East India Company

भारत के वायसराय (The Viceroy of India)

1857 के विद्रोह के बाद, अगस्त 1858 को ब्रिटिश संसद ने एक अधिनियम पारित जिसके द्वारा कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया गया था । भारत में ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरित किया गया और लार्ड कैनिंग को भारत का पहला वायसराय (The Viceroy of India) बनाया गया था।

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भारत के वायसराय (The Viceroy of India)

लॉर्ड कैनिंग (Lord Canning)

कार्यकाल – 1856 – 62 ई.

  • लॉर्ड कैनिंग अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का अन्तिम गवर्नर-जनरल तथा ब्रिटिश सम्राट के अधीन प्रथम वायसराय था। 
  • इसके समय में ही 1857 ई. का महत्वपूर्ण विद्रोह हुआ। 
  • 1858 ई. में महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा द्वारा भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन की समाप्ति की गई। 
  • बिहार, आगरा तथा मध्य प्रान्त में 1859 ई. का किराया अधिनियम लागू हुआ। 
  • भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम, 1861 ई. के अन्तर्गत कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास में एक-एक उच्च न्यायालयों की स्थापना की गई। 
  • सैन्य सुधारों के अन्तर्गत कैनिंग ने भारतीय सैनिकों की संख्या घटाते हुए तोपखाने के अधिकार को उनके हाथों से छीन लिया। 
  • वुइस डिस्पैच की सिफारिशों के आधार पर 1857 ई. में लन्दन विश्वविद्यालय की तर्ज पर कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। 
  • आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत कैनिंग ने ब्रिटिश अर्थशास्त्री विल्सन को भारत बुलाया तथा ₹ 500 से अधिक आय पर आयकर लगा दिया। 
  • विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 ई. में व भारतीय दण्ड संहिता की स्थापना 1861 ई. में कैनिंग के ही समय में हुई। 
  • इसके काल में ही नमक पर कर लगाए जाने का सुझाव रखा गया। 

लॉर्ड एल्गिन (Lord Elgin) 

कार्यकाल – 1862 – 63 ई.

  • भारत में आने से पूर्व वह कनाडा तथा जमैका के गवर्नर के रूप में भी कार्य कर चुका था।
  • उसके कार्यकाल में वहाबियों का विद्रोह हुआ। उसे वहाबियों के आन्दोलन को दबाने में सफलता प्राप्त हुई। सर्वोच्च एवं सदर न्यायालयों को उच्च न्यायालय के साथ शामिल कर दिया गया।
  • लॉर्ड एल्गिन ने बनारस, कानपुर, आगरा तथा अम्बाला में अनेक दरबार आयोजित किए। इन दरबारों का उद्देश्य भारतीय रियासतों को ब्रिटिश सरकार के समीप लाना था।
  • इसकी मृत्यु 1863 ई. में धर्मशाला (तत्कालीन पंजाब) में हुई।

सर जॉन लॉरेन्स (Sir John Lawrence)

कार्यकाल – 1864 – 69 ई.

  • सर जॉन लॉरन्स को “भारत का रक्षक तथा विजय का संचालक कहा जाता है।”
  • पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिलाए जाने के पश्चात वह चीफ कमिश्नर नियुक्त किया गया।
  • अफगानिस्तान के सन्दर्भ में उसने अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया तथा तत्कालीन शासक शेर अली से दोस्ती की।
  • 1865 ई. में भूटानियों ने ब्रिटिश साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया। 
  • उसके समय में 1866 ई. में उड़ीसा में तथा 1868-69 ई. में बन्देलखण्ड एवं राजपूताना में भीषण अकाल पड़ा
  • सर जॉर्ज कैम्पबेल के नेतृत्व में अकाल आयोग नियुक्त किया गया, जो अकालों का मुकाबला करने के सबसे सफल उपायों पर विचार कर सके। 
  • लॉरेन्स के काल में 1865 ई. में भारत एवं यूरोप के बीच प्रथम समुद्री टेलीग्राफ सेवा आरम्भ हुई। 
  • इसी के काल में 1868 ई. में पंजाब तथा अवध के काश्तकारी अधिनियम पारित हुए थे। 

लॉर्ड मेयो (Lord Mayo)

कार्यकाल – 1869 – 72 ई.

  • लॉर्ड मेयो ने भारत में वित्त के विकेन्द्रीकरण को आरम्भ किया। उसने बजट घाटे को कम किया, आयकर की दर को 1% से बढ़ाकर 2.5% कर दिया। 
  • 1870 ई. में लाल सागर होकर तार व्यवस्था का प्रारम्भ किया।
  • अखिल भारतीय जनगणना का पहला प्रयास 1872 ई. में किया गया। 
  • 1872 ई. में उसने एक कृषि विभाग की स्थापना की
  • ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के द्वितीय पुत्र ड्यूक ऑफ एडिनबरा ने लॉर्ड मेयो के कार्यकाल में ही 1869 ई. में भारत यात्रा की थी। 
  • लॉर्ड मेयो के काल से ही राज्य रेलवे स्थापना की शुरुआत की गई। 
  • मेयो ने भारतीय नरेशों के बालकों की शिक्षा के लिए अजमेर में मेयो कॉलेज की स्थापना की। 
  • अण्डमान द्वीप में 1872 ई. में एक पठान ने लॉर्ड मेयो की हत्या कर दी

लॉर्ड नॉर्थबुक (Lord Northbrook)

कार्यकाल – 1872- 76 ई.

  • 1873 ई. में उसने अफगानिस्तान के राजदूत से बातचीत की, किन्तु अपनी ओर से कुछ भी आश्वासन देने से इन्कार कर दिया। 
  • 1876 ई. में उसने त्याग-पत्र दे दिया, क्योंकि अफगानिस्तान की नीति के सम्बन्ध में उसके विचार डिजरैली को सरकार से नहीं मिलते थे।
  • इसके समय में पंजाब का प्रसिद्ध कूका आन्दोलन हुआ
  • 1873-74 ई. में बिहार में तथा बंगाल के एक भाग में अकाल पड़ा। 
  • लोगों के कष्टों को कम करने के लिए बहुत-सा रुपया व्यय किया गया।
  • 1875 ई. में अलीगढ़ में सैयद अहमद खाँ द्वारा मोहम्मडन एंग्लो ओरियण्टल कॉलेज की स्थापना तथा नॉर्थब्रुक द्वारा उसे ₹ 10000 दान दिया गया
  • लॉर्ड नॉर्थब्रक के समय प्रिन्स ऑफ वेल्स (किंग एडवर्ड सप्तम) भारत आए।
  • इसके समय में बड़ौदा के राजा मल्हार राव गायकवाड़ को भ्रष्टाचार एवं कुशासन का आरोप लगाकर सिंहासन से हटाकर उसके भाई के दत्तक पुत्र को 1875 ई. में राजा बना दिया गया।

लॉर्ड लिटन (Lord Lytton)

कार्यकाल – 1876 – 80 ई.

  • लॉर्ड लिटन एक महान् लेखक तथा प्रतिभावान वक्ता था। साहित्य जगत में वह “ओवन मैरिडिथ” के नाम से प्रसिद्ध था, लॉर्ड लिटन भारतीय अदालतों की इस मनोवृत्ति का विरोधी था, जिसके अनुसार उन मामलों में, जिनमें यूरोपीय अपराधी होते थे, उन्हें नरम दण्ड दिए जाते थे, उसके समय में द्वितीय आंग्ल-अफगान युद्ध (1878-80 ई.) लड़ा गया था। 

भीषण अकाल (Severe Famine)

  • 1876 – 78 ई. में मदास, बम्बई, मैसूर, हैदराबाद, पंजाब, मध्य भारत के कुछ भागों में भारी अकाल पड़ा। 
  • अकाल के कारण लभग 50 लाख लोग काल के ग्रास बन गए। लिटन ने अकाल के कारण की जाँच के लिए रिचर्ड स्ट्रेची की अध्यक्षता में अकाल आयोग की स्थापना की।  इस आयोग ने प्रत्येक प्रान्त में अकाल कोष बनाने की सलाह दी। 

दिल्ली दरबार का आयोजन (Delhi Durbar Organized) 

  • अकाल की भयानक स्थिति के बाद दिल्ली में 1 जनवरी, 1877 को ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को कैसर-ए-हिन्द की उपाधि से सम्मानित करने के लिए दिल्ली दरबार का आयोजन किया गया। 

राज उपाधि अधिनियम (Royalty Act)

  • लॉर्ड लिटन के काल में अंग्रेजी संसद ने, महारानी विक्टोरिया को कैसर-ए-हिन्द की उपाधि देने के लिए राज उपाधि अधिनियम, 1876 पारित किया था। 

मुक्त व्यापार नीति को प्रोत्साहन (Encourage Free Trade Policy)

  • लॉर्ड लिटन ने मुक्त व्यापार नीति का अनुसरण किया। उसने 29 वस्तुओं पर से आयात कर हटा दिया। 
  • उसने सूती कपड़े पर 50% का कर हटाया, इसका परिणाम यह हुआ कि समुद्री व्यापार में आशातीत वृद्धि हुई। 

वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट (Vernacular Press Act)

  • 1878 ई. अधिनियम द्वारा भारतीय भाषा में समाचार-पत्रों को प्रतिबन्धित कर दिया गया। इस अधिनियम को गलाघोंट अधिनियम भी कहा गया।

भारतीय शस्त्र अधिनियम (Indian Arms Act)

  • 1878 ई. में लॉर्ड लिटन के समय में 11वें अधिनियम के द्वारा किसी भारतीय के लिए बिना लाइसेन्स शस्त्र रखना अथवा उसका व्यापार करना एक दण्डनीय अपराध मान लिया गया। 

वैधानिक नागरिक सेवा (Statutory Civil Service)

  • लॉर्ड लिटन द्वारा 1879 ई. में वैधानिक नागरिक सेवा की स्थापना की गई। इसके द्वारा यह व्यवस्था की गई कि अब तक जिन पदों पर नियमित नागरिक सेवाओं के सदस्य काम करते थे, उन पर वायसराय तथा भारतीय मन्त्री द्वारा स्वीकृत व्यक्ति ही नियुक्त किए जायेंगे। 
  • लिटन ने भारतीय सिविल सेवा में भारतीयों के प्रवेश की अधिकतम आयु को 21 से घटाकर 19 वर्ष कर दिया। 
  • लिटन ने अलीगढ़ में एक मुस्लिम-एंग्लो प्राच्य महाविद्यालय की स्थापना की। 

लॉर्ड रिपन (Lord Ripon)

कार्यकाल – 1880 – 84 ई.

  • लॉर्ड रिपन ग्लैडस्टन युग का एक सच्चा व उदार व्यक्ति था।
  • यह भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय गवर्नर-जनरल था, उसका राजनैतिक दृष्टिकोण लॉर्ड लिटन से अत्यन्त विपरीत था। 
  • 1852 ई. में उन्होंने एक पुस्तिका ‘इस युग का कर्तव्य’ लिखी थी
  • उन्होंने एक बार कहा था मेरा मूल्यांकन मेरे कार्यों से करना, शब्दों से नहीं। 
  • फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने रिपन को “भारत के उद्धारक” की संज्ञा दी थी और उसके शासनकाल को भारत में स्वर्ण युग का आरम्भ कहा।

हण्टर कमीशन का गठन (Constitution of Hunter Commission)

  • रिपन ने शैक्षिक सुधारों के अन्तर्गत 1882 ई. में विलियम हण्टर के नेतृत्व में हण्टर कमीशन का गठन किया। 
  • आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में प्राइमरी और माध्यमिक स्कूली शिक्षा की उपेक्षा की गई है, परन्तु विश्वविद्यालय की शिक्षा पर अपेक्षाकृत अधिक ध्यान दिया गया है। 

नियमित जनगणना की शुरूआत (Start of Regular Census)

  • 1872 ई. में प्रथम जनगणना मेयो के शासनकाल में शुरू हुई, किन्तु प्रथम वास्तविक जनगणना रिपन के काल में 1881 ई. में हुई। 

स्थानीय स्वशासन की शुरूआत (Introduction of Local Self-Government)

  • रिपन के सुधार कार्यों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य स्थानीय स्वशासन की शुरूआत थी। 
  • इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय बोर्ड गए गए, जिले में जिला उप. विभाग, तहसील बोर्ड बनाने की योजना बनी। नगरों में नगरपालिका का गठन किया गया एवं इन्हें कार्य करने की स्वतन्त्रता एवं आय प्राप्त करने के साधन उपलब्ध कराए गए।

प्रथम फैक्ट्री अधिनियम (First Factory Act)

  • प्रथम फैक्ट्री अधिनियम लॉर्ड रिपन के समय में 1881 ई. में पारित हुआ। 

वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट की समाप्ति (End of Vernacular Press Act)

  • लॉर्ड रिपन ने अपने सुधार कार्यों के तहत सर्वप्रथम समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता को बहाल करते हुए 1882 ई. में वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को समाप्त कर दिया

इल्बर्ट बिल विवाद (Ilbert Bill Dispute)

  • 1884 ई. में इल्बर्ट बिल विवाद रिपन के समय में हुआ।
  • इल्बर्ट भारत सरकार का विधि सदस्य था। इल्बर्ट बिल विधेयक में फौजदारी दण्ड व्यवस्था में प्रचलित भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया गया था। 
  • भारतीय न्यायाधीशों को इल्बर्ट विधेयक में यूरोपीय मुकदमों को सुनने का अधिकार दिया गया। भारत में रहने वाले अंग्रेजों ने इस बिल पर आपत्ति जताई, जिसके कारण रिपन को इस विधेयक को वापस लेकर संशोधन करके पुनः प्रस्तुत करना पड़ा । 
  • इस विधेयक पर हुए वाद-विवाद के कारण ही रिपन ने कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व त्याग-पत्र दे दिया

स्वतन्त्र व्यापारिक नीति (Free Trade Policy)

  • लॉर्ड रिपन ने स्वतन्त्र व्यापारिक नीति को पूर्ण किया। 
  • इस नीति को लॉर्ड नार्थ बुक तथा लिटन ने प्रारम्भ किया था। 1882 ई. में सम्पूर्ण भारत में नमक पर कर कम कर दिया गया।

लॉर्ड डफरिन (Lord Dufferin)

कार्यकाल – 1884- 88 ई.

  • डफरिन के काल की महत्वपूर्ण घटना तृतीय आंग्ल-बर्मा युद्ध (1885-88 ई.) था। इस युद्ध में बर्मा पराजित हुआ। 
  • 1885 ई. में बंगाल में टेनेन्सी एक्ट पारित हुआ, जिसके अन्तर्गत अब जमींदार अपनी इच्छानुसार किसानों की भूमि नहीं छीन सकते थे। 
  • डफरिन के काल में लेडी डफरिन फण्ड व 1887 ई. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। उसी के काल में 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई।

लॉर्ड लैंसडाउन (Lord Lansdowne)

कार्यकाल – 1888 – 94 ई.

  • लॉर्ड लैंसडाउन के काल में कश्मीर के महाराजा प्रताप सिंह द्वारा राजगद्दी का परित्याग एवं प्रिन्स ऑफ वेल्स का दूसरी बार भारत आगमन हुआ। 
  • इसी के काल में 1891 ई. में दूसरा फैक्ट्री अधिनियम पारित हुआ। 1892 ई. इण्डियन काउन्सिल एक्ट पारित किया गया, जिसके द्वारा भारत में निर्वाचन का सिद्धान्त आरम्भ हुआ। 
  • लैंसडाउन के समय में सर इण्ड की अध्यक्षता में एक शिष्टमण्डल अफगानिस्तान भेजा गया। उनके प्रयास से भारत और अफगानिस्तान के मध्य सीमा का निर्धारण हुआ, जिसे इण्ड रेखा के नाम से जाना जाता है। 
  • मणिपुर में हुए विद्रोह को दबाने का श्रेय भी लॉर्ड लैंसडाउन को जाता है। लॉर्ड लैंसडाउन के काल में भारतीय रियासतों की सेनाओं को संगठित करके उन्हें साम्राज्य सेवा सेना नाम दिया गया था।

लॉर्ड एल्गिन द्वितीय (Lord Elgin II)

कार्यकाल – 1894 – 99 ई.

  • 1896 ई. तथा 1898 ई. के मध्य उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार तथा पंजाब के हिसार जिले में भयंकर अकाल पड़ा। 
  • 1898 ई. में अकालों के सम्बन्ध में जाँच के लिए सर जेम्स लायल की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया गया। 
  • लॉर्ड एल्गिन द्वितीय के काल में स्वामी विवेकानन्द द्वारा वेल्लूर में रामकृष्ण मिशन और मठ की स्थापना हुई। 
  • इसके समय में भारत सरकार को अफीम की उत्पत्ति की समस्या के सम्बन्ध में भी कार्रवाई करनी पड़ी 
  • 1893 ई. में एक अफीम आयोग नियुक्त किया गया था, जिसका काम अफीम के प्रयोग से जनता के स्वास्थ्य पर प्रभाव के सम्बन्ध में जाँच करना था।  
  • बम्बई में 1897 ई. में पूना में चापेकर बन्धुओं ने आयर्स्ट तथा रैण्ड नामक अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी। 
  • एल्गिन ने भारत के विषय में कहा था कि ‘भारत को तलवार के बल पर विजित किया गया है, और तलवार के बल पर ही इसकी रक्षा की जाएगी।’

भारत के गवर्नर जनरल (Governor General of India)

भारत के गवर्नर जनरल (Governor General of India) भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश राज का प्रधान पद था। भारतीय उपमहाद्वीप में गवर्नर जनरल का पद 1828 – 1858 तक रहा था।

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भारत के गवर्नर जनरल (Governor General of India)

लॉर्ड विलियम बैंटिक (Lord William Bentinck)

कार्यकाल – 1828 – 35 ई.

  • लॉर्ड विलियम बैंटिक ने 1828 ई. में बंगाल के गवर्नर – जनरल का कार्यभार सँभाला। बैंटिक को भारत का प्रथम गवर्नर-जनरल का पद सुशोभित करने का गौरव प्राप्त है।
  • इसके पूर्व वह 1803 ई. में मद्रास का गवर्नर नियुक्त किया गया था। 
  • 1806 ई. में उसने सैनिकों के माथे पर जातीय चिहन लगाने और कानों में बालियाँ पहनने पर रोक लगा दी थी, जिससे वेल्लोर में प्रथम धार्मिक सैनिक विद्रोह हुआ। बैंटिक अपनी विजय के कारण नहीं, बल्कि सामाजिक सुधारों के लिए याद किया जाता है।

सामाजिक सुधार (Social Reform)

  • सती तथा ठगी-प्रथा का अन्त बैंटिक ने सती प्रथा के खिलाफ कानून बनाकर दिसम्बर, 1829 ई. में धारा XVII द्वारा विधवाओं के सती होने को अवैध घोषित किया।
  • प्रारम्भ में यह कानून केवल बंगाल प्रेसीडेन्सी में लागू किया गया था, पर 1830 ई. में इसे बम्बई एवं मद्रास प्रेसीडेन्सियों में भी लागू किया गया। 
  • ठगी प्रथा की समाप्ति के लिए बैंटिक ने कर्नल स्लीमन की नियुक्ति की। 1830 ई. तक ठगी प्रथा का अन्त हो गया। 

नरबलि व शिशु हत्या पर प्रतिबन्ध (Ban on Cannibalism and Infanticide)

  • बैंटिक ने नरबलि तथा राजपूतों में लड़कियों की शिशु-हत्या पर भी प्रतिबन्ध लगाया। 

सरकारी सेवाओं में भेदभाव का अन्त (End of Discrimination in Government Services)

  • बैंटिक ने सरकारी सेवाओं में भेदभावपूर्ण व्यवहार को खत्म करने के लिए 1833 ई. के एक्ट की धारा 87 के अनुसार जाति या रंग के स्थान पर योग्यता को ही सेवा का आधार माना तथा कम्पनी के अधीनस्थ किसी भी भारतीय नागरिक को “उसके धर्म, जन्मस्थान, जाति अथवा रंग” के आधार पर किसी पद से वंचित नहीं रखा जा सकेगा; यह बात स्वीकार की गई। 

समाचार-पत्रों के प्रति उदार नीति (Liberal Policy towards Newspapers) 

  • सामाचार-पत्रों के प्रति बैंटिक की नीति उदार थी। वह इसे असन्तोष से रक्षा का अभिद्वार मानता था। 
  • उसके भत्ता बन्द करने तथा अन्य वित्तीय सुधारों पर समाचार-पत्रों में कड़ी प्रतिक्रिया हुई। इस पर भी वह उनकी स्वतन्त्रता के पक्ष में ही रहा। 

न्यायिक सुधार (Judicial Reform)

  • न्याय सम्बन्धी सुधारों के कार्य में सर चार्ल्स मैटकॉफ, बटरवर्थ, बेली तथा हाल्ट मैकेंजी ने बैंटिक की मदद की। 

वित्तीय सुधार (Financial Reform)

  • वित्तीय सुधारों के परिणामस्वरूप नवम्बर, 1828 ई. में एक आदेश प्रकाशित किया गया जिसके द्वारा कलकत्ता के चार सौ मील के क्षेत्रों में भत्तों में 50% की कटौती की गई। 
  • बंगाल में भू-राजस्व को एकत्र करने के क्षेत्र में प्रभावकारी प्रयास किए गए। 
  • रॉबर्ट मार्टिन्स बर्ड के निरीक्षण में पश्चिमोत्तर प्रान्त में ऐसी भू-कर की व्यवस्था की गई, जिससे अधिक कर एकत्र होने लगा। 
  • अफीम के व्यापार को नियमित करते हुए इसे केवल बम्बई बन्दरगाह से निर्यात की सुविधा दी गई, इसका परिणाम यह हुआ कि कम्पनी को निर्यात कर का भी भाग मिलने लगा, जिससे उसके राजस्व में वृद्धि हुई। 
  • बैंटिक ने लोहे तथा कोयले के उत्पादन, चाय तथा कॉफी के बगीचों तथा नहरों की परियोजनाओं को भी प्रोत्साहन दिया।

शिक्षा सम्बन्धी सुधार (Education Reform)

  • 1835 में एक प्रस्ताव द्वारा विलियम बैंटिक ने घोषणा की “ब्रिटिश सरकार का प्रमुख उद्देश्य भारतीयों में साहित्य तथा विज्ञान की उन्नति करना होना चाहिए तथा शिक्षा के लिए स्वीकृत धन का व्यय सर्वोत्तम रूप से केवल अंग्रेजी शिक्षा पर ही होना चाहिए।”
  • इस प्रकार अंग्रेजी को भारत में उच्च शिक्षा का माध्यम मान लिया गया। 1835 ई. में बँटिक ने कलकत्ता में मेडिकल कॉलेज की नींव रखी। 

सार्वजनिक सुधार के कार्य (Public Improvement Works)

  • लॉर्ड मिण्टो के समय में प्रारम्भ की गई सिंचाई योजनाओं को विलियम बैंण्टिक के समय में कार्यान्वित किया गया। 
  • उत्तर-पश्चिमी प्रान्त में जल को बाँटने के सम्बन्ध में नहरें खोदी गईं। 
  • सड़कों में सुधार किया गया। 
  • कलकत्ता से दिल्ली तक की जी.टी. रोड की मरम्मत व बम्बई से आगरा तक एक सड़क बनाने का कार्य आरम्भ हुआ। 

भारतीय रियासतों के प्रति नीति (Indian States Policy)

बँटिक ने रियासतों के प्रति अहस्तक्षेप की नीति अपनाई, परन्तु कुछ रियासतों में अव्यवस्था का आरोप लगाकर बैंटिक ने 1831 ई. में मैसूर 1834 ई. में कुर्ग तथा कछार की रियासतों को अपने प्रदेश में मिला लिया। 

  • हैदराबाद, बूंदी, जोधपुर, कोटा तथा भोपाल में बैंटिक ने अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया था। इस काल में आगरा एक नई प्रेसीडेन्सी बनी तथा यहाँ एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई। 
  • इसने डिविजनल कमिश्नर (मण्डलायुक्त) की नियुक्ति की।

सर चार्ल्स मैटकॉफ (Sir Charles Matcof)

कार्यकाल – 1835 – 36 ई.

  • मेटकॉफ ने ही 1809 ई. में रणजीत सिंह के साथ अमृतसर सन्धि से सम्बन्धित बातचीत की थी। 
  • मात्र एक वर्ष तक भारत के गवर्नर-जनरल के पद पर कार्य करने वाले चार्ल्स मैटकॉफ को प्रेस पर से नियन्त्रण हटाने के लिए याद किया जाता है। समाचार-पत्रों पर से प्रतिबन्ध हटाने के कारण उसे समाचार-पत्रों के मुक्तिदाता के रूप में जाना जाता है।

लॉर्ड ऑकलैण्ड (Lord Auckland)

कार्यकाल – 1836 – 42 ई.

  • 1836 ई. में लॉर्ड ऑकलैण्ड भारत का गवर्नर-जनरल बनकर आया। 
  • इसके शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना प्रथम अफगान युद्ध था। 
  • प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध (1839 – 42 ई.) में अंग्रेजों को भारी क्षति हुई। 
  • अफगानिस्तान की समस्या के समाधान के लिए शाहशुजा, रणजीत सिंह व अंग्रेजों के बीच एक त्रिपक्षीय सन्धि (1838 ई.) हुई। इस सन्धि के द्वारा शाहशुजा को अफगानिस्तान की गद्दी पर बैठाया जाना तय हुआ, परन्तु बाद में रणजीत सिंह इस सन्धि से अलग हो गए। 
  • लॉर्ड ऑकलैण्ड ने भारत के विभिन्न सरकारी स्कूलों में अनेक छात्रवृत्तियां प्रारम्भ की, उसने बम्बई तथा मद्रास में मेडिकल स्कूल स्थापित किए। 
  • 1839 ई. में ऑकलैण्ड ने कलकत्ता से दिल्ली तक जी.टी. रोड का निर्माण शुरू करवाया तथा इसी के समय में ‘शेरशाह सूरी मार्ग’ का नाम बदलकर जी. टी. रोड (ग्राण्ड ट्रंक रोड) रख दिया गया। 
  • ऑकलैण्ड ने दोआब में सिंचाई की एक विस्तृत योजना को स्वीकृति दी। 
  • अवध के साथ सन्धि की, परन्तु ब्रिटिश सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया और उसे वापस बुला लिया।

लॉर्ड एलनबरो (Lord Ellenborough)

कार्यकाल – 1842 – 44 ई.

  • लॉर्ड एलनबरो की 1842 ई. में भारत में गवर्नर जनरल के पद पर नियुक्ति हुई।
  • भारत में आने से पूर्व उसने कम्पनी के नियन्त्रक बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में काम किया था। एलनबरो के समय में सर चार्ल्स नेपियर के नेतृत्व में 1843 ई. में सिन्ध का विलय किया गया।
  • एलनबरो का कार्यकाल कुशल अकर्मण्यता की नीति का काल कहा जाता है।
  • एलनबरो ने 1843 ई. के अधिनियम 5 द्वारा दास प्रथा का अन्त कर दिया

लॉर्ड हॉर्डिंग (Lord Hardinge)

कार्यकाल – 1844 – 48 ई.

  • भारत में गर्वनर-जनरल के रूप में आने से पूर्व लॉर्ड हॉर्डिंग 20 वर्षों तक पार्लियामेण्ट में रहा था। 
  • वह द्वीप पेनिनसुलर युद्ध का नायक था तथा वाटरलू की लड़ाई में भी उसने भाग लिया था। 
  • लॉर्ड हॉर्डिंग के शासनकाल की सबसे मुख्य घटना प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध थी। यह युद्ध दिसम्बर, 1845 ई. में प्रारम्भ हुआ, जिसमें चार लड़ाइयाँ मुदकी, फिरोजशाह, बद्दोवल व आलीवाल में हुई, परन्तु सबरॉव की लड़ाई में सिख हार गए तथा युद्ध की समाप्ति लाहौर की सन्धि (1846 ई.) से हुई। इस युद्ध का परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में रहा व हेनरी लॉरेन्स को रेजीडेण्ट के रूप में नियुक्त किया गया और अंग्रेजों ने अपना साम्राज्य जालन्धर से पंजाब तक विस्तृत कर लिया।
  • लॉर्ड हॉडिंग ने अपने सुधारों में नमक-कर कम कर दिया तथा बहुत-से चुंगी कर हटा दिए। अनियन्त्रित व्यापार को प्रोत्साहन दिया तथा देसी रियासतों का अपनी-अपनी सीमाओं में सती-प्रथा खत्म करने को कहा। 
  • गोण्ड एवं मध्य भारत में मानव बलि प्रथा का दमन तथा हत्या पर रोक हॉर्डिंग के काल की महत्वपूर्ण घटना थी

लॉर्ड डलहौजी (Lord Dalhousie)

कार्यकाल – 1848 – 56 ई.

  • लॉर्ड डलहौजी 36 वर्ष की आयु में गवर्नर-जनरल के रूप में भारत आया था। 
  • भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को बढ़ाने के लिए उसने यथा सम्भव कार्य किया। 
  • उसने युद्ध व व्यपगत सिद्धान्त (Doctrine of Lapse) के आधार पर अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार करते हुए अनेक महत्वपूर्ण सुधारात्मक कार्यों को भी सम्पन्न किया। 

पंजाब का विलय (Merger of Punjab) 

  • द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध (1848 ई.) डलहौजी के समय में हुआ। 
  • सिख पूर्ण रूप से पराजित हुए तथा पंजाब को अंग्रेजी राज्य में 1849 ई. में मिला लिया गया। 

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध (Second Anglo-Burma War)

  • लॉर्ड डलहौजी के समय में फॉक्स युद्धपोत के अधिकारी कामेडोर लैम्बर्ट को रंगून भेजा गया और द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध लड़ा गया, जिसका परिणाम बर्मा की हार था तथा लोअर बर्मा एवं पीगू का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय (1852 ई.) कर लिया गया।

सिक्किम का विलय (Merger of Sikkim)

  • यह नेपाल और भूटान राज्यों के बीच एक छोटा-सा राज्य था, जिसमें दार्जिलिंग भी सम्मिलित था। 
  • इसे 1850 ई. में अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया। 

व्यपगत का सिद्धान्त (Theory of Lapse)

डलहौजी का शासनकाल व्यपगत सिद्धान्त के कई मामलों को लागू करने के लिए प्रसिद्ध है। 

  • इस सिद्धान्त का मूल आधार यह था कि चूँकि अंग्रेजी कम्पनी भारत में सबसे बड़ी शक्ति है। इसलिए अधीन रियासतों अथवा राज्यों को उसकी स्वीकृति के बिना किसी को गोद लेने का अधिकार नहीं था तथा कम्पनी को यह अधिकार प्राप्त था कि वह जब चाहे इस प्रकार की स्वीकृति को लौटा ले। 
  • डलहौजी ने तत्कालीन रजवाड़ों को तीन भागों में बाँटा है : – 
    • वे रजवाड़े जो न ही किसी को कर देते थे तथा न ही किसी के नियन्त्रण में थे तथा बिना अंग्रेजी हस्तक्षेप के गोद ले सकते थे।
    • वे रजवाड़े जो पहले मुगलों एवं पेशवाओं के अधीन थे, परन्तु इसके समय में अंग्रेजों के अधीन थे, उन्हें गोद लेने से पहले अंग्रेजों से अनुमति लेना आवश्यक था।
    • वे रियासतें जिनका निर्माण स्वयं अंग्रेजों ने किया था। उन्हें गोद लेने का अधिकार नहीं था। अपने व्यपगत सिद्धान्त का पालन करते हुए डलहौजी ने 1848 ई. में सतारा, 1849 ई. में जैतपुर तथा सम्बलपुर, 1850 ई. में बघाट, 1852 ई. में उदयपुर, 1853 ई. में झाँसी, 1854 ई. में नागपुर को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया। 
  • 1856 ई. में अवध को (आउटम रिपोर्ट के आधार पर कुशासन के आरोप में) तथा 1853 ई. में बकाया धनराशि वसूलने के लिए बराड़ को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

प्रशासनिक सुधार (Administrative Reforms)

  • डलहौजी ने प्रशासनिक सुधारों के अन्तर्गत भारत के गवर्नर-जनरल के कार्यभार को कम करने के लिए बंगाल के एक लेफ्टिनेण्ट गवर्नर की नियुक्ति की व्यवस्था की। 
  • उन नए प्रदेशों को जिन्हें हाल ही में ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया गया था, के लिए डलहौजी ने सीधे प्रशासन की व्यवस्था प्रारम्भ की जिसे नॉन-रेगूलेशन प्रणाली कहा जाता है। 
  • इसके अन्तर्गत ही प्रदेशों में नियुक्त कमिश्नरों को प्रत्यक्ष रूप से गवर्नर-जनरल के प्रति उत्तरदायी बनाया गया। 

सैन्य सुधार (Military Reform)

  • सैन्य सुधारों के अन्तर्गत डलहौजी ने कलकत्ता में स्थित तोपखाने का कार्यालय मेरठ में तथा सेना का मुख्य कार्यालय शिमला में स्थापित किया। 
  • उसने पंजाब में नई अनियमित सेना का गठन एवं गोरखा रेजीमेण्ट के सैनिकों की संख्या में वृद्धि की। 
  • डलहौजी के समय भारतीय सेना एवं अंग्रेजी सेना का अनुपात (6 : 1) था। 

शिक्षा सम्बन्धी सुधार (Educational Reform)

  • 1854 ई. का चार्ल्स वुड का डिस्पैच जो विश्वविद्यालयी शिक्षा से सम्बन्धित था, डलहौजी के समय में पारित हुआ। इसी तरह प्राथमिक शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालयी स्तर की शिक्षा के लिए एक व्यापक योजना बनाई गई। 

रेल एवं तार (Rail and Tar)

  • डलहौजी ने तार तथा रेल विभाग को अत्यन्त महत्व दिया। उसने रेलों के निर्माण के सम्बन्ध में अंग्रेजी निगमों के साथ ठेकों का निश्चय किया। 
  • उसके काल में भारत में 1853 ई. में प्रथम रेलवे लाइन बम्बई से थाणे व दूसरी रेलवे लाइन 1854 ई. में कलकत्ता से रानीगंज के बीच बिछाई गई। (ब्रिटेन में 1825 ई. से ही रेलवे लाइनें बिछाई जा रही थीं) 
  • डलहौजी के ही काल में प्रथम विद्युत तार सेवा कलकत्ता से आगरा के बीच प्रारम्भ हुई

डाक सुधार (Postal Reform)

  • आधुनिक काल की डाक व्यवस्था का आधार भी डलहौजी के काल में ही निश्चित किया गया। 
  • डलहौजी ने डाक विभाग में सुधार करते हुए 1854 ई. में नया पोस्ट ऑफिस एक्ट पास किया। 
  • इस एक्ट के अन्तर्गत तीनों प्रेसीडेन्सियों में एक-एक महानिदेशक नियुक्त करने की व्यवस्था की गई। 
  • देश में पहली बार डाक टिकटों का प्रचलन आरम्भ हुआ। अब डाक विभाग आय का एक स्रोत बन गया। 

वाणिज्यिक सुधार (Commercial Reform)

  • वाणिज्यिक सुधार के अन्तर्गत डलहौजी ने खुले व्यापार की नीति का अनुसरण किया तथा भारत के बन्दरगाहों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए खोल दिया।
  • कराची, बम्बई, कलकत्ता के बन्दरगाहों का विकास किया गया। 

सार्वजनिक निर्माण विभाग (Public Works Department)

  • डलहौजी से पूर्व फौजी सदस्य ही सार्वजनिक निर्माण कार्य के उत्तरदायी थे। 
  • नागरिक विभाग के कार्यों की उपेक्षा होती थी। 
  • डलहौजी ने पहली बार एक सार्वजनिक निर्माण विभाग बनाया। 
  • गंगा नहर का निर्माण कर 8 अप्रैल, 1854 ई. को उसे सिंचाई के लिए खोल दिया गया
  • डलहौजी ने जी.टी. रोड का निर्माण कार्य भी पुन: शुरू करवाया। 
  • पंजाब में बारी दोआब नहर का निर्माण कार्य आरम्भ किया गया। 
  • संथाल विद्रोह (1855 – 56 ई.) इसके काल की महत्वपूर्ण घटना है।
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बंगाल के गवर्नर जनरल (Governor General of Bengal)

ब्रिटिश गवर्नर जनरल मूल रूप से भारत में ब्रिटिश प्रशासन के मुखिया थे। ये कार्यालय फोर्ट विलियम के प्रेसीडेंसी के गवर्नर जनरल के शीर्षक के साथ 1773 में बनाया गया था।

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बंगाल के गवर्नर जनरल (Governor General of Bengal)

वारेन हेस्टिग्स (Warren Hastings)

कार्यकाल – 1774 – 1785
महत्वपूर्ण कार्य – 

  1. बनारस की सन्धि (1773)
  2. रेग्युलेटिंग एक्ट (1773) के अंतर्गत कलकत्ता में उच्चतम न्यायालय की स्थापना
  3. फैजाबाद की सन्धि (1775)
  4. एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल
  5. नन्द कुमार पर अभियोग (1775)
  6. पिट्स इंडिया एक्ट (1784)
  7. महाभियोग –  हेस्टिंग्स भारत का एकमात्र गवर्नर जनरल था जिस पर बर्क ने महाभियोग का मुकदमा दायर किया। 

नंद कुमार अभियोग (1775) –
नन्द कुमार जो मुर्शिदाबाद का भूतपूर्व दीवान था, उसने हेस्टिग्स पर यह आरोप लगाया था कि उसने मीरजाफर की विधवा मुन्नी बेगम से ₹ 3.5 लाख नवाब मुबारिकुद्दौला का संरक्षक बनने के लिए घूस ली थी। वारेन हेस्टिग्स ने इलिजाह इम्‍पे (Elijah Impey) की मदद से जालसाजी के मुकदमे में नन्द कुमार को फांसी पर लटका दिया इसे न्यायिक हत्या कहा गया है। पिट्स इण्डिया एक्ट के विरोध में इस्तीफा देकर जब वारेन हेस्टिंग्स फरवरी, 1785 ई. में इंग्लैण्ड पहुँचा, तो बर्क द्वारा उस पर महाभियोग लगाया गया। ब्रिटिश पार्लियामेण्ट में 1788 ई.से 1795 ई. तक 7 वर्ष महाभियोग चला, परन्तु संसद ने उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।

सर जॉन मैकफरसन  (Sir John McPherson)

कार्यकाल – 1785 – 1786 ई.

  • सर जॉन मैकफरसन ने भारत में अस्थायी नियुक्ति पर मात्र एक वर्ष कार्य किया।

लॉर्ड कार्नवालिस (Lord Cornwallis)

कार्यकाल – 1786 – 1793 

  • 1786 ई. में कम्पनी ने एक उच्च वंश तथा कुलीन वृत्ति के व्यक्ति लॉर्ड कार्नवालिस को पिट्स इण्डिया एक्ट के अन्तर्गत रेखांकित शान्ति स्थापना तथा शासन के पुनर्गठन हेतु गवर्नर-जनरल नियुक्त कर भारत भेजा। 

न्यायिक सुधार 

  • कार्नवालिस कोड शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धान्त पर आधारित था, जिसके तहत न्याय प्रशासन तथा कर को पृथक् कर दिया गया अर्थात् कलेक्टर की न्यायिक व फौजदारी शक्तियाँ ले ली गई तथा उसके पास केवल कर सम्बन्धी शक्तियाँ रह गईं। 
  • उसने वकालत के पेशे को नियमित बनाया।

सिविल सेवा सुधार

  • कार्नवालिस को भारत में नागरिक सेवा ICS का जन्मदाता माना जाता है। 
  • प्रथम भारतीय ICS सत्येन्द्रनाथ टैगोर 1863 ई. में बने। 
  • प्रारम्भ में इस परीक्षा की अधिकतम आयु सीमा 23 वर्ष थी, जिसे लिटन ने घटाकर 19 वर्ष कर दिया।

पुलिस सुधार 

  • कार्नवालिस ने ग्रामीण क्षेत्रों में जमींदारों के पुलिस अधिकारों को समाप्त कर थानों की स्थापना की और वहाँ एक दरोगा व कुछ पुलिस कर्मचारी नियुक्त किए। 
  • अंग्रेजी दण्डनायकों (Magistrates) को जिले की पुलिस का भार दिया गया। 
  • कार्नवालिस ने पुलिस तथा न्यायिक प्रशासन को सीधे अपने अधीन ले लिया।

राजस्व सुधार 

  • कार्नवालिस ने 1787 ई. में प्रान्त को राजस्व क्षेत्रों (36 से घटाकर 23 कर दी) में विभाजित कर उन पर एक कलेक्टर नियुक्त कर दिया। 
  • 1790 ई. में जमींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया गया। शर्त यह थी कि वे कम्पनी को वार्षिक कर देते रहें। उसने रेवेन्यू बोर्ड की स्थापना की। 
  • कार्नवालिस ने व्यापारिक सुधारों के तहत ठेकेदारों के स्थान पर गुमाश्तों तथा व्यापारिक प्रतिनिधियों द्वारा माल लेने की व्यवस्था बना दी तथा निजी व्यापार को समाप्त कर दिया। 
  • कम्पनी के कार्यकर्ताओं के वेतन को बढ़ाकर बेईमानी व धूर्तबाजी को खत्म करने का प्रयास किया। साथ ही उसने प्रत्येक पदाधिकारी को भारत में आने से पूर्व अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा देने को बाध्य किया। 

स्थायी बन्दोबस्त

  • बंगाल की स्थायी भूमि, कर व्यवस्था पर अन्तिम निर्णय कार्नवालिस ने सर जॉन शोर के सहयोग से लिया और अन्तिम रूप से जमींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया गया। 
  • 1790 ई. में बंगाल के जमींदारों से 10 वर्षीय व्यवस्था की गई, जिसे 1793 ई. में स्थायी कर दिया गया, जिसे स्थायी बन्दोबस्त कहते हैं।
  • इस व्यवस्था के अन्तर्गत जींदारों को अब भू-राजस्व का 10/11 भाग कम्पनी को तथा 1/11 भाग अपनी सेवाओं के लिए अपने पास रखना था। 
  • कम्पनी ने यद्यपि इसे पूरी तरह से अपने हित में बताया, परन्तु शीघ्र ही यह व्यवस्था उत्पीड़न तथा शोषण का साधन बन गई।

सर जॉन शोर (Sir John Shore)

कार्यकाल – 1793 – 1798 ई.
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • ब्रिटिश संसद ने सर जॉन शोर के समय में 1793 ई. का चार्टर एक्ट पास किया। 
  • इसने मैसूर के प्रति अहस्तक्षेप की नीति का पालन किया तथा जमींदारों को भूमि का वास्तविक स्वामी माना। 
  • सर जॉन शोर के समय में ही निजाम और मराठों के बीच 1795 ई. में खुर्दा का युद्ध लड़ा गया। 

लॉर्ड वेलेजली (Lord Wellesley)

कार्यकाल – 1798 – 1805 ई.
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • 1798 ई. में रिचर्ड कॉले वेलेजली जिसे माक्विस ऑफ वेलेजली के नाम से जाना जाता है, भारत का गवर्नर-जनरल बना। 
  • लॉर्ड वेलेजली बंगाल का शेर के उपनाम से प्रसिद्ध था। 
  • वह अपनी सहायक सन्धि प्रणाली के कारण प्रसिद्ध हुआ। 
  • सहायक सन्धि का प्रयोग वेलेजली से पूर्व भारत में डूप्ले द्वारा किया गया था।

सहायक सन्धि 

  • फ्रांसीसियों के भय को समाप्त करने तथा अंग्रेजी सत्ता की श्रेष्ठता स्थापित करने के उद्देश्य से वेलेजली ने भारत में सहायक सन्धि प्रणाली को प्रचलित किया। 
  • इस सन्धि को स्वीकार करने वाले राज्यों के वैदेशिक सम्बन्ध अंग्रेजी राज्य के अधीन हो जाते थे, परन्तु उनके आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाता था। 
  • सहायक सन्धि करने वाले प्रत्येक राज्य को अपनी राजधानी में एक अंग्रेजी रेजीडेण्ट को रखना पड़ता था तथा कम्पनी की पूर्व आज्ञा के बिना राजा किसी भी यूरोपीय को अपनी सेवा में नहीं ले सकता था। 
  • सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले राज्यों का क्रम है – हैदराबाद (1798 ई.), मैसूर (1799 ई.), तंजौर (1799 ई.), अवध (1801 ई.), पेशवा (1802 ई.), भोंसले (1803 ई.), सिन्धिया (1804 ई.)। 
  • इन राज्यों के अलावा सहायक सन्धि स्वीकार करने वाले अन्य राज्य थे-जयपुर, जोधपुर, मच्छेड़ी, बूंदी तथा भरतपुर । 
  • तंजौर (अक्टूबर, 1799 ई.) व कर्नाटक (जुलाई, 1801 ई.) पर कब्जे के बाद इसके समय में ही 1801 ई. में मद्रास प्रेसीडेन्सी का सृजन किया गया। 
  • इसी के कार्यकाल में द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1802-03 ई.) हुआ। 
  • लॉर्ड वेलेजली के समय चौथा आंग्ल मैसूर युद्ध (1799 ई.) हुआ जिसमें श्रीरंगपट्टम का दुर्ग जीत लिया गया और टीपू को वीरगति प्राप्त हुई। 
  • नागरिक सेवा में भर्ती किए गए युवकों को प्रशिक्षित करने के लिए 1800 ई. में लॉर्ड वेलेजली ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। 
  • 1799 ई. में वेलेजली ने प्रेस पर प्रतिबन्ध लगाया। 
  • 1803 ई. में इसने बाल हत्या पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया।

लॉर्ड कार्नवालिस (Lord Cornwallis)

कार्यकाल – 1805 ई.
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • कार्नवालिस पुनः 1805 ई. में भारत का गवर्नर-जनरल बनकर आया, इसने होल्कर व सिन्धिया को शान्त करने का प्रयत्न किया और राजपूत रियासतों से अंग्रेजी कम्पनी की सुरक्षा को वापस लेने का प्रयत्न किया, इसी दौरान 1805 ई. में उसकी गाजीपुर में मृत्यु हो गई।
  • गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) में ही उसकी समाधि है।

सर जॉर्ज बार्लो (Sir George Barlow)

कार्यकाल – 1805 – 1807 ई.
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • उसने अहस्तक्षेप की नीति का कठोरता से पालन किया। उसने सिन्धिया को ग्वालियर तथा गोहुद के प्रदेश वापस कर दिए। 
  • राजपूतों से ब्रिटिश सुरक्षा को वापस ले लिया, किन्तु उसने डायरेक्टरों की आज्ञा के विरुद्ध बेसीन की सन्धि जारी रखी। 
  • इसी के काल में वेल्लोर में सिपाहियों का विद्रोह हुआ, जिसका कारण फौजी वर्दियों को पहनने, बालों को कटाने आदि से सम्बन्धित था, जिसे मद्रास के गवर्नर लॉर्ड विलियम बैंटिक ने शान्त किया। 
  • इस विद्रोह के कारण ही बालों को वापस बुला लिया गया।

लॉर्ड मिण्टो प्रथम (Lord Minto – I)

कार्यकाल – 1807 – 1813 ई.
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • गवर्नर-जनरल के रूप में भारत आने से पूर्व वह नियन्त्रण बोर्ड का अध्यक्ष था। 
  • इसके समय में पर्शिया के शाह से एक सन्धि हुई, जिसके अनुसार कोई भी विदेशी सेना उसकी अनुमति के बिना उसके क्षेत्रों से नहीं गुजर सकती थी। 
  • 1809 ई. में लॉर्ड मिण्टो महाराजा रणजीत सिंह के साथ अमृतसर की सन्धि में सम्मिलित हुआ। 
  • सन्धि पर अंग्रेजों की ओर से चार्ल्स मेटकॉफ ने हस्ताक्षर किए।

लॉर्ड हेस्टिंग्स (Lord Hastings)

कार्यकाल – 1813 – 1823 ई.
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • लॉर्ड हेस्टिंग्स की नियुक्ति गवर्नर-जनरल के रूप में 1813 ई. में हुई। 
  • वह भारत में इस दृढ़ संकल्प के साथ आया कि वह देश के कार्यों में हस्तक्षेप न करने की नीति का पालन करेगा, किन्तु बाद में उसने अनुभव किया कि देश की स्थिति ऐसी है कि उस नीति पर चलना सम्भव नहीं है।

आंग्ल-नेपाल युद्ध (1814 – 1816 ई.) 

  • सर्वप्रथम लॉर्ड हेस्टिग्स को नेपाल के विरुद्ध 1814 ई. में कार्रवाई करनी पड़ी। 
  • कर्नल निकल्सन तथा गार्डनर के नेतृत्व में अल्मोड़ा पर अधिकार करने में सफल हो गए। गोरखा नेता अमर सिंह थापा हार गया। तथा उसने शरण ले ली।
  • इसके पश्चात मार्च, 1816 ई. में संगौली की सन्धि पर हस्ताक्षर हुए। 
  • संगीली की सन्धि के अनुसार, गढ़वाल, कुमाऊँ, शिमला, रानीखेत एवं नैनीताल अंग्रेजों के अधिकार में आ गए तथा गोरखों ने काठमाण्डू में ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखना स्वीकार कर लिया। 

पिण्डारियों का दमन (1817 – 1818 ई.) 

  • हेस्टिग्स को पिण्डारियों के दमन का भी श्रेय प्राप्त है। यह लुटेरों का एक दल था, जिसमें हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों सम्मिलित थे। हेस्टिग्स ने पिण्डारियों के दमन के लिए उत्तरी सेना की कमान स्वयं संभाली, जबकि दक्षिणी सेना की कमान टॉमस हिसलोप को दी गई। 
  • उनके नेताओं में वासिल मोहम्मद ने सिन्धिया के यहाँ शरण ली, किन्तु उसने आत्महत्या कर ली। करीम खाँ को गोरखपुर में एक छोटी-सी रियासत दे दी गई और चीतू को शेर मारकर खा गया। अमीर खान को टोंक का नवाब बना दिया गया, 1824 ई. तक पिण्डारियों का दमन कर दिया गया।

मराठा संघ का अन्त 

  • हेस्टिग्स द्वारा मराठा को तृतीय युद्ध में पराजित कर मराठा संघ को भंग कर दिया गया। 
  • 1 जून, 1817 ई. को पेशवा ने अपनी हार स्वीकार कर एक सन्धि पर हस्ताक्षर किए, जिसके अनुसार मराठा संघ समाप्त हो गया। 
  • हेस्टिंग्स ने बाजीराव द्वितीय को गद्दी से उतारकर ₹ 18 लाख वार्षिक पेंशन देकर कानपुर के समीप बिठूर नामक स्थान पर भेज दिया। 
  • हेस्टिग्स के समय में ही एलफिन्सटन ने बम्बई में महालवाड़ी तथा रैयतवाड़ी व्यवस्था के मिश्रण को लागू किया। 
  • बंगाल में रैयत के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए 1822 ई. में ‘टैनेन्सी एक्ट’ या ‘काश्तकारी अधिनियम’ लागू किया गया, जिसके अनुसार यदि रैयत अपना निश्चित किराया देती रहे, तो उसे विस्थापित नहीं किया जाएगा।

लॉर्ड विलियम पिट एमहर्स्ट (Lord William Pitt Amherst)

कार्यकाल – 1823 – 1828 ई.
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • लॉर्ड एमहर्ट के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना बर्मा का प्रथम युद्ध तथा भरतपुर का उत्तराधिकार युद्ध है। उसी के काल में आंग्ल-बर्मा युद्ध (1824-26 ई.) लड़ा गया।
  • इस युद्ध का समापन 1826 ई. के ‘याण्डबू की सन्धि’ से हुआ, जिसके तहत बर्मा नरेश महाबन्दुला ने अंग्रेजी कम्पनी को अराकान तथा तनासरिम के प्रान्त दिए। मणिपुर की स्वतन्त्रता को स्वीकार कर लिया गया और अपनी राजधानी में एक अंग्रेज रेजीडेण्ट को रखना स्वीकार कर लिया। 
  • 1824 ई. का बैरकपुर विद्रोह भी इसी के समय हुआ। 

 

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बंगाल के गवर्नर (Governor of Bengal)

प्लासी के युद्ध के समय बंगाल में अंग्रेज प्रमुख डेक था। प्लासी के युद्ध में क्लाइव ने अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया। इसी कारण प्लासी की विजय के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी ने लार्ड क्लाइव को बंगाल का गवर्नर बना दिया।

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बंगाल के गवर्नर (Governor of Bengal)

लॉर्ड रॉबर्ट क्लाइव (Lord Robert Clive)

कार्यकाल – 1757 – 60 व 1765-67
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • प्लासी की विजय के बाद क्लाइव को बंगाल का प्रथम गवर्नर बनाया गया। 
  • बक्सर की विजय के बाद इसे पुनः गवर्नर बनाकर बंगाल भेजा गया। 
  • राजस्व सुधारो को व्यवस्थित करने के लिए परीक्षण व अशुद्धि (Trial & Error) के नियम को अपनाया गया। 

प्रमुख घटनाएं 

  1. दीवानी की प्राप्ति, 
  2. व्यापार समिति, 
  3. श्वेत विद्रोह (सैनिको को उपहार न दोहरा भत्ता बंद), 
  4. द्वैध शासन, 
  5. बर्क ने क्लाइव को ‘बड़ी-बड़ी नीवें रखने वाला’ कहा जबकि प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार ‘पीवल स्पीयर’ ने उसे “भविष्य का अग्रदूत” कहा।
  6. क्लाइव ने इंग्लैण्ड में जाकर आत्महत्या कर ली। 

जॉन जेफानियाह होलवेल (John Zephaniah Holwell) 

कार्यकाल – 1760
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • यह क्लाइव के बाद बंगाल का स्थानापन्न गवर्नर बना। 
  • इसी ने ब्लैक होल की घटना का वर्णन किया था। 

हेनरी वैंसिटार्ट (Henry Vansittart)

कार्यकाल – 1760 – 65
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • बक्सर के युद्ध के समय वेन्सिटार्ट ही बंगाल का गवर्नर था। 

हैरी वेरेलस्ट (Harry Verelst)

कार्यकाल – 1767 – 69
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • द्वैध शासन के समय ये बंगाल के गवर्नर थे। 

जॉन कर्टियर (John Cartier)

कार्यकाल – 1769 – 72
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • इनके समय में भी बंगाल में द्वैध शासन जारी रहा। 
  • 1770 में बंगाल में आधुनिक भारत का प्रथम अकाल पड़ा। 

वारेन हेस्टिग्स (Warren Hastings)

कार्यकाल – 1772 – 85
महत्वपूर्ण कार्य – 

  • यह बंगाल का अन्तिम गवर्नर था। 
  • इसने बंगाल में द्वैध शासन को समाप्त कर दिया। 
  • रेग्युलेटिंग एक्ट के अंतर्गत वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया।

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