Geography in Hindi

आग्नेय शैल (Igneous Rock)

आग्नेय शैल (Igneous Rock)

“इंगनियस (Igneous)” अंग्रेजी भाषा का शब्द है। यह लैटिन भाषा के “इंग्निस” शब्द से बना है। “इंग्निस” शब्द का अर्थ अग्नि से है। इससे इन शैलों की उत्पत्ति स्पष्ट होती है अर्थात वह शैल जिनकी उत्पत्ति अग्नि से हुई है, उन्हें आग्नेय शैल कहते हैं। आग्नेय शैलें अति तप्त चट्टानी तरल पदार्थ, जिसे मैग्मा कहते हैं, के ठण्डे होकर जमने से बनती हैं।

  • भूगर्भ में मैग्मा के बनने की निश्चित गहराई की हमें जानकारी नहीं है। यह सम्भवतः विभिन्न गहराइयों पर बनता है जो 40 किलोमीटर से अधिक नहीं होती।
  • शैलों के पिघलने से आयतन में वृद्धि होती हैं, जिसके कारण भूपर्पटी टूटती है या उसमें दरारें पड़ती हैं। इन खुले छिद्रों या मुखों के सहारे ऊपर से पड़ने वाले दबाव में कमी आती है। इससे मैग्मा बाहर निकलता है। अगर ऐसा न हो तो ऊपर से पड़ने वाला अत्यधिक दाब मैग्मा को बाहर जाने नहीं देगा।
  • जब मैग्मा धरातल पर निकलता है तो उसे लावा (Lava) कहते हैं। पिघला हुआ मैग्मा, भूगर्भ में या पृथ्वी की सतह पर जब ठंडा होकर ठोस रूप धारण करता है तो आग्नेय शैलों का निर्माण होता है।
  • पृथ्वी की प्रारम्भिक भूपर्पटी आग्नेय शैलों से बनी है, अतः अन्य सभी शैलों का निर्माण आग्नेय शैलों से ही हुआ है। इसी कारण आग्नेय शैलों को जनक या मूल शैल भी कहते हैं।
  • भूगर्भ के सबसे ऊपरी 16 किलोमीटर की मोटाई में आग्नेय शैलों का भाग लगभग 95 प्रतिशत है।
  • आग्नेय शैलें सामान्यतया कठोर, भारी, विशालकाय और रबेदार होती हैं। निर्माण स्थल के आधार पर आग्नेय शैलों को दो वर्गों में बाँटा गया है। बाह्य या बहिर्भेदी (ज्वालामुखी) और आन्तरिक या अन्तर्भेदी आग्नेय शैल ।

1. बाह्य आग्नेय शैलें

  • धरातल पर लावा के ठण्डा होकर जमने से बनी है। इन शैलों की रचना में लावा बहुत जल्दी ठण्डा हो जाता है।
  • लावा के जल्दी ठण्डा होने से इनमें छोटे आकार के रवे बनते हैं।
  • इन्हें ज्वालामुखी शैल भी कहते हैं।
  • गेब्रो और बैसाल्ट बाह्य आग्नेय शैलों के सामान्य उदाहरण हैं।
  • ये शैलें ज्वालामुखी क्षेत्रों में पाई जाती हैं। भारत के दक्कन पठार की “रेगुर” अथवा काली मिट्टी लावा से बनी है

2. आन्तरिक आग्नेय शैल

  • आन्तरिक आग्नेय शैलों की रचना मैग्मा के धरातल के नीचे जमने से होती है।
  • धरातल के नीचे मैग्मा धीरे-धीरे ठण्डा होता है। अतः इन शैलों में बड़ आकार के रवे बनते हैं।
  • अधिक गहराई में पाई जाने वाली आन्तरिक शैलों को पातालीय आग्नेय शैल कहते हैं।
  • ग्रेनाइट और डोलाराइट आन्तरिक आग्नेय शैलों के सामान्य उदाहरण हैं।
  • दक्कन पठार और हिमालय क्षेत्र में ग्रेनाइट शैलों के विस्तृत भूखण्ड देखे जा सकते हैं।
  • आन्तरिक आग्नेय शैलों की आकृति कई प्रकार की होती है।
Igneous Rock
Image Source – NCERT
  • पूर्ववर्ती शैलों के बीच मैग्मा के समानान्तर तहों के रूप में जमने के स्वरूप को सिल कहते हैं।
  • डाइक शैलों के बीच मैग्मा का लम्बवत जमाव है। इनकी लम्बाई कुछ एक मीटर से लेकर कई किलोमीटर तथा चौड़ाई कुछ एक सेन्टीमीटर से लेकर सैंकड़ों मीटर तक हो सकती है।
  • रासायनिक गुणों के आधार पर आग्नेय शैलों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है – अम्लीय और क्षारीय शैल। ये क्रमशः अम्लीय और क्षारीय लावा के जमने से बनती है।
  • अम्लीय आग्नेय शैलों में सिलीका की मात्रा 65 प्रतिशत होती है। इनका रंग बहुत हल्का होता हैये कठोर और मजबूत शैल हैग्रेनाइट इसी प्रकार की शैल का उदाहरण है।
  • क्षारीय आग्नेय शैलों में सिलीका की मात्रा अम्लीय शैलों से कम पाई जाती है। इनमें सिलीका की मात्रा 55 प्रतिशत से कम होती हैऐसी शैलों में लोहा और मैगनीशियम की अधिकता है। इनका रंग गहरा और काला होता है। इन पर ऋतु अपक्षय का बहुत प्रभाव पड़ता है। गैब्रो, बैसाल्ट तथा डोलेराइट क्षारीय शैलों के उदाहरण हैं।
Read More :

Read More Geography Notes

 

 

भारत के विशाल पठार

उत्तरी विशाल मैदान के दक्षिण में भारतीय विशाल पठार फैला है। यह हमारे देश का सबसे बड़ा भौतिक विभाग है। इसका क्षेत्रफल लगभग 16 लाख वर्ग किलोमीटर है। अर्थात् देश का लगभग आधा भाग पठारी प्रदेश है। यह प्राचीन चट्टानों से बना पठारी प्रदेश है। इस प्रदेश में छोटे बड़े अनेक पठार, पर्वत श्रृंखलाएं और नदी घाटियां हैं। भारतीय विशाल पठार की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर अरावली पहाड़ियां हैं। बुंदेलखंड का पठार, कैमूर तथा राजमहल की पहाड़ियां, इसकी उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी सीमा निर्धारित करती हैं। पश्चिमी घाट, सह्याद्रि तथा पूर्वी घाट, विशाल पठार की क्रमशः पश्चिमी और पूर्वी सीमाएं बनाते हैं। इस पठार का अधिकांश धरातल 400 मीटर से अधिक ऊँचा है। इस पठार का सबसे ऊँचा स्थान अनाईमुदी शिखर (2695 मी.) है। इस पठार का सामान्य ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है।

विशाल पठार अत्यन्त प्राचीन भूखंड है। यह भाग प्राचीन गोंडवानालैंड का हिस्सा रहा है। यह भाग प्राचीन काल से सदैव समुद्रतल से ऊपर रहा है। इसी से इसका बड़े पैमाने पर अनाच्छादन हुआ है। ये पर्वत बहुत कठोर शैलों के बने हैं। इन पर अनाच्छादन की शक्तियों का प्रभाव कम पड़ा है-जबकि इनके आस पास की भूमि की शैल अपरदित होकर बह गई है।

प्राचीन होने के कारण विशाल पठार की नदियों ने अपना आधार तल लगभग प्राप्त कर लिया है। वे चौड़ी तथा उथली घाटियों में बहती हैं। भारतीय विशाल पठार की विशेष रूप से इसके दक्षिणी भाग की रचना कायान्तरित और आग्नेय शैलों से हुई है। नर्मदा नदी ने इस विशाल पठार को दो भागों में विभाजित कर दिया है। नर्मदा नदी के उत्तरी भाग को मध्यवर्ती उच्च भूमि कहते हैं, तथा दक्षिणी भाग को प्रायद्वीपीय पठार कहते हैं। इस भाग का अधिक प्रचलित नाम दक्कन का पठार है।

Plateau of india

1. मध्यवर्ती उच्चभूमि

  • नर्मदा नदी के उत्तर तथा उत्तरी विशाल मैदान के दक्षिण में फैली है।
  • इसके पश्चिमी भाग में अरावली है। अरावली गुजरात से राजस्थान होकर दिल्ली तक उत्तर-पूर्वी दिशा में 700 कि.मी. की दूरी में फैली हैं।
  • दिल्ली के निकट इनकी समुद्रतल से ऊँचाई 400 मीटर तथा दक्षिण में 1500 मीटर तक है।
  • गुरु शिखर (1722 मी.) अरावली का सर्वोच्च शिखर है।
  • गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित माउण्ट आबू एक सुन्दर पर्वतीय नगर है।
  • अरावली के पूर्व की भूमि बहुत ऊबड़-खाबड है।
  • मध्यवर्ती उच्च भूमि का एक भाग मालवा के पठार के नाम से जाना जाता हैं, यह भाग अरावली के दक्षिण पूर्व तथा विध्यांचल श्रेणी के उत्तर में विस्तृत है।
  • चंबल और बेतवा नदियाँ इस क्षेत्र का जल बहाकर यमुना में ले जाती हैं।
  • मध्यवर्ती भूमि का वह भाग, जो मालवा पठार के पूर्व में फैला हुआ है, बुंदेलखण्ड के पठार के नाम से विख्यात है।
  • बुंदेलखण्ड के पूर्व में बघेलखण्ड का पठार तथा इसके और पूर्व में छोटानागपुर का पठार है।
  • मध्यवर्ती भूमि के दक्षिणतम भाग में विंध्याचल और उत्तर पूर्व में महादेव, कैमूर तथा मैकाल की पहाड़ियां हैं।
  • नर्मदा घाटी की ओर विध्यांचल श्रेणी के एकदम खड़े कगार हैं।

विध्यांचल और सतपुड़ा के मध्य नर्मदा घाटी है। इसी घाटी में नर्मदा नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती हुई, अरब सागर में मिल जाती है। विंध्याचल और सतपुड़ा श्रेणियों के बीच के भू–भाग के नीचे की ओर धंसने से इस घाटी का निर्माण हुआ है।

2. प्रायद्वीपीय पठार (दक्कन का पठार)

  • यह भारतीय विशाल पठार का सबसे बड़ा भू-आकृतिक विभाग है।
  • इस पठार की आकृति त्रिभुज के समान है।
  • इसकी एक भुजा कन्याकुमारी से राजमहल पहाड़ियों को जोड़ने वाली रेखा है, जो पूर्वी घाट से होकर गुजरती है।
  • दूसरी भुजा सतपुड़ा श्रेणी, महादेव पहाड़ियाँ, मैकाल श्रेणी और राजमहल की पहाड़ियाँ हैं।
  • तीसरी भुजा सह्याद्रि श्रेणी (पश्चिमी घाट) है।
  • प्रायद्वीपीय पठार का कुल क्षेत्रफल लगभग 7 लाख वर्ग किलोमीटर है तथा ऊँचाई 500 मी. से 1000 मी. तक है।

पश्चिमी घाट

  • प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिम में सह्याद्रि श्रेणी है।
  • अरब सागर के तट के साथ फैले खड़े ढाल वाले सह्याद्रि विस्मयकारी हैं।
  • पश्चिम में स्थित होने के कारण इसका एक नाम पश्चिमी घाट भी है। घाट शब्द का एक अर्थ पहाड़ है।
  • सह्याद्रि की औसत ऊँचाई उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती है।
  • केरल में स्थित अनाईमुदी शिखर (2695 मी.) दक्षिण भारत का सर्वोच्च पर्वत शिखर है।
  • अनाईमुदी; अनामलाई श्रेणी, कामम पहाड़ियों और पलनी पहाड़ियों का मिलन बिन्दु है।
  • पलनी पहाड़ियों में कोडैकानल एक सुरम्य पर्वतीय नगर है।

पूर्वी घाट

  • प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी भाग में फैले हैं।
  • इन्हें पूर्वाद्रि श्रेणी के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह श्रेणी तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर स्थित नीलगिरि पर सह्याद्रि (पश्चिमी घाट) से मिल जाती है।
  • नीलगिरि में उदगमंडलम (ऊटी) नगर दक्षिण भारत का प्रसिद्ध पर्वतीय नगर है। यह नगर तमिलनाडु में स्थित है।
  • स्वतंत्रता से पूर्व यह मद्रास प्रेसीडेंसी के गवर्नर का ग्रीष्मकालीन निवास स्थान हुआ करता था।
  • सह्याद्रि श्रेणी की भांति यह अविच्छिन्न (निरंतर) नहीं है।
  • महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार और कावेरी नदियों ने इसे कई स्थानों पर खण्डित किया है।

सह्याद्रि और पूर्वाद्रि (पूर्वी घाट) के बीच के पठारी भाग को कई स्थानीय नामों से जाना जाता है। आंध्र प्रदेश में फैला तेलंगाना का पठार प्रायद्वीपीय पठार का ही एक भाग है। प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर-पूर्वी भाग को बघेल खंड और छोटा नागपुर के पठार के नाम से जाना जाता है। छोटा नागपुर के पठार में बहने वाली दामोदर नदी की घाटी में हमारे देश की प्रसिद्ध कोयला पट्टी है। यहाँ और भी बहुत से खनिज पाए जाते हैं।

Read More :

Read More Geography Notes

 

 

भारत के उत्तरी विशाल पर्वत

भारत की उत्तर सीमा पर स्थित कश्मीर की उत्तरी पर्वत श्रृंखलाएँ तथा पठार, खास हिमालय पर्वत और अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, असम, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय की पहाड़ियाँ सम्मिलित हैं। इन सभी को तीन वर्गों में रखा जा सकता है।
(i) हिमालय पर्वत
(ii) हिमालय पार की पर्वत श्रेणियाँ
(iii) पूर्वाचल या पूर्वी पहाड़ियाँ

Landforms-of-India

1. हिमालय पर्वत

हिमालय संसार की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है। यह पर्वत भारत की उत्तरी सीमा पर पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में 2500 किलोमीटर की दूरी में फैला है। जम्मू-कश्मीर में सिंधु नदी के महाखड्ड से लेकर अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र के महाखड्ड तक हिमालय का विस्तार है।

इसकी चौड़ाई पूर्व में 150 किलोमीटर से लेकर पश्चिम में 400 किलोमीटर तक है। हिमालय लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसकी तीन प्रमुख पर्वत श्रेणियाँ हैं। इन पर्वत श्रेणियों के बीच-बीच में गहरी घाटियाँ और विस्तृत पठार है। हिमालय के ढाल भारत की ओर तीव्र तथा तिब्बत की ओर मंद हैं।

हिमालय पर्वत पश्चिम बंगाल के मैदानी भाग से एकदम ऊपर उठे हुए दिखाई पड़ते हैं। यही कारण है कि इसके दो सर्वोच्च शिखर, एवरेस्ट (नेपाल में) और काँचनजंगा, मैदानी भाग से ज्यादा दूरी पर नहीं है। इसके विपरीत हिमालय का पश्चिमी भाग मैदानी क्षेत्र से धीरे-धीरे ऊपर उठा है। इसी कारण यहाँ ऊँची चोटियों और मैदानों के बीच कई श्रेणियाँ मिलती हैं। इसीलिए इस भाग की ऊँची चोटियाँ जैसे नंगा पर्वत, नंदा देवी, बद्रीनाथ आदि मैदानी भाग से काफी दूर हैं।

हिमालय में तीन समान्तर पर्वत श्रेणियाँ स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। ये पर्वत श्रेणियाँ है—
(i) हिमाद्रि,
(ii) हिमाचल,
(ii) शिवालिक

(i) हिमाद्रि (सर्वोच्च हिमालय)

यह हिमालय की सबसे उत्तरी तथा सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है। हिमालय की यही एक पर्वत श्रेणी ऐसी है, जो पश्चिम से पूर्व तक अपनी निरन्तरता बनाए रखती है। इस श्रेणी की क्रोड ग्रेनाइट शैलों से बनी है, जिसके आस-पास कायान्तरित और अवसादी शैलें भी मिलती हैं।

  • इस श्रेणी के पश्चिमी छोर पर – नंगापर्वत शिखर (8126 मी.)
  • पूर्वी छोर पर – नामचावरवा शिखर (7756 मी.) है।
  • समुद्र तल से औसत ऊँचाई – लगभग 6100 मी. है।

इस क्षेत्र में 100 से अधिक पर्वत शिखर 6100 मी. से अधिक ऊँचे हैं। संसार की सबसे ऊँची पर्वत चोटी एवरेस्ट (8848 मी.) इसी पर्वत श्रेणी में स्थित है। काँचनहुँगा (8598 मी.) मकालू, धौलागिरि तथा अन्नपूर्णा आदि हिमाद्रि की अन्य चोटियाँ है जिनकी ऊँचाई आठ हजार मीटर से अधिक है। काँचनहुँगा भारत में हिमालय का सर्वोच्च शिखर है।

(ii) हिमाचल (लघु) हिमालय

यह पर्वत श्रेणी हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित है। यह पर्वत श्रेणी 60 से 80 किलोमीटर तक चौड़ी तथा 1000 से 4500 मीटर तक ऊँची है। इसके कुछ शिखर 5000 मीटर से भी अधिक ऊँचे हैं। यह श्रेणी बहुत ही ऊबड़-खाबड़ है। इसमें संपीडन के द्वारा बड़े पैमाने पर शैलों का कायान्तरण हुआ है। अतः इस श्रेणी की रचना कायान्तरित शैलों द्वारा हुई है। इस श्रेणी के पूर्वी भाग के मन्द ढाल घने वनों से ढके हैं। अन्यत्र इस श्रेणी के दक्षिणाभिमुख ढाल बहुत ही तीव्र और वनस्पति विहीन हैं। उत्तराभिमुख ढालों पर सघन वनस्पति पाई जाती है।

कश्मीर में इस श्रेणी को पीर पंजाल तथा हिमाचल प्रदेश में धौलाधार के स्थानीय नामों से जाना जाता है। कश्मीर की सुरम्य घाटी, पीर पंजाल और हिमाद्रि श्रेणी के बीच विस्तृत है। हिमाचल पर्वत श्रेणी में ही कांगड़ा और कुल्लू की प्रसिद्ध घाटियाँ है।

हिमाचल पर्वत श्रेणियों पर ही प्रमुख पर्वतीय नगर बसे हैं। शिमला, नैनीताल, मसूरी, अल्मोड़ा और दार्जिलिंग ऐसे ही कुछ प्रसिद्ध पर्वतीय नगर हैं। नैनीताल के आस-पास अनेक सुंदर झीलें हैं।

(iii) शिवालिक (बाह्य हिमालय)

हिमालय की सबसे दक्षिण की श्रेणी शिवालिक के नाम से विख्यात है। हिमालय की हिमाद्रि और हिमाचल पर्वत श्रेणियाँ शिवालिक से पहले बन चुकी थीं। हिमाद्रि और हिमाचल श्रेणियों से निकलने वाली नदियां कंकड़-पत्थर, बालू और मिट्टी भारी मात्रा में बहाकर लाती थीं और इन्हें तेजी से सिकुड़ते टेथिस सागर में जमा कर देती थी। कालांतर में हुई हलचलों से कंकड़-पत्थर और बालू के अवसादों में मोड़ पड़ गए और इस प्रकार शिवालिक श्रेणी का निर्माण हुआ। ये सबसे कम संघटित श्रेणियाँ हैं। हिमाद्रि और हिमाचल पर्वत श्रेणियों की तुलना में शिवालिक श्रेणियां कम ऊँची हैं। इनकी औसत ऊँचाई 600 मीटर है। हिमाचल और शिवालिक श्रेणियों के बीच फैली चौरस घाटियों को ‘दून’ के नाम से जाना जाता है। देहरादून की घाटी इसका उदाहरण है।

2. हिमालय पार की पर्वत श्रेणियाँ

जम्मू-कश्मीर राज्य में हिमाद्रि के उत्तर में कुछ पर्वत श्रेणियां फैली हैं। इनमें जाकर पर्वत श्रेणी हिमाद्रि के समानान्तर विस्तृत है। जास्कर के उत्तर में लद्दाख पर्वत श्रेणी है। इन दोनों पर्वत श्रेणियों के बीच सिन्धु नदी दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर बहती है। अनेक विद्वान जास्कर और लद्दाख श्रेणियों को वृहत हिमालय के ही अंग मानते हैं और उन्हें कश्मीर हिमालय में सम्मिलित करते हैं। लद्दाख पर्वत श्रेणी के उत्तर में कराकोरम पर्वत श्रेणी है। संस्कृत साहित्य में काराकोरम का नाम कृष्णगिरि है। इस पर्वत श्रेणी का एक पर्वत शिखर के (8611 मी.) एवरेस्ट शिखर के बाद संसार का दूसरा सबसे ऊँचा शिखर है।

जम्मू-कश्मीर राज्य के ऊत्तर-पूर्वी भाग में लद्दाख का पठार है। यह पठार हमारे देश का बहुत ऊँचा, शुष्क, और दुर्गम क्षेत्र है।

3. पूर्वाचल

ब्रह्मपुत्र महाखड्ड के पार भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में फैली पहाड़ियों का सम्मिलित नाम पूर्वाचल है। इन पहाड़ियों की औसत ऊँचाई समुद्रतल से 500 से 3000 मी. तक है। ये पहाड़ियाँ दक्षिणी-अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय और त्रिपुरा में स्थित हैं। मिश्मी, पटकाई बुम, नागा, मणिपुर और मिजो (लुशाई) तथा त्रिपुरा इस क्षेत्र की प्रमुख पहाड़ियाँ हैं। मेघालय का पठार उत्तर-पूर्वी पहाड़ियों का ही एक भाग है। इस पठार में गारो, खासी और जयन्तिया पहाड़ियाँ हैं। सरंचनात्मक दृष्टि से यह प्रायद्वीपीय भारत का ही भाग माना जाता है।

Read More :

Read More Geography Notes

 

error: Content is protected !!