’ का स्थायी भाव है –
(A) विस्मय
(B) निर्वेद
(C) जुगुप्सा
(D) शोक

Show Answer/Hide

Answer – (C)

18. ‘शेखर : एक जीवनी’ किस प्रकार की रचना है ?
(A) काव्य संकलन
(B) उपन्यास
(C) आत्मकथा
(D) कहानी-संग्रह

Show Answer/Hide

Answer – (B)

19. ‘तूफानों के बीच रिपोर्ताज के लेखक का नाम है –
(A) अमृतराय
(B) रांगेय राघव
(C) विष्णुकांत शास्त्री
(D) भगवत शरण

Show Answer/Hide

Answer – (B)

20. किस ध्वनि के उच्चारण में नासिका से अधिक और मुख से कम सांस बाहर निकलती है ?
(A) अनुस्वार
(B) व्यंजन
(C) स्वर
(D) अनुनासिक

Show Answer/Hide

Answer – (D)

error: Content is protected !!