Tiladi Kand

रवांई कांड अथवा तिलाडी कांड

30 मई 1930 को टिहरी रियासत (Tehri Principality) की सेना ने यमुना नदी तट पर स्थिति तिलाड़ी के मैदान में एकत्रित रवांई क्षेत्र की क्षुब्ध जनता पर गोलियों की बरसात कर दी। इस खून की होली से बरबस जलियांवाला बाग की घटना याद आती है। इसी कारण इस रक्तरंजित घटना को टिहरी रियासत के इतिहास में टिहरी का जलियांवाला काण्ड भी कहा जाता है। सम्भवतः रवांई कांड टिहरी रियासत के दमन एवं जनता के प्रतिरोध की सबसे बड़ी घटना थी।

रवांई कांड का कारण (The reason of Ravai Kand)

  • रवांई कांड के पीछे मूलतः रियासत की दमनकारी नीति का विरोध था किन्तु इसका तत्कालीन कारण राज्य द्वारा 1927-28 ई0 में जारी ‘वननीति’ के अन्र्तगत किया जा रहा सीमा निर्धारण था।
  • इस नई वन व्यवस्था ने रवांई की जनता में व्याप्त असंतोष को बढ़ावा दिया।
  • उन्होंने वन विभाग से अनुरोध किया कि नई वन नीति में ग्रामीणों को जानवरों को चराने का अधिकार मिलना चाहिए तो वन विभाग ने जवाब दिया कि अपने पशुओं को पहाड़ से नीचे लुढ़का दो। साफ है कि जनता की आवाज को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। फलतः इस क्षेत्र में ‘आजाद पंचायत’ लोकप्रिय होने लगी।

रवांई कांड या तिलाडी कांड (Ravai or Tilari Kand)

  • इस आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे नागणा के हीरा सिंह, कसरू के दयाराम एवं खमुण्ड के बैजराम और लाला राम प्रसाद साधारण कृषक ही थे।
  • नेपाल की तर्ज पर हीरा सिंह को ‘पांच सरकार’ एवं बैजराम को ‘तीन सरकार’ की उपाधि भी दी गई।
  • रवांई और जौनपुर की जनता तिलाड़ी के चन्दादोजरी नामक स्थल पर ‘आजाद पंचायत’ की सभाएँ करते थे।
  • राजा ने भूतपूर्व दीवान हरिकृष्ण रतुड़ी को समस्या के समाधान के लिए राज्य प्रतिनिधि के रूप में भेजा।
  • जनता के सुधार की मांग की और हरिकृष्ण रतुड़ी ने उन्हें सुधार का आश्वासन दिया किन्तु तत्कालीन दीवान चक्रधर जुयाल नहीं चाहते थे कि समझौता हो।
  • मई 1930 ई0 को जब एस0डी0एम0 सुरेन्द्रदत्त तथा डी0एफ0ओ0 पदमदत्त आन्दोलनकारियों को गिफ्तार कर ले जा रहे थे तो राजगढ़ी के निकट जनता ने उनका घिराव कर अपने नेताओं को छुड़ाने का प्रयास किया। जनता पर गोली चलाई गई, तीन लोग मारे गये एवं कई घायल कर दिये जबकि पदमदत्त सुरक्षित भाग निकला। इस घटना की सूचना पाते ही दीवान ने प्रतिशोध की भावना से संयुक्त प्रांत की सरकार से विद्रोहियों पर गोली चलाने की अनुमति ली।
  • 30 मई 1930 ई0 को क्षुब्ध जनता यमुना तट पर तिलाड़ी मैदान में रणनीति तय करने को एकत्रित थी।
  • दीवान चक्रधर जुयाल ने स्वयं उपस्थित होकर निहत्थी जनता पर गोली चलाने का आदेश दिया।
  • सूचना विभाग, उतर प्रदेश के अनुसार इस हत्याकाण्ड में 200 लोग मारे गये।

जिस समय रवांई का शर्मनाक हत्याकाण्ड हुआ। उस वक्त राजा नरेन्द्रशाह यूरोप की यात्रा पर थे। अधिसंख्य विद्वानों का मानना है कि यदि राजा राज्य में स्वयं उपस्थित होता तो शायद यह शर्मनाक घटनाक्रम होता ही नहीं। लेकिन हत्याकाण्ड के पश्चात् जब जनता ने लिखित शिकायत वाससराय से की, बावजूद इसके दोषियों के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई। राजा ने भी लौटने के बाद एक जाँच कमेटी नियुक्त अवश्य की किन्तु वे भी दोषियों को दण्ड नहीं दे पाये। गढ़वाली पत्र के संपादक विश्वम्भर दत्त चंदोला पर मुकदमा लड़ने की अनुमति राज्य के बाहर के वकीलों को नहीं दी गई। फलतः सबको दोषी सिद्ध कर 15 से 20 साल की कैद की सजा हुई। सम्भवतः इनमें से 15 लोग जेल में ही मरे जिनकी लाशों को यमुना में फेंक दिया गया।

 

Read Also … 

 

error: Content is protected !!