सार्क दिवस – 8 दिसम्बर
स्थापना – 8 दिसम्बर 1985
मुख्यालय – काठमांडू
सदस्य देश – अफ़्गानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका
प्रेक्षक देश – चीनी जनवादी गणराज्य, यूरोपीय संघ, ईरान, जापान, मॉरिशस, म्यान्मार, दक्षिण कोरिया, संयुक्त राज्य अमेरिका
सार्क (SAARC – South Asian Association for Regional Cooperation)
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय संगठन (SAARC – South Asian Association for Regional Cooperation) – 1980 के दशक क्षेत्रीय सहयोग के लिए सबसे महत्वपूर्ण समय साबित हुआ। 1981 में बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति जिआ-उर-रहमान ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग सम्वर्धन हेतु एक नवीन योजना प्रस्तुत की। मंत्रिस्तरीय वार्ताओं द्वारा इसे अमली जामा पहनाने के प्रयास उस समय सार्थक हुआ जब अगस्त, 1983 में सात देशों के विदेश मंत्रियों ने एक सामूहिक क्षेत्रीय सहयोग का घोषणा पत्र नई दिल्ली में स्वीकार किया। इस घोषणापत्र में दक्षिण-एशियाई क्षेत्र में आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने पर बल दिया गया।
1984 की नई दिल्ली की बैठक में दक्षिण एशियाई देशों के बीच सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विकास के साथ-साथ मैत्रीपूर्ण राजनीतिक संबंधों के विकास का आव्हान किया गया। इसके पश्चात् फरवरी 1985 की माले में स्थाई कमेटी की बैठक में आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए सार्क देशों की मंत्रिपरिषद के निर्माण पर बल दिया गया। मई 1985 की थिम्पू बैठक में सार्क देशों अपनी समस्याओं को दूर करने के लिए सार्क देशों ने एक क्षेत्रीय सहयोग संगठन को अमली जामा पहनाया। इसमें यह निश्चय किया गया कि दिसम्बर, 1985 में ही इस संगठन का सम्मेलन बुलाया जाएगा। इस तरह थिम्पू (भूटान) बैठक द्वारा SAARC की स्थापना का रास्ता साफ हो गया और ढाका घोषणापत्र के रूप में सार्क (SAARC) का जन्म हुआ। 7 दिसम्बर, 1985 को बंग्लादेश की राजधानी ढाका में सात दक्षिण एशियाई देशों – भारत, मालद्वीप, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, बांगलादेश तथा श्रीलंका ने सार्क के घोषणापत्र पर औपचारिक हस्ताक्षर किए।
13 नवम्बर 2005 को भारत के प्रयास से इस क्षेत्रीय समूह में अफ़ग़ानिस्तान को शामिल किया गया और 3 अप्रैल 2007 को आठवां सदस्य बन गया। अप्रैल 2006 में, संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने पर्यवेक्षक का दर्जा प्रदान किए जाने का औपचारिक अनुरोध किया। यूरोपीय संघ में भी पर्यवेक्षक बनने में दिलचस्पी दिखाई और जुलाई 2006 में सार्क मंत्रिपरिषद की बैठक में इस बाबत औपचारिक अनुरोध प्रस्तुत किया। 2 अगस्त 2006 को सार्क देशों के विदेश मंत्रियों ने सिद्धांत रूप में अमेरिका, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ को पर्यवेक्षक का दर्जा देने के लिए सहमत हुए। 4 मार्च 2007, ईरान ने पर्यवेक्षक का दर्जा प्रदान किए जाने अनुरोध किया। इसके बाद मॉरीशस ने संगठन में प्रवेश किया।
सार्क के उद्देश्य
सार्क के चार्टर के अनुच्छेद 1 में सार्क के उद्देश्यों को परिभाषित किया गया है-
- दक्षिण-एशिया के देशों की जनता के कल्याण को प्रोत्साहित करना तथा उनके जीवन स्तर में सुधार लाना।
- दक्षिण एशियाई देशों की सामूहिक आत्मनिर्भरता का विकास करना।
- इस क्षेत्र में आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास की गति तेज करना।
- सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक क्षेत्रों में पारस्परिक सहयोग में वृद्धि करना।
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आपसी सहयोग को मजबूत बनाना अन्य क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।
- दूसरे विकासशील देशों के साथ सहयोग को बढ़ाना।
- सदस्य देशों में आपसी विश्वास बढ़ाना तथा समस्याओं को समझने के लिए एक दूसरे का सहयोग करना।
सार्क के सिद्धान्त
सार्क के चार्ट के अनुच्छेद 2 के अंतर्गत सार्क के सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है:-
- सार्क के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग, समानता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता तथा दूसरे के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना।
- क्षेत्रीय सहयोग को द्विपक्षीय व बहुपक्षीय सहयोग का पूरक बनाना।
- क्षेत्रीय सहयोग को द्विपक्षीय व बहुपक्षीय सहयोग के उत्तरदायित्वों के अनुकूल बनाना।
सार्क का संस्थागत स्वरूप
सार्क के चार्टर के अंतर्गत सार्क के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित अभिकरणों की व्यवस्था की गई है:
- शिखर सम्मेलन- इसमें सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष आपसी समस्याओं पर विचार करने व सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष किसी निश्चित स्थान पर एकत्रित होते हैं। सार्क का पहला शिखर सम्मेलन दिसम्बर, 1985 में ढाका में हुआ था। अब तक इसके 11 शिखर सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं। सार्क का 11वां शिखर सम्मेलन जनवरी, 2002 में काठमांडू में आयोजित हुआ।
- मन्त्रिपरिषद – इसमें सदस्य देशों के विदश मन्त्री शामिल होते हैं। इसके बैठक आवश्यकतानुसार कभी भी आयोजित की जा सकती है। इसको प्रमुख कार्य संघ की नीति निर्धारित करना, सामान्य हित के मुद्दों के बारे में निर्णय करना व सहयोग के लिए नए क्षेत्र तलाश करना है।
- स्थायी समिति – इसमें सदस्य देशों के सचिव शामिल हैं। इसका कार्य सहयोग के कार्यक्रमों की मॉनिटरिंग करना तथा अध्ययन के आधार पर सहयोग के नए मित्रों की पहचान करना है। यह तकनीकी समिति के कार्यों का निरीक्षण करती है व उसके कार्यों को प्रभावी बनाने के लिए सुझाव भी देती है।
- तकनीकी समितियां- इसमें सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं। ये अपने-अपने क्षेत्र में कार्यक्रम लागू करने, समन्वय करने व उन्हें मॉनिटरिंग करने के लिए उत्तरदायी हैं। ये सहयोग के नए क्षेत्रों की सम्भावनाओं का भी पता लगाती है। इनके सभी कार्य तकनीकी आधार के हैं।
- सचिवालय- महासचिव इसका अध्यक्ष होता है। उसका कार्यकाल 2 वर्ष होता है। यह पद सदस्य देशों को बारी-बारी से प्राप्त होता रहता है। सचिवालय को 7 भागों में बांटा गया है। प्रत्येक विभाग का कार्य निदेशक की देखरेख में चलता है। सचिवालय संगठन के प्रशासनिक कार्यों का निष्पादन करता है। इसकी स्थापना 16 जनवरी, 1987 को दूसरे सार्क सम्मेलन (बंगलौर) द्वारा की गई है।
इनके अतिरिक्त सार्क की एक कार्यकारी समिति भी है। जिसकी स्थापना स्थायी समिति द्वारा की जाती है। सार्क के कार्यों के निष्पादन के लिए एक वित्तीय संस्था का भी प्रावधान किया गया है। जिसमें सभी सदस्य देश निर्धारित अंशदान के आधार पर वित्तीय सहयोग देते हैं। इसमें भारत का हिस्सा 32 प्रतिशत है।
क्षेत्रीय केंद्र
- सार्क कृषि केंद्र (SAARC Agriculture Centre) – ढाका (बांग्लादेश)
- सार्क तपेदिक केंद्र (SAARC Tuberculosis Centre) – काठमाण्डू (नेपाल)
- सार्क प्रलेख केन्द्र (SAARC Documentation Centre) – नई दिल्ली (भारत)
- सार्क मौसम विज्ञान अनुसंधान केन्द्र (SAARC Meteorological Research Centre) – ढाका (बांग्लादेश)
- सार्क मानव संसाधन विकास केन्द्र (SAARC Human Resource Development Centre) – इस्लामाबाद (पाकिस्तान)
- सार्क ऊर्जा केन्द्र (SAARC Energy Centre) – इस्लामाबाद (पाकिस्तान)
- सार्क सांस्कृतिक केन्द्र (SAARC Cultural Centre) – कैंडी (श्रीलंका) (प्रक्रियाधीन)
- सार्क सूचना केन्द्र (SAARC Information Center) – नेपाल
- सार्क कोस्टल जोन मैनेजमेन्ट सेन्टर (SAARC Coastal Zone Management Centre) – मालदीव
- सार्क डिजास्टर मैनेजमेन्ट सेन्टर (SAARC Disaster Management Centre) – भारत
- सार्क फारेस्ट्री सेन्टर, भूटान (प्रक्रियाधीन)
- दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय – नई दिल्ली
महासचिव
- अब्दुल अहसान (बांग्लादेश) 16 जनवरी 1985 – 15 अक्टूबर 1989
- कान्त किशोर भार्गव (भारत) 17 अक्टूबर 1989 – 31 दिसम्बर 1991
- इब्राहिम हुसैन ज़ाकि (मालदीव) 1 जनवरी 1992 – 31 दिसम्बर 1993
- यादव कान्त सिलवाल (नेपाल) – 1 जनवरी 1994 – 31 दिसम्बर 1995
- नईम यू॰ हुसैन (पाकिस्तान) 1 जनवरी 1996 – 31 दिसम्बर 1998
- निहाल रोड्रिगो (श्रीलंका) 1 जनवरी 1999 – 10 जनवरी 2002
- क्यू॰ ए॰ एम॰ ए॰ रहीम (बांग्लादेश) 11 जनवरी 2002 – 28 फरवरी 2005
- चेंकयाब दोरजी (भूटान) 1 मार्च 2005 – 29 फरवरी 2008
- शील कान्त शर्मा (भारत) 1 मार्च 2008 – 28 फरवरी 2011
- फातिमा धियाना सईद (मालदीव) 1 मार्च 2011 – 11 मार्च 2012
- अहमद सलीम (मालदीव) 12 मार्च 2012 – 28 फरवरी 2014
- अर्जुन बहादुर थापा (नेपाल) 1 मार्च 2014 – 28 फरवरी 2017
- अमजद हुसैन बी॰ सियाल (पाकिस्तान) 1 मार्च 2017 – वर्तमान
सार्क के शिखर सम्मेलन
पहला | दिसम्बर 1985 | बांग्लादेश (ढाका) |
द्वितीय | नवम्बर 1986 | भारत (बेंगलूरू) |
तृतीय | नवम्बर 1987 | नेपाल (काठमांडू) |
चौथा | दिसम्बर 1988 | पाकिस्तान (इस्लामाबाद) |
पाँचवा | नवम्बर 1990 | मालदीव (माले) |
छठा | दिसम्बर 1991 | श्रीलंका (कोलम्बो) |
सातवां | अप्रैल 1993 | बांग्लादेश (ढाका) |
आठवां | मई 1995 | भारत (नई दिल्ली) |
नौवां | मई 1997 | मालदीव (माले) |
दसवां | जुलाई 1998 | श्रीलंका (कोलम्बो) |
ग्यारहवां | जनवरी 2002 | नेपाल (काठमांडू) |
बारहवां | जनवरी 2004 | पाकिस्तान (इस्लामाबाद) |
तेरहवां | नवम्बर 2005 | बांग्लादेश (ढाका) |
चौदहवां | अप्रैल 2007 | भारत (नई दिल्ली) |
पन्द्रहवां | अगस्त 2008 | श्रीलंका (कोलम्बो) |
सोलहवां | 28–29 अप्रैल 2010 | भूटान (थिम्फू) |
सत्रहवां | 10–11 नवम्बर 2011 | मालदीव (अडडू) |
अठारहवां | 26–27 नवम्बर 2014 | नेपाल (काठमांडू) |
उन्नीसवां | रद्द | पाकिस्तान (इस्लामाबाद) |
सार्क की भूमिका का मूल्यांकन
जिन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए SAARC का जन्म हुआ था, उनको प्राप्त करने में यह संगठन अधिक सफल नहीं रहा है। आज समस्त विश्व क्षेत्रीय सहयोग की उपयोगिता को स्वीकारने लगा है तो SAARC को भी इस दिशा में अथक प्रयास करने की जरूरत है। आज भारत व पाकिस्तान के आपसी मतभेद दक्षिण एशिया में अशान्ति के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी हैं। अन्य SAARC देश भी सैनिक ताकतों के साथ मिलकर क्षेत्रीय सहयोग की भावना के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। यदि SAARC के सदस्य देश आपसी मतभेद भुलाकर एक सहयोगपूर्ण नीति पर चलें तो दक्षिण एशिया विश्व के सामने एक नई चुनौती पेश कर सकता है। इस क्षेत्र में आर्थिक विकास के काफी अवसर हैं जो आपसी तकनीकी व आर्थिक सहयोग के आधार पर गतिमान हो सकते हैं। भारत इस क्षेत्र की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। SAARC के अन्य देशों को भारत के साथ सकारात्मक सहयोग करना चाहिए जिससे दक्षिण एशिया में आत्मनिर्भरता के युग की शुरुआत हो सके।
यदि सार्क की भूमिका को सकारात्मक बनाना है तो आज भारत और पाकिस्तान को आपसी मतभेदों को दूर करने की सबसे प्रबल आवश्यकता है। सार्क को महाशक्तियों के हस्तक्षेप से मुक्त रखकर आपसी सहयोग के नए क्षेत्र तलाशने के साथ साथ आज सार्क को आर्थिक मंच के साथ-साथ राजनीतिक मंच बनाने की भी जरूरत है। आज सार्क देशों में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, तकनीकी सहयोग को बढ़ाने की प्रबल सम्भावनाएं हैं। सभी SAARC देशों को इस दिशा में ठोस कदम अवश्य उठाने चाहिए। अपने सांझे अनुभवों व तकनीकी सहयोग के द्वारा SAARC देश सामूहिक आत्मनिर्भरता का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन निकट भविष्य में ऐसी सम्भावना कम ही दिखाई देती है। अत: निष्कर्ष तौर पर यही कहा जा सकता है कि SAARC क्षेत्रीय सहयोग की कल्पना को जन्म देने में तो अवश्य सफल रहा है लेकिन सकारात्मक क्षेत्रवाद की उत्त्पत्ति से अभी काफी दूर है अर्थात SAARC प्रभावशाली क्षेत्रीय सहयोग संगठन नहीं है।
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